मैने कहाँ मांगा था…

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loveमैने कहाँ मांगा था सारा आसमा,

दो चार तारे बहुत थे मेरे लियें,

दो चार तारे भी नहीं मिले तो क्या..

चाँद की चाँदनी तो मेरे साथ है।

 

मैने नहीं माँगा था कभी इन्द्रधनुष,

जीवन मे कुछ रंग होते बहुत था,

दो रंग भी नहीं मिला तो क्या..

श्वेत-श्याम ही बहुत हैं मेरे लियें।

 

मैने नहीं चाहा था महल हो कोई,

एक घर मेरा भी होता आशियाँ,

पर वो भी नहीं मिला तो क्या..

ये जर्जर झोंपडी तो मेरे पास है।

 

मैने कहाँ मांगे थे कभी नौरतन,

चाँदी की पायल मुझे थीं पसन्द,

वो भी नहीं मिल सकी तो क्या,

पीतल की अंगूठी तो मेरे पास है।

 

मैने नहीं चाहा था फूलों का हार हो,

दो फूल चमेली के बहुत थे मेरे लियें,

चम्पा चमेली भी नहीं मिले तो क्या,

काँटे गुलाब के तो मेरे पास हैं।

 

हर श्रमिक की है ऐसी ही दास्तां,

आधा अधूरा खाना, फिर चैन से सोना,

गुदगुदे बिस्तर नहीं भी हैं तो क्या…

एक पुरानी चटाई तो उसके पास है।

 

 

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मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

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