भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी को नाथशिरोमणि, नाथ पंथ के संस्थापक और नाथ पंथ के प्रथम गुरु के स्वरुप में सम्पूर्ण विश्व में जाना जाता है ! गोरक्ष नाम का अर्थ है गौ रक्षक अर्थात जिनका जन्म किसी स्त्री के गर्भ से नहीं हुआ जो स्वयं ही गौशाला में प्रकट हुए ! गोरक्ष अर्थात जो गौ के रक्षक हैं ! गौ में हिन्दू मान्यता के अनुसार तेंतीस कोटि देवी देवताओं का निवास है ! इस आधार पर भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी को तेंतीस कोटि देवी देवताओं देवी देवताओं का रक्षक भी माना जाता है !
भगवान गुरु गोरक्षनाथ के जन्म से जुडी अनेकों कथाएं हैं किन्तु जन्म उसका होता है जो स्त्री के गर्भ से संसार में आये ! उदहारण के तौर पर भगवान राम और भगवान कृष्ण ! भगवान गुरु गोरक्षनाथ साक्षात पृथ्वी पर प्रकट हुए १२ वर्ष के बालयोगी के स्वरुप में ! भगवान शिव पृथ्वी पर अवतार नहीं लेते ! भगवान शिव को साक्षात धर्म का प्रतीक माना गया है ! धर्म की रक्षा और स्थापना के लिए भगवान विष्णु पृथ्वी पर अवतार लेते हैं ! भगवान शिव के स्थापित १२ ज्योतिर्लिंगों में भगवान शिव ने स्वयं प्रकट होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद दिया और १२ ज्योति के स्वरुप में सदा पृथ्वी पर उनका निवास है !
एक सरोवर के किनारे भगवान शिव माता उमा को योग की शिक्षा दे रहे थे ! माता उमा को निद्रा ने अपने आवेश में ले लिया और उमा सो गयी ! सरोवर में एक मछली के गर्भ में एक बालक पल रहा था जिसने वह सारा ज्ञान जो भगवान शिव माता उमा को दे रहे थे सुन लिया ! भगवान शिव ने देखा उमा तो निद्रा में हैं तो कौन है वो जो सम्पूर्ण ज्ञान को ग्रहण कर चूका है और जो हमारे पूछने पर “हाँ” में उत्तर दे रहा था ! भगवान शिव ने अपनी त्रिकाल दृष्टि से देखा की एक मछली के गर्भ में एक बालक है जो अब ब्रह्म ज्ञानी बन गया है ! भगवान शिव की कृपा से वह बालक मछली के गर्भ से मुक्त हुआ और भगवान शिव ने उसको अपने शिष्य के स्वरुप में स्थान दिया ! वही बालक नाथ पंथ में गुरु मछिंदरनाथ जी के नाम से प्रख्यात हुआ !
भगवान शिव ने अपने शिष्य मछिंदरनाथ को आदेश दिया की जिस योग विद्या को उन्होंने ग्रहण किया है उसको संसार में बाटें ! गुरु मछिंदरनाथ जब संसार में गए उन्होंने वहां पाप को सर्वाधिक पाया ! हर प्राणी का मन काम, क्रोध, लोभ, मोह, तामस और अभिमान में आसक्त था ! गुरु मछिंदरनाथ ने अपने गुरु भगवान शिव को पुकारा और कहा आपने जो मुझको कार्य दिया मैं उसको करने में असमर्थ हूँ ! भगवान शिव ने अपने शिष्य के प्रेम को देखते हुए स्वयं पृथ्वी पर जाने के निश्चय किया !
गुरु मछिंदरनाथ एक योगी गाँव गाँव भ्रमण करने वाले ! एक दिन वो एक स्थान पर पहुंचे जहाँ उन्होंने चमत्कार दिखाए ! गाँव मेँ निवास करने वाली एक स्त्री को संतान प्राप्ति की इच्छा योगी मछिंदरनाथ तक ले आई ! गुरु मछिंदरनाथ ने स्त्री को विभूति दी और पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया ! स्त्री जब अपने घर पहुंची तो उसके पति ने कहा क्यों इन बाबा लोगों पर विश्वास करती हो और विभूति को गौशाला मेँ फेंक दिया ! स्त्री को बड़ा ही दुःख हुआ ! १२ वर्ष के पश्चात् गुरु मछिंदरनाथ उस गाँव मेँ आये ! वह स्त्री भी गुरु मछिंदरनाथ से मिलने आई ! गुरु मछिंदरनाथ ने उस स्त्री को पहचान लिया और पुछा कैसा है तुम्हारा पुत्र ! स्त्री ने अपनी दुखत घटना को गुरु मछिंदरनाथ जी को बताया ! गुरु मछिंदरनाथ बोले हमको उस गौशाला की ओर ले जाओ जहाँ विभूति को फेंक दिया ! गुरु मछिंदरनाथ उस स्त्री और गाँव के अन्य लोगों के साथ उस स्थान पर पहुंचे जहाँ वो गौशाला थी !
