भारतवर्ष की जीवन रेखा समझी जाने वाली भारतीय रेल जहां अपनी उपलब्धियों तथा रेल क्षेत्र में हो रहे विकास के लिए सुर्खियां बटोरती रहती है, वहीं इसके हिस्से में नाकामियों और बदनामियों की भी एक लंबी फेहरिस्त है। रेलगाड़ियों में बिना टिकट मुसाफिरों का चलना, चोर-उचक्के, नशा देकर यात्रियों का सामान लूटने वाले, भिखारी, बाबा रूपी पाखंडी, जेबकतरे आदि तो भारतीय रेल के लिए एक स्थाई कलंक हैं ही। इसके अतिरिक्त रेल विभाग की ओर से बरती जाने वाली ऐसी तमाम कोताहियां भी हैं जो भारतीय रेल जैसे दुनिया के दूसरे नंबर के सबसे बड़े रेल नेटवर्क पर बदनुमा दाग साबित होती हैं। ऐसी ही एक सबसे बड़ी लापरवाही व अनदेखी जो भारतीय रेल विभाग द्वारा स्वतंत्रता से लेकर अब तक बरती जा रही है, वह है पूरे देश में हज़ारों की संख्या में फाटक रहित रेल क्रासिंग का होना और लोगों का इन्हीं फाटक रहित रेल क्रॉसिंग को पार करते हुए ट्रेन से टकराकर अपनी जान से हाथ धो बैठना प्राय: यह खबर समाचार पत्रों की सुर्खियां बनती रहती हैं कि कभी स्कूल के बच्चों को ले जा रही कोई बस ऐसी फाटक रहित क्रॉसिंग को पार करते हुए ट्रेन की चपेट में आ गई। कभी कोई बारात रेल विभाग की इस लापरवाही का शिकार बनी तो कभी परिवहन विभाग की, अथवा कोई निजी बस ऐसे मानव रहित फाटक पर टकराई तो कभी ट्रैक्टर या कोई कार-जीप अथवा मोटरसाईकिल ट्रेन से टकराकर चूर हो गई। परंतु ऐसे समाचार अखबारों में आते रहने के बावजूद सरकार द्वारा दुर्घटना वाले स्थान पर फाटक का कोई प्रबंध नहीं किया जाता। नतीजतन एक दुर्घटना के बाद दूसरी दुर्घटना घटित होने को तैयार रहती है।
पिछले दिनों तो उस समय पूरे देश का ध्याान नरेंद्र मोदी के टीवी चैनल्स पर चले रहे ’ऐतिहासिक जयकारों’ के बावजूद उत्तर प्रदेश जि़ले में घटी उस दुर्घटना की ओर गया जिसमें कि उत्तर प्रदेश के एक राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त नेता सतई राम की बिना फाटक वाली रेल क्रॉसिंग को पार करते समय ट्रेन की चपेट में आने से मौत हो गई। आम लोगों के इस प्रकार की दुर्घटना में मरने की खबरें तो देश के लोग अक्सर सुनते रहते हैं। परंतु किसी मंत्री स्तर के व्यक्ति का इस प्रकार दुर्घटना के चलते मौत की आगोश में चले जाना वास्तव में अत्यंत चिंताजनक था। समाचारों के अनुसार उत्तर प्रदेश के गौराबादशाहपुर थाना क्षेत्र के अंतर्गत चौकिया गांव के समीप यह हादसा एक फाटक रहित रेलवे क्रॉसिंग पर पेश आया। भूमि उपयोग परिषद् के उपाध्यक्ष सतई राम जिन्हें राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त था, वे अपने सुरक्षा गार्ड, ड्राईवर तथा एक सहायक के साथ अपने गांव खलिसहा से जौनपुर शहर की ओर जा रहे थे। उनकी सरकारी इनोवा कार रेल लाईन पार कर ही रही थी कि अचानक ओडि़हार पैसेंजर ट्रेन ने उनकी कार को भीषण टक्कर मार दी। जौनपुर-गाज़ीपुर रेल प्रखंड पर हुए इस हादसे में सतई राम सहित चार लोग मारे गए।
