खुद का मुख बखान करे, कैसी है खुद की करनी
रीति-प्रीति से सनी हुई, भांति अनेक खुदी ने बरनी।
खुद से ही सवाल है, खुद के ही जवाब
खुद ने ही दे दिया, खुद परिचय लाजबाव।
खुद ने पूछा कौन तुम, बताओ श्रीमान
खुद ही ने खुद कहा, आत्माराम मेरा नाम।।
नाम आत्माराम है, तो किसका है ये नाम ?
देह आत्माराम है, तो क्या देह वासी का नाम?
देह का वासी आत्मा, पहचान जिसकी मौन।
मैंने खुद से प्रश्न किया, आत्माराम है कौन?
जवाब खुद ने ही दिया, जो देह है उसका प्रधान।
आत्माराम ब्रम्ह है, खुद भ्रमित करें दोनों नाम।।
विस्फोट अहं का है, अहं मिटें मिले शांतिविश्राम।।
एक मन है एक आत्मा, एक मौजूद शरीर
तीन सदा मौजूद रहे, मन,आत्मा और शरीर।
मन अगर आत्मा नहीं, आत्मा फिर है कौन
पीव अविनासी है आत्मा, मन-शरीर है मौन?
आत्माराम तोड़ना चाहता है, इस साँचे को
देह की पहचान, इस केंचुली को उतारना चाहता है
प्रकृति की परोसी, भाग्य-दुर्भाग्य मई थाली को
वह सृष्टा बन, उसे निर्लेप लौटाना चाहता है
देहधारी आत्माराम ने अब तक जिया है
स्वप्न रहित अप्रतिक्षित जीवन,जिस का साक्षी हॅू मैं।
नश्वर जगत में जीवन जी रहे
आत्माराम के नाम नहीं है, कोई भूमि का टुकड़ा
न मिट्टी, न सोना,न धन न अपना बिछौना
वह खुद ही करता है, खुद के मन का अन्वेषण
वह खुद ही रथी है और, खुद ही है खुद का सारथी
जीवन के हर मोड़ पर, वह खुद ही पहिया बदलता है।
देह का साक्षी रहकर अपने कर्तव्य पथ पर
आत्माराम लिखता रहा है सत्य,
शब्दों से रचता है, वह हर बार एक नया ब्रह्माण्ड
और भ्रष्ट-आतताइयों की, छीनता है जमीन
पर्वताकार इन देशद्रोहियों को, पटकता है खंदकों में।
अपनी जननी जन्मभूमि के सौदाईयों के प्रति
आत्माराम का खुला विद्रोह रहा है
उसने भविष्योन्मुख अपने बच्चों के
तलवों को चंदन का लेप नही किया है
खुद अपनी मिट्टी को गलने की सीख दी है
और स्वयं ने ओढ़ रखा है, खुले आकाश का कवच
पहन रखी है पृथ्वी की पादुकाएँ
आँखों में लगाया है, समुद्र की काई का अंजन
“पीव”नहीं की है अब तक, किसी की चाकरी
कर्म के प्रतिफल को आत्मसात कर
अहर्निश अंतर्मुख में जीना ही नाम है
आत्माराम का, देह की पहचान का
देह की पहचान है, यही नाम आत्माराम ।।
आत्माराम यादव पीव