—विनय कुमार विनायक
अंगुलीमाल अंगुली काटता था
जिसके पास माल होता था!

अंगुलीमाल सिर्फ नहीं था डाकू
बल्कि पाप-पुण्य बोधवाला था
बाल-बच्चेदार सामाजिक प्राणी!
जिसकी तादाद आज भी समाज में,
बहुतायत में मिलते, ढेर अंगुलीमाल!
अंगुलीमाल अपने ठौर से गुजरते
हर राहगीर की अंगुली नहीं काटता था!
वर्णा गौतम बुद्ध कैसे लौट आते
सभी अंगुलियों के साथ आशीर्वाद देने!
इतिहास अकसर झूठ नहीं बोलता
ताउम्र दसों उंगलियां दिखाकर
हमें आशीर्वाद देते रहे गौतम बुद्ध!
सबूत में अपने निर्वाण के बाद
बुद्ध आशीर्वादी मुद्रा में बन गए बुत!
आज लाख खोजो बुद्ध नहीं मिलते
बिना खोजे कई-कई मिलते अंगुलीमाल!
संसद एवं विधानसभा के गलियारों में,
सरकारी दफ्तर में कुर्सियां तोड़ते अंगुलीमाल!
जो बड़े ताव से, बड़े रुआब से, बड़े भाव से
कहते ठहरो और पलटवार में कोई नहीं कहता
कि मैं तो ठहर गया तुम कब ठहरोगे जनाब?
कब बंद करोगे रिश्वतखोरी रंगदारी दहशतगर्दी?
ऐसे में समझ लें कि अब बुद्ध नही सिर्फ बुत होते?
नहीं-नहीं बुद्ध तो हर युग में बुत से ही निकलते!
जब तक रहेगी दुनिया बुत से बुद्ध निकलते रहेंगे!
रोम-रोम में राम होते, कण-कण में कृष्ण रहते!
रावण-कौरव-कंश-अंगुलीमाल के वंश नहीं फलते!
परजीवी,हकमार, हराम की रोटी छीनने-खानेवाले,
पराए अंश का अमिय पीके अमृतपुत्र नहीं बनते!
—-विनय कुमार विनायक