हादसे के बाद का दृश्य और भी दर्दनाक था। मृतक सतई राम के समर्थक बड़ी संख्या में दुर्घटना स्थल पर पहुंच गए। इस भीड़ ने हादसे के बाद ट्रेन पर भीषण पथराव करना शुरू कर दिया। बेकाबू भीड़ द्वारा किए जा रहे पथराव से घबराकर यात्रियों में दहशत फैल गई और सैकड़ों यात्री ट्रेन से उतरकर खेतों में इधर-उधर अपनी जान बचाने के लिए भागने लगे। नागरिकों द्वारा बेगुनाह रेल यात्रियों पर की गई इस पत्थरबाज़ी में दर्जनों लोग घायल हो गए। रेलवे पुलिस तथा उत्तर प्रदेश पुलिस कुछ देर बाद मौके पर बड़ी संख्या में पहुंची तथा हालात पर नियंत्रण पाया। इस पूरे घटनाक्रम में आम आदमी ही आम आदमी का दुश्मन बनता दिखाई दिया। जबकि कुसूरवार इनमें से कोई भी नहीं। सारा कुसूर तो भारतीय रेल के नीति निर्धारकों तथा व्यवस्था के संचालकों का ही है। बिना फाटक की क्रॉसिंग को पार करते समय किसी पैदल या साईकल सवार को तो किसी दिशा से आती हुई ट्रेन की आवाज़ सुनाई दे जाती है। परंतु यदि कोई वाहन ऐसी क्रॉसिंग को पार कर रहा है तो उस वाहन के ईंजन की अपनी आवाज़ के आगे आती हुई ट्रेन की आवाज़ या तो सुनाई नहीं देती या कम सुनाई देती है। इसी वजह से अधिकांशत: फाटक रहित क्रासिंग पर वाहन के टकराने के समाचार सुनाई देते हैं।
इस समय पूरे देश में हज़ारों रेलवे क्रॉसिंग ऐसी हैं, जहां कोई फाटक नहीं है। इनमें अधिकांश ऐसी क्रॉसिंग हैं जो दूरदराज़ के जंगली व सुनसान इलाके में हैं। निश्चित रूप से किसी गेटमैन का 24 घंटे इस प्रकार के दुर्गम स्थान पर पहुंचना तथा वहां ड्यूटी दे पाना आसान काम नहीं है। यह भी सच है कि केवल फाटक लगाने मात्र से ही समस्या का समाधान नहीं होता। बल्कि फाटक के साथ-साथ और भी कई तकनीकी पहलू जुड़ जाते हैं। जिनपर रेल विभाग को नियमित रूप से भारी पैसे खर्च करने पड़ सकते हैं। इन्हीं कारणों के चलते भारतीय रेल विभाग पूरे देश में फाटक रहित क्रॉसिंग को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए कोई ठोस योजना भविष्य के लिए भी तैयार नहीं कर रहा है। और भारतीय रेल विभाग की इसी पसोपेश के बीच आए दिन देश की किसी न किसी फाटक रहित क्रॉसिंग से किसी न किसी दुर्घटना की खबर आ जाती है। सवाल यह है कि क्या बेगुनाह नागरिकों की मौत का सिलसिला भविष्य में भी यूं ही जारी रहेगा? जब इस देश में राज्यमंत्री के स्तर का व्यक्ति इस प्रकार की फाटक रहित क्रॉसिंग पर अपने अमले के साथ दुर्घटना का शिकार हो जाए ऐसे में आम आदमी के इस प्रकार के मरने की फरियाद कौन सुनने वाला है? तो क्या इस समस्या का कोई समाधान ही नहीं है? क्या दुनिया के सभी देशों में इसी प्रकार ट्रेन की चपेट में आकर फाटक रहित क्रॉसिंग पर लोग मरते रहते हैं? क्या भारत जैसे विकासशील देश में घटने वाली ऐसी दुर्घटनाएं देश की प्रतिष्ठा पर एक काला धब्बा नहीं हैें?
यदि भारतीय रेल विभाग में इच्छाशक्ति हो, दृढ़संकल्प हो तथा हमारे देश में आम नागरिकों की जान की कोई कीमत समझी जाए तो ऐसी दुर्घटनाओं को भी टाला जा सकता है। और प्रत्येक फाटक रहित क्रॉसिंग पर दुर्घटना रोकने के उपाय भी किए जा सकते हैं। यहां यह बात काबिले गौर है कि हमारे देश में बिना फाटक की क्रासिंग पर ट्रेन से टकरा कर अथवा उससे कटकर उतने लोग नहीं मरते जितने कि रेलवे स्टेशन पर रेल लाईन पार करते समय या ट्रेन पर उतरने-चढ़ने में जल्दबाज़ी करते समय या फिर रेलवे फाटक वाली क्रॉसिंग पर जल्दबाज़ी में रेल लाईन पार करते समय लोगों की मौत हो जाती है। ऐसी दुर्घटनाओं को निश्चित रूप से नहीं टाला जा सकता। क्योंकि यह दुर्घटनाएं स्वयं दुर्घटना के शिकार व्यक्ति की गलती या जल्दबाज़ी से ही होती हैं। ऐसी दुर्घटनाओं को यदि हम आत्महत्या का नाम दें तो भी यह गलत नहीं होगा। परंतु फाटक रहित क्रासिंग पर ऐसी दुर्घटनाओं का होना निश्चित रूप से रेल विभाग को जि़म्मेदार ठहराता है। सवाल यह है कि आ$िखर हम ऐसे क्या उपाय कर सकते हैं जिससे कि इस प्रकार के हादसे अर्थात् फाटक रहित रेल क्रॉसिंग पर होने वाली भिड़ंत अथवा दुर्घटनाएं समाप्त हो जाएं।
इसके लिए हमें एक बार फिर चीन के रेल यातायात प्रबंधन की ओर नज़र डालनी होगी। मात्र पिछले दो दशकों के भीतर चीन की रेल प्रणाली दुनिया की प्रथम श्रेणी की प्रणाली बन चुकी है। चीन की रेल व्यवस्था न केवल तीव्रगति के लिहाज़ से विश्व की प्रथम श्रेणी की रेल व्यवस्था मानी जा रही है बल्कि सुरक्षा, सफाई तथा समयबद्धता के लिए भी यह अपनी विश्वस्तरीय पहचान बना चुकी है। जहां तक चीन रेल विभाग की सुरक्षा संबंधी नीतियों का प्रश्न है तो यहां पूरे चीन में कोई भी रेलवे फाटक या क्रासिंग देखने को नहीं मिलती। सडक़ व रेललाईन की क्रासिंग के दो ही उपाय हैं। या तो रेल लाईन के नीचे से निकाला गया भूमिगत रास्ता या फिर रेल लाईन के ऊपर से पार करता हुआ फलाईओवर। ऐसी व्यवस्था करने में निश्चित रूप से एक बार पैसे तो ज़रूर खर्च होते हैं। पंरतु आम लोगों का समय बचने के साथ-साथ उनकी जान भी सुरक्षित हो जाती है। हद तो यह है कि चीन में कई ऐसी जगहों पर भी भूमिगत सड़क निकालने के लिए रास्ता बना देखा जा सकता है, जहां से अभी यातायात हेतु सड़क़ मार्ग तैयार ही नहीं है। किसानों द्वारा अपनी सुविधा अनुसार इन रासतों का फिलहाल प्रयोग किया जा रहा है। उनकी भावी योजना में उस रास्ते से होकर सड़क निकाले जाने के उपाय के रूप में यह प्रावधान है। इसके अतिरिक्त भी पूरे चीन में रेल लाईन को दोनों ओर से 8-10 फीट बाऊंडरी के भीतर रखने की कोशिश की गई है। ज़ाहिर है ऐसे उपाय करने के बाद ही चीन ने रेल की रफ्तार 360 किलोमीटर प्रति घंटा तक की है। और प्रस्तावित मैगलेव टेक्नोलॉजी में तो 450 किलोमीटर प्रति घंटे तक की गति निर्धारित की गई है।
भारत भी बुलेट ट्रेन, मोनो रेल, मेट्रो रेल जैसी तीव्रगामी व आधुनिक रेल प्रणाली की ओर अग्रसर है। परंतु जब तक भारत में फाटक रहित रेल क्रॉसिंग पर इस प्रकार की दुर्घटनाएं होती रहेंगी और आम आदमी की तो बात ही क्या करनी जब राज्यमंत्री स्तर का व्यक्ति ऐसी क्रॉसिंग पर दुर्घटनाओं का शिकार होता रहेगा, तब तक भारतीय रेल के आधुनिकीकरण तथा इसे विश्वस्तरीय बनाए जाने के सभी प्रयास अपूर्ण समझे जाएंगे।
पिछले १० वर्षो में कांग्रेस ने हजारो करोड़ रूपए एयरपोर्ट्स के निर्माण पर खर्च किया लेकिन रेलवे के आधुनिकीकरण पर एक धेला नहीं खर्च किया. शायद वे अपने विदेशी मालिको को खुश करना चाहते थे, क्योंकी एयरपोर्ट्स निर्माण हुए तो एरोप्लेन तो अमेरिकी ही खरीद हुए.
उम्मीद करनी चाहिये कि नमो के प्रधानमंत्रित्व काल में इस तरह की दुर्घटनाओं से छुटकारा मिल जायेगा।
इस तरह की दुर्घटनाओं से निजात पाने के लिये भूमिगत यानि रेल की पटरी के नीचे से सड़क या फ्लाईओवर के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय कारगर सिद्ध नहीं हो सकता।