जब तार उनसे मिल गए!

जब तार उनसे मिल गए, 

झँकृत जगत जन होगए; 

संस्कार सारे ढह गए,

सब तान आकर गा गए! 

चस्पा किए वे ध्यान में, 

कर्षण किए सुर ताल में;

थे द्वैत मन के हट गए,

हो तटस्थित तब रह गए! 

ना भय रहा ना भ्रांतियाँ,

होने लगीं नित क्रांतियाँ;

अपना पना प्रकटा भुवन,

फिर ना रहीं उर दूरियाँ! 

सब कर्म में आप्लुत हुए,

सहयोग सेवा में लगे;

दुख दर्द मिल जुल मिटाए,

आनन्द अद्भुत बढ़ाए! 

मानव महत मन मगन हो,

जड़ जीव को समझा किए;

‘मधु’ प्राण की भाषा समझ,

प्रभु भाव सब वरता किए! 

✍🏻 गोपाल बघेल ‘मधु’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here