गुरु मछिंदरनाथ बोले “अलख निरंजन” ! गौशाला से आवाज़ आई “आदेश गुरु का” !
गुरु मछिंदरनाथ बोले “अलख निरंजन” ! गौशाला से आवाज़ आई “आदेश गुरु का” !
गुरु मछिंदरनाथ बोले “अलख निरंजन” ! गौशाला से आवाज़ आई “आदेश गुरु का” !
एक १२ वर्ष का बालक वहां पर प्रकट हुआ ! गुरु मछिंदरनाथ जी ने कहा क्यों की यह बालक गौशाला से प्रकट हुआ है और १२ वर्ष तक स्वयं गौ माता ने इसकी रक्षा और पालन पोषण किया है इसलिए इस बालक का नाम “गोरक्ष” रखता हूँ ! यही बालक गुरु मछिंदरनाथ जी के प्रथम शिष्य के स्वरुप मेँ सम्पूर्ण विश्व मेँ प्रख्यात हैं ! स्त्री रोने लगी और बोली मेरा पुत्र मुझको देदो ! गुरु मछिंदरनाथ बोले पुत्र वह होता जो तुम्हारे गर्भ से जन्म लेता ! यह तो अजन्मा हैं ! यह तो स्वयं भगवान शिव हैं जिन्होंने मेरे प्रेम को स्वीकार किया और योग के प्रचार के लिए स्वयं ही मेरे शिष्य के स्वरुप मेँ प्रकट हुए हैं ! जिस जगह पर भगवान गुरु गोरक्षनाथ प्रकट हुए उस स्थान को भारत देश मेँ गोरखपुर के नाम से जाना जाता है ! तत्पश्चात भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी ने अपने गुरु मछिंदरनाथ जी के साथ नाथ पंथ की स्थापन की !
किस युग मेँ और किस काल मेँ भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी ने नाथ पंथ की स्थापना करी आज तक कोई भी नहीं जान पाया ! इसका कारण यह भी हो सकता है की भगवान गुरु गोरक्षनाथ कोई अवतार नहीं स्वयं भगवन शिव हैं जो अपने शिष्य मछिंदरनाथ की मददः नाथ पंथ के निर्माण करने के लिए ही आये ! इसलिए उनकी माता कौन हैं और पिता कौन हैं आज तक कोई जान नहीं पाया ! नाथ पंथ मेँ नवनाथ और चौरासी महासिद्धों का निर्माण भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी ने ही किया !
लोगों का यह भी मानना हैं भगवान गुरु गोरक्षनाथ ११वि शताब्दी के योगी हैं ! राजा भर्तहरि जो पहली शताब्दी मेँ उज्जैन नगरी के राजा थे भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी के शिष्य बने ! उसी प्रकार बप्पा रावल जिन्होंने ८वि शताब्दी मेँ राजस्थान की लड़ाई लड़ी वह भी भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी के शिष्य थे ! ऐसे कितने ही उल्लेख इतिहास मेँ मिलते हैं जो यह बताते हैं भगवान गुरु गोरक्षनाथ ११वि शताब्दी के योगी नहीं हैं और यह धारणा पूर्ण रूप से गलत हैं ! आदि गुरु शंकराचार्य की लिपियों मेँ भी भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी का उल्लेख मिलता है ! भगवान वेद व्यास जिन्होंने द्वापरयुग मेँ १८ पुराणों को लिखा उन्होंने भी स्कन्द पुराण, ब्रह्म पुराण और शिव पुराण मेँ भगवान गुरु गोरक्षनाथ का उल्लेख किया है ! कितने ही राजा, योगी, साधु, संत भगवान गुरु गोरक्षनाथ के भक्त और शिष्ये थे !
