दो चार तारे बहुत थे मेरे लियें,
दो चार तारे भी नहीं मिले तो क्या..
चाँद की चाँदनी तो मेरे साथ है।
मैने नहीं माँगा था कभी इन्द्रधनुष,
जीवन मे कुछ रंग होते बहुत था,
दो रंग भी नहीं मिला तो क्या..
श्वेत-श्याम ही बहुत हैं मेरे लियें।
मैने नहीं चाहा था महल हो कोई,
एक घर मेरा भी होता आशियाँ,
पर वो भी नहीं मिला तो क्या..
ये जर्जर झोंपडी तो मेरे पास है।
मैने कहाँ मांगे थे कभी नौरतन,
चाँदी की पायल मुझे थीं पसन्द,
वो भी नहीं मिल सकी तो क्या,
पीतल की अंगूठी तो मेरे पास है।
मैने नहीं चाहा था फूलों का हार हो,
दो फूल चमेली के बहुत थे मेरे लियें,
चम्पा चमेली भी नहीं मिले तो क्या,
काँटे गुलाब के तो मेरे पास हैं।
हर श्रमिक की है ऐसी ही दास्तां,
आधा अधूरा खाना, फिर चैन से सोना,
गुदगुदे बिस्तर नहीं भी हैं तो क्या…
एक पुरानी चटाई तो उसके पास है।
BAHUT HEE PYAREE KAVITA HAI . BHAVABHIVYAKTI MARMIK HAI .
शुक्रिया