जब तार उनसे मिल गए,
झँकृत जगत जन होगए;
संस्कार सारे ढह गए,
सब तान आकर गा गए!
चस्पा किए वे ध्यान में,
कर्षण किए सुर ताल में;
थे द्वैत मन के हट गए,
हो तटस्थित तब रह गए!
ना भय रहा ना भ्रांतियाँ,
होने लगीं नित क्रांतियाँ;
अपना पना प्रकटा भुवन,
फिर ना रहीं उर दूरियाँ!
सब कर्म में आप्लुत हुए,
सहयोग सेवा में लगे;
दुख दर्द मिल जुल मिटाए,
आनन्द अद्भुत बढ़ाए!
मानव महत मन मगन हो,
जड़ जीव को समझा किए;
‘मधु’ प्राण की भाषा समझ,
प्रभु भाव सब वरता किए!
गोपाल बघेल ‘मधु’