मृत्यु जीवन का अटल सत्य है ! जो संसार मेँ आया है उसको एक दिन जाना ही है ! जिसने जन्म लिया वो एक दिन निश्चित स्वरुप से अपने शरीर का त्याग करेगा ! भगवान गुरु गोरक्षनाथ जिन्होंने स्त्री के गर्भ से जन्म नहीं लिया और साक्षात शिव हैं सदा इस पृथ्वी पर एक महायोगी के स्वरुप मेँ निवास करते हैं !
मुख्ये रूप से भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी को दो कार्यों के लिए जाना जाता है ! भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी ने नाथ पंथ की स्थापना की और हठ योग का निर्माण किया ! भगवान गुरु गोरक्षनाथ द्वारा लिखी गयी दो पुस्तकें भी प्रचलित हैं ! गोरख बानी और सिद्ध सिद्धांत पद्धति वह दो पुस्तकें हैं जो हर नाथ पंथ से जुड़ा व्यक्ति पढ़ने की इच्छा रखता है ! इसके अतिरिक्त भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी ने शाबर तंत्र का भी निर्माण किया जन जन की मददः करने के लिए ! सभी तंत्रों का आधार भी भगवान शिव ही माने गए हैं !
भगवान गुरु गोरक्षनाथ धुनि रमाने वाले महायोगी हैं ! अनेकों कहानियाँ उनसे सम्पूर्ण भारत मेँ जुडी हुई है ! एक समय की बात है भगवान गुरु गोरक्षनाथ नर-नारायण पर्वत की ओर अपने शिष्यों के साथ जा रहे थे ! रास्ते मेँ माता का प्रख्यात शक्ति पीठ पढ़ गया ! माता ने भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी को जाता देख उनका रास्ता रोक लिया और उनसे निवेदन किया की वो कुछ समय उनके मंदिर मेँ विश्राम करें ! भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी ने कहा हे! माता तुम्हारे मंदिर मेँ लोग मदिरा और मॉस का भोग चढ़ाते हैं और हम एक महायोगी हैं ! माता हठ करने लगी और उनका रास्ता रोक लिया ! माता के हठी स्वाभाव को देख भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी ने उनके निवेदन को स्वीकार करते हुए कहा हम अपने शिष्यों से भिक्षा मंगवाते हैं और आप हमें उसका भोजन बनवाकर खिलाएं ! यह सुनकर माता अत्यंत प्रसन्न हुई और अपने मंदिर मेँ चली गयी ! माता ने अपने मंदिर मेँ आंच प्रज्वलित करली यह मान कर की भगवान गुरु गोरक्षनाथ थोड़ी ही देर मेँ अपने शिष्यों के साथ भिक्षा लेकर आएंगे ! कई दिन बीत गए लेकिन भगवान गुरु गोरक्षनाथ नहीं आये ! माता ने जो आंच प्रज्वलित करी थी वह आज तक जल रही है ! इसके बाद माता का वह स्थान ज्वाला देवी के नाम से प्रख्यात हो गया जो हिमांचल प्रदेश के काँगड़ा जिले मेँ है ! ऐसा माना जाता है की माता ज्वाला देवी आज भी भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी का इंतज़ार कर रही हैं और आंच आज तक जल रही हैं ज्वाला देवी के मंदिर मेँ !
भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी के नाम पर ही भारत देश मेँ एक सिटी का नाम गोरखपुर है जहाँ उनका पूरे विश्व का सबसे बड़ा मंदिर स्थापित है ! आपको यह जान कर भी आश्चर्य होगा की नेपाल देश का नाम “गोरक्ष राष्ट्र” है ! भगवान गुरु गोरक्षनाथ ही नेपाल देश का भी आधार कहलाते हैं ! अनेकों कहानियाँ सम्पूर्ण विश्व मेँ प्रचलित हैं जो यह सिद्ध करती हैं भगवान गुरु गोरक्षनाथ हर काल मेँ हर युग मेँ इस पृथ्वी पर निवास करते हैं !
– भुवन जोशी
जाग मच्छिन्दर, गोरख आया ! अलख निरंजन !! गो रक्षक भगवान गोरखनाथ की जय जय जय !!!