पाक को ताकत का अहसास कराना जरूरी था

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प्रमोद भार्गव

नेतृत्व की इच्छाशक्ति और सेना के दुस्साहस का ही परिणाम है कि सेना ने लक्ष्मण रेखा लांघकर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में 3 किमी भीतर घुसकर आतंकियों के सात शिविरों को नेस्तनाबूद कर दिया। सर्जिकल स्ट्राइक बनाम लक्षित हमला किया। जिसमें 38 आतंकियों समेत इनकी सुरक्षा में लगे पाक सेना के दो सैनिक भी मारे गए हैं। इस कार्यवाही से तय हुआ है कि भारतीय सेना के सीमा पर जो हाथ अब तक बंधे हुए थे, वह अब खुल गए हैं और सेना किसी भी आतंक की कार्यवाही का जवाब देने को तैयार है। इससे देश की वह निराशा दूर हुई है, जो उरी हमले के बाद बनी थी। इसीलिए सर्वदलीय बैठक में सभी दलों के नेताओं ने इस कार्यवाही की प्रषंसा करते हुए सेना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बधाई दी। दरअसल पाक पिछले ढाई दशक से अपने नापाक मंसूबों को आतंक के जरिए भारत की धरती पर जिस तरह से अंजाम देने में लगा था, उस नाते पाक को भारतीय सेना की ताकत और राजनीतिक इच्छाशक्ति की दृढता दिखाना जरूरी था। इस कार्यवाही से अब यह संदेश जाएगा कि आतंकी पाकिस्तानी सीमा में भी सुरक्षित नहीं है।

आतंकी शिविरों पर की गई इस सीमित कार्यवाही ने पूरी दुनिया को पैगाम दे दिया है कि भारतीय फौज को खुली छूट दे दी जाए तो वह आतंकियों के ठिकाने नेस्तनाबूद करने में सक्षम है। इससे यह भी संदेश गया है कि सेना और देश के नेतृत्व का रुख अब रक्षात्मक की बजाय आक्रामक हो गया है। भारत सरकार द्वारा  सेना को नियंत्रण रेखा पार करने की इजाजत इस तथ्य की पुष्टि है। पाक के विरुद्ध कोई कड़ी कार्यवाही होगी, यह सरकार द्वारा उरी हमले के बाद पाक की घेराबंदी से लग रहा था। मोदी ने कोझीकोड में कहा भी था कि 18 जवानों का बलिदान बेकार नहीं जाएगा, इसके बाद सुशमा स्वराज ने संयुक्त राष्ट्र संघ की बैठक में पाक को चेतावनी देते हुए कहा था कि जिनके घर शीशे के होते हैं, वे दूसरे के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते हैं। सार्क देशों की बैठक में इस्लामाबाद जाने से नरेंद्र मोदी का इनकार करना भी इस बात का संकेत था कि भारत अब पाक से कोई संबंध नहीं बनाए रखना चाहता है। भारत के इस निर्णय को अफगानिस्तान, बांग्लादेश और भूटान का तुरंत समर्थन मिल गया। इनमें दो राष्ट्र इस्लामिक हैं। शेख हसीना ने तो पाक द्वारा उसके अंतारिक मामलों में हस्तक्षेप का भी जिक्र करते हुए मोदी के रुख का समर्थन किया।

