जब बाढ़ में बहा गधा नटवरलाल हाऊस

नगर सेठ के पास एक नटवरलाल नाम का झवरू जवान जोशीला गधा था, जिसकी गेंडें जैसी मोटी खाल थी। नटवरलाल देश-प्रदेश के मेलों के अलावा अन्य जगहों पर लगने वाले मेलों में आकर्षक का केन्द्र होता और लोगों का मनोरंजन कर रोज तीन चार सौ शो करके प्रसिद्धि के सातवे आसमान पर था, जिसकी चर्चा हर नगर, गॉव, कस्बे में हर घर के बच्चे एवं महिलाओं के बीच होती थी। सभी नटवरलाल के शो को देखने को बहुत ही उत्सुक व लालायित रहते थे जिससे नटवरलाल अपने को बहुत बड़ा ज्ञानी-ध्यानी समझने की ऐढ़ रखने लगा। इधर नगरसेठ अपने गधे नटवरलाल को गधा ही समझकर अपने मुनीम और रिंगमास्टर को अपनी फितरत अनुसार प्रदर्शन कराने की चाह रखते थे, पर जनता झूठ-बेईमानी और मक्कारी को पसंद नहीं करती थी, इसलिये ऐसे एक दो करबत किसी वस्तु को नटवरलाल की ऑख बॉधकर भीड में किसी को थमाने पर उस  वस्तु की खोज में भेजते तो नटवरलाल झट सामान छिपाकर रखने वाले को पकड लेता था। नगरसेठ की नजर में यह गधा महामूर्ख था जो पढ़ा लिखा नहीं था फिर भी प्रत्येक शो में जासूसी करके बड़े-बड़े जासूसों को नानी याद दिला देता था। गधा नटवरलाल नहीं जानता था कि वह खुद एक कुशल जासूस से कम नहीं, उसमें आदमी के सारे हुनूर थे पर था तो आखिर गधा ही न, यही बात नगरसेठ को खलती थी, कि इंसानों में नटवरलाल गधे जैसे ही गुण क्यों होते है।
नगरसेठ नगर के ही नहीं एक बहुत बड़ी रियासत के रईस थे और सरकार में उनका बड़ा रूतबा था। वे चाहते थे कि नटवरलाल गधे की बेशुमार बेहिसाब आमदनी को किसी को खबर न लगे और उनके मुनीम सिर्फ नटवरलाल की आमदनी का ही हिसाब रखे, उन्हें गधे की आमदनी से प्रेम था, पर उसकी खुराक अखरती थी। वे चाहते थे कि आमदनी आती रहे, पर इस गधे को खिलाने का जिम्मा कोई ओर ले ले तो समझो हम तीरथ कर आये, मानेंगे। उन्हें ख्याल आया हमारे पूर्वज हवेलियों बनाते समय निर्माण में लगने वाली रेत-मिट्टी ढ़ोने का काम नटवरलाल के पूर्वक गधों से ही कराने के बाद गधों को खिलाना न पड़े वे उनसे मुफ्त में काम निकलवा कर उनके खाने के इंतजाम के लिये शहर में छुड़वा देते ताकि गधें नगरजनों की फेंकी जूठन से अपना पेट भर ले। मैं नर्मदापुरम निवासी हॅू, इसलिये इस परम्परा को यहॉ देखता हॅू जिसमें गधे ं सुबह से शाम तक नर्मदा की रेत ढोकर बेहिचक आलीशान निर्माणों में योगदान दे रहे है और गधों की देखभाल करने वाले कर्मचारी उन्हें शहरवालों के भरोसे छोड उनकापेट भरते ही काम पर लगाये रखते है। नगरसेठ या उनके पूर्वजों ने कभी भी गधों के रहने के लिए गधाशाला नहीं बनवायी है। हॉ यह अलग बात है कि उनके पूर्वजों का  यह कारोबार गधों की कतार न लगाकर डम्फरों की कतार लगवा दी है, लेकिन मेलों में सुप्रसिद्ध हीरों का खिताफ उनके गधे नटवरलाल को मिला हुआ है और उसकी कमाई ऐसे ही हाथ से जाने देना नहीं चाहते है, इसलिये नटवरलाल उन्हें जान से प्यारा है, पर उसके लिये कोई भी जान लगाने को तेयार नहीं है। जानवरों के लिए सरकारी योजनाओं, बनती गोशालाओं और उनके बजट के ऑकड़ों ने नगरसेठ का दिमाग चकरघिन्नी कर दिया, बस वे उधेड़वन में थे कि कैसे भी सरकारी योजनाओं को नटवरलाल से जोडें और नटवरलाल को ज्यादा प्रशिक्षित कर विदेशों की करेंसी भी जोड़ी जाये।  
