—विनय कुमार विनायक
परमेश्वर है कि नहीं किसने देखा
पर माता-पिता को सबने देखा
मां पिता के बिना कोई जन्म नहीं ले सकता
मनुष्य का शरीर उनके मात-पिता की देन होता
माता-पिता के रक्त मांस मज्जा हड्डी से बनता
माता-पिता ही मनुष्य देह की प्राकृतिक सुरक्षा
माता पिता से बड़ा होता नहीं कोई रिश्ता नाता!
रिश्ते में छल होता मल होता रिश्ता दुर्बल होता
माता-पिता निश्छल निर्मल संतान का संबल होता
क्योंकि मनुष्य जिसे अपनी देह समझता वो है नहीं
वस्तुतः वह शरीर उनके माता-पिता का ही होता
निज संतान शरीर से माता-पिता प्रतिस्थापित होता!
माता-पिता अपनी देह से अधिक अपने सम्मिलित
संतति देह की हिफाजत के लिए चिंतित होता
माता-पिता अलग नहीं संतति रुप में एकमेव होता!
यहां एक तिनका भी कोई किसी को नहीं देता
माता-पिता के सिवा अगर कोई कुछ देता
तो लगे हाथ व्याज सहित उससे अधिक वसूल लेता!
गुरु अगर ज्ञान देता तो गुरु दक्षिणा में
मनोवांछित धन लेता, काम कराता, अंगूठा कटाता
अगर शिष्य गुरु के काम का नहीं तो शाप दे देता!
कोई मित्र कुटुम्ब सखी सहेली प्रेमी शुभचिंतक विरले ही
जब जैसा तब तैसा बहलाव फुसलाव बहकाव भटकाव
ये सारे दुर्गुण मनुष्य में आता रिश्ते नाते संगत से ही!
मनुष्य अगर बहकता है तो रिश्ते मित्र सखी प्रेमी प्रेमिका से
मनुष्य हर बुराई अपने मित्र सखी सहेली संगति से सीख जाता
दारु गांजा भांग खैनी सिगरेट नशा,अंधाप्रेम छल दुराचार धोखा
कोई माता की पेट या पिता की गोद से विरासत में नहीं लाता
माता-पिता से दुराव सब दुर्गुणों के गुरु मित्र सहेली से ही आता!
इस धरती पर माता-पिता ही सबसे बड़े गुरु मित्र सखा होता
माता-पिता के सिवा हर रिश्ते नाते में धोखा ही धोखा होता,
कोई माता-पिता दकियानूसी नहीं, समय के हिसाब होते सही,
मित्र सखा सहेली बहकाते, माता-पिता को कहके दकियानूसी
जितना अधिक खुलापन आया उतना अधिक बहकती संतति!
मनुष्य माता-पिता की सेवा करता,तो अपनी देह की सेवा करता
मनुष्य मां पिता का आज्ञाकारी होता,निज देह की आज्ञा मानता
माता-पिता ने संतति को जन्म देके अपनी नवीन देह को पाला,
संतति मां पिता को सम्मानित करके खुद का ही सम्मान बचाती!
—विनय कुमार विनायक