ऐसा माना जा रहा है कि पाक भारत पर पलटवार कर सकता है। इस लिहाज से भारत ने सावधानी बरतते हुए सेना के तीनों अंगों को सर्तक कर दिया है और सीमा से सटे 10 किमी के दायरे में आने वाले 200 गांवों को खाली कराने की षुरूआत कर दी है। जिससे आम नागरिकों को कोई हानि नहीं पहुंचे। हालांकि शिविरों को नष्ट करने के बाद भारत के सैन्य अभियान महानिदेशक रणवीर सिंह ने देश व दुनिया को जानकारी देते हुए साफ कर दिया था कि हमने आतंकवादी विरोधी कार्यवाही का तात्कालिक लक्ष्य हासिल कर लिया है, और नई दिल्ली का फिलहाल सैन्य अभियान का दायरा बढ़ाने का कोई इरादा नहीं है। लेकिन हम हर स्थिति से निपटने को तैयार हैं। सिंह ने सर्जिकल स्ट्राइक आॅपरेशन की यही  जानकारी अपने पाकिस्तानी समकक्ष को भी दी। हालांकि पाकिस्तान ने भारत के इस दावे को पूरी तरह खारिज कर दिया है। उनका मानना है कि कोई सर्जिकल स्ट्राइक न तो पाक सीमा में हुआ है और न ही आतंकियों के शिविर नष्ट हुए हैं। अलबत्ता इतना जरूर माना है कि भारतीय सेना ने सीमापार करके हमारे दो सैनिक हताहत किए हैं। हालांकि पाक का ऐसा कहना कोई नई बात नहीं है, जब कारगिल युद्ध हुआ था, तब भी उसने मारे गए पाक सैनिकों के शव लेने से इनकार कर दिया था। वह आतंकी बनाए गए पाक नागरिकों को पाकिस्तान का नागरिक भी नहीं मानता है। उसके साथ ऐसा करने की मजबूरी यह भी है कि पाक को दुनिया ने जान लिया है कि न केवल पाकिस्तान आतंकियों को शरण देता है, बल्कि प्रशिक्षण और हथियार भी मुहैया कराता है। इस हकीकत को नकारने के लिए पाक में स्थित या पाक से निर्यात जो भी आतंकी मारे जाते हैं, वह उन्हें अपने देश का नागरिक मानता ही नहीं है। जबकि आतंकवाद की नस्लें पैदा करने में पाक सेना की एक पूरी कमान लगी हुई है। इसीलिए पाक में सक्रिय 32 आतंकवादी संगठनों को पाक सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई के छाया संगठन माना जाता है। ये आतंकियों के लिए ढाल का काम करने के साथ भारत की संप्रभुता व अखंडता पर हमला बोलने के लिए उकसाते भी हैं।

आतंकी शिविरों को नष्ट करने के बाद खास बात यह भी रही है कि अंतरराष्ट्रीय समुदायों का समर्थन भारत के साथ दिखाई दे रहा है। जबकि ऐसा लग रहा था कि चीन पाक के साथ खड़ा दिखाई देगा, लेकिन चीन ने कहा है कि दोनों देश उसके दोस्त हैं और उन्हें संयम बरतते हुए बातचीत से समस्या का समाधान खोज लेना चाहिए। हालांकि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में चिंता भी दिखाई दे रही है। क्योंकि भारत और पाक दोनों ही परमाणु शक्ति से संपन्न देश हैं, इसीलिए अमेरिका ने दोनों देशों को संयम बरतने की सलाह दी है। चूंकि भारत विकासशील देश है और अपनी अवाम की चिंता रखता है। इसलिए उसे वैश्विक समुदायों की चिंताओं को नजरअंदाज करना भी आसान नहीं हैं। भारत युद्ध छेड़ने की मनसा भी नहीं रखता है। हां भारत ने अपनी संप्रभुता की मर्यादा का ख्याल रखते हुए सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम देकर पाकिस्तान को यह समझा दी है कि वह उसे उकसाने से बाज आए। अन्यथा वह ऐसी कार्यवाहियां और कर सकता है। अभी तक सर्जिकल स्ट्राइक में अमेरिका और इजराइल की सेना को ही पेशेवर दक्षता हासिल थी, लेकिन अब पीओके में आॅपरेशन को अंजाम देकर भारतीय सेना ने जता दिया है कि उसने भी सर्जिकल स्ट्राइक आॅपरेशन करने की कुशलता हासिल कर ली है। हालांकि भारत ने पिछले साल म्यांमार में इसी तरह का आॅपरेशन किया था, जिसमें भारतीय सेना ने 38 नगा उग्रवादियों को म्यांमार की सीमा में घुसकर मौत के घाट उतार दिया था, लेकिन यह आॅपरेशन म्यांमार सरकार की सहमति से हुआ था। अमेरिका इस तरह के आॅपरेशन ईराक में सद्धाम हुसैन और पाकिस्तान में ओसामा बिन लादेन को ठिकाने लगाने की दृष्टि से कर चुका है।

हालांकि इंदिरा गांधी के कार्यकाल 1971 में जब भारत और पाक के बीच युद्ध हुआ था, तब भारत के सशस्त्र बलों ने नियंत्रण रेखा को पार किया था। लेकिन 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सेना को नियंत्रण रेखा पार करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था, ऐसा उन्होंने अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते किया था। किंतु अब मोदी के राज में सेना को खुली छूट मिल गई है। इस सर्जिकल आॅपरेशन के जरिए सेना ने भी जता दिया है कि उसमें समूचे