फिर क्या था। नगरसेठ अपने गधे नटवरलाल को निरा अपढ़, अप्रशिक्षित, अस्वस्थ्य, निवास से वंचित  बतलाकर खुद सरकार के बतौर प्रतिनिधि मंत्रीमण्डल की बैठक में शामिल हो प्रदेश के सभी गधों की चिंता में दुबले हुये लम्बा-चौड़ा भाषण झाडते हुये गधों के दर्द को बखान कर प्रदेश में गधों के अस्तित्व का खतरे का ऐसा चि़त्र प्रस्तुत किया कि सभी को लगा कि अगर सरकार ने कुछ नहीं किया तो हमारा प्रदेश गधाविहीन हो जायेगा। तत्काल सरकार ने गधा पालन शिक्षण एवं संरक्षण आयोग गठित कर करोडों रूपये के बजट के साथ गधा पालन शिक्षण एवं संरक्षण आयोग के प्रथम अध्यक्ष के रूप में नगरसेठ के चहेते भड़ामसिंह को अध्यक्ष बनवाकर सबसे पहले अपने चहेते कमाऊ नटवरलाल गधे की फाईल प्रस्तुत कर नटवरलाल के शिक्षण, प्रशिक्षण एवं आवास के लिये करोड़ों रूपये स्वीकृत कराकर पहली जंग जीत ली।
नटवरलाल गधे की स्वीकृत फाईल का ठेका नगरसेठ के नौकर छदामीलाल के नाम से उनके भतीजे ने प्राप्त किया। काम शुरू हुआ, शहर के सारे डिग्रीधारी व्याख्याताओं को बुलाया गया, सभी ने नटवरलाल की योग्यता एवं विद्या के आगे नतमस्तक हो उसे गधों का गुरू बताया। कुछेक ने कहा कि यह इतना ज्ञानी है कि इसके पास ज्ञान का अपार भण्डार है जो पोथियों में लिखे तो पोथियों के पहाड लग जायेगे किन्तु इसका ज्ञान फिर भी कमतर नहीं होगा, तुरन्त भतीजे ने नगरसेठ का काम बतलाया तो वे ही व्याख्यातागण अपनी ही बात को सिरे से खारिज कर खाने की टेबिल पर मिठाईयों में हाथ सने चाटते हुये कहने लगे कि यह नटवरलाल तो अज्ञानी गधा है इसे शिक्षित करने में सालों लगेंगे और लाखों का खर्च आयेगा।
समय की लीला न्यारी है अचानक अलग-अलग विषय के विशेषज्ञ व्याख्यातों ने खाने की टेबिल पर क्या बात की, यह नटवरलाल की समझ नहीं आयी, परन्तु व्याख्याताओं ने नटवरलाल को जासूसी पदवी से नीचे पटकर निरा अपढ़, अशिक्षित, गॅवार गधा होने का प्रमाणपत्र दे वापिस चले गए। अब नटवरलाल के आवास के लिये शहर के कालोनाईजरों को बुलाया गया जिन्होंने नटवरलाल के बैठकरूम, खड़ेरूम, चाराग्रहण कक्ष, शौचादि कक्ष की  आधुनिक डिजाईनें तैयार की, इसमें उन्होंने आवास का एरिया का नक्शा पास कर सभी अत्याधुनिक गधा निवास का प्रस्ताव रखा,  भतीजे ने खारिज कर शहर के बाहर सरकारी जमीन पर अपने कब्जे वाले झाड के नीचे ही नटवरलाल को सुरक्षित होना बताया और कालोनाईजरों को कहा कि देखों ये सब कागजों पर होना है, हमारा नटवरलाल पेड के चक्कर लगाने का आदी है, उसे वही ंरहने दिया जाये, परन्तु दुनिया को दिखाने के लिये नटवरलाल गधे को पढ़ाने के लिये सालों व्याखाताओं को लगाये रख उन्हें वेतन दिया जाता रहा। सुबह-शाम माईक से गधे की पढ़ाई से पहले शंख, घडियाल, ढोल , तासे, नगाडे करताल, मृदंग आदि मधुर ध्वनि में बजाये गये लोग सुनते और प्रसन्न होते, पर उनकी रिकार्डिग रोज सुनने के बाद रिकार्डिग करने वाले अपने भुगतान को चक्कर लगाते, जिन्हें आता जाता देख लोगों को विश्वास होता कि हॉ नटवरलाल अब योग्यता की सारी सीढ़िया पार कर हमारे शहर का नाम गौरवान्वित करेगा।
एक दिन अचानक गधा पालन शिक्षण एवं संरक्षण आयोग के अध्यक्ष भडामसिंह जी अपनी सरकारी लाल बत्ती गाडी में अधिकारियों की फौज लिये नटवरलाल गधे की पढ़ाई एवं आवास की प्रगति देखने आ धमके। पूरी मीड़िया आ टपकी और इन्टरव्यू लेने लगे। धडामसिंह ने नटवरलाल गधे के आवास पर आम लोगों को आने जाने पर प्रतिबन्ध लगवा दिया था किन्तु मीडिया ने देखने को कहा, तब वे बोले मैं इतना गया गुजरा हॅू जो ईमानदार कालोनाईजरों-इंजीनियरों की ईमानदारी पर शक करू, जब उन्होंने कहा कार्य प्रगति पर है, तो समझो प्रगति पर है, हॉ मैं इसके उदघाटन के अवसर पर आप सभी को नटवरलाल गधा आवास जरूर घुमाऊंगा। नगरसेठ के भतीजे की खातिरदारी की सभी पत्रकारों ने तारीख की, फिर धडामसिंह जी कब चूकने वाले थे, वे बोले अब तक पता चल गया न। प्रदेश का सबसे अनूठा गधा नटवरलाल पैलस का निर्माण हमारे यहॉ हुआ, गधें ने खूब पढ़ाई की, उसकी देखरेख में कोई कमी नहीं थी। सरकारी योजना का यह अनूठी प्रयोग हमारों नगर में हुआ जहॉ नगरसेठ के भतीजे ने योजना पर काम करते हुये महिने लगाये, करोड़ों खर्च हुये, मॅहगाई बढ़ने का कहकर योजना में ओर राशि बढोत्री की गयी।
पूरा शहर इसके उदघाटन की प्रतीक्षा में था,सोसलमीडिया पर कालोनाईजरों की बनाई डिजाईन को लाखों लाईक्स कमेन्टस मिल चुके थे। वह दिन भी आया जब उसका उदघाटन तय हुआ, ठीक उसके एक सप्ताह पहले पता चला कि नदी के किनारे पर बना यह एतिहासिक गधा नटवरलाल हाउस बाढ़ के पानी में बह गया, नगरसेठ के भतीजे ने कॉगजों पर बनाकर पहले ही करोड़ों रूपये अंटी कर लिये थे, अब बाढ़ में हुये नुकसान का सर्वे हुआ, हर्जा खर्चा मिला, वह तो नगरसेठ थे जिन्होंने कागजों पर बना नटवरलाल गधा हाउस कागजों पर बनाकर बाढ़ में बहा दिया और अपने कमाऊ जासूस गधा नटवरलाल को अपने पास छिपाकर रखा वहीं शासन से उसके बह जाने की रपट लगवाकर हर्जा-खर्चा भी वसूल लिया। सबको मुठठी में रखने वाले हमारे चतुर चालाक नगरसेठ कभी दमडी का भी नुकसान नही उठाते, इसलिये गधे नटवरलाल की कमाई खाते हुये उसे मरा बताया, गधा नटवरलाल नहीं जानता कि वह जिंदा है या मरा, उसके आवास पर किस गधे ने अपनी रोटिया सेकी, पर वह जैसा भी है, है तो गधा, आखिरकार सबका चहेता जो है, इसलिये आज भी वह मेलों में जासूसी करके अपने मालिक का पेट पाल रहा है।
आत्माराम यादव पीव

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