मैं कौन हूं अथ अहं ब्रह्मास्मि (दो)

—विनय कुमार विनायक
मैं कौन हूं
मन्वन्तर-दर-मन्वन्तर
मनु के बेटों का मनु की व्यवस्था से
पूछा गया सवाल,पूछता है फिर-फिर
मनु का बेटा/यह जानकर भी
कि सीधे सवाल पर तुम खामोश ही रहोगे!
तुम जानते हो हर विरोध पर गुम साधना
तुम्हें ज्ञात है,
ऊर्जा चालित होता हर विरोध/आक्रोश/जोश
ऊर्जा समाप्ति पर
जिसे लील जाती मौन सहिष्णुता!
मनु-शतरुपा/आदम-हौआ की व्यवस्था के
खिलाफ हर व्यक्तिवादी पंथिक विरोध
बुद्ध की तरह वर्द्धमान महावीर
नूह-अब्राहम-मूसा-ईसा-मुहमद बनकर
तुमसे टकराता रहा सीधे-सीधे पूछता रहा!
मैं कौन हूं?
तुम खामोश रहे/लीलता रहा
एक दूसरे को एक दूसरा
ऊर्जा समाप्ति पर
सारे उफान विलीन होते रहे
एको ब्रह्म दूजा नास्ति की कोख में!
यहूदी धर्म का हज़रत अब्राहम भी था
प्रकृति पूजक/बुत परस्त आजर का बेटा!
जिसने पितृ पूजित बुतों से पूछा
मैं कौन हूं?
जबाव नहीं दिया बुतों ने,
धकिया दिया गया बुत
जिन्दा हो गया शुद्ध-बुद्ध अमिताभ!
एक पर एक अवतार/
पैगम्बर पूछता रहा मैं कौन हूं?
जबाव मिलता रहा
एको ब्रह्म दूजा नास्ति,
ला इलाह इल्लल्लाह
अपनी-अपनी तरह से
व्याख्यायित होता रहा अहंब्रह्मास्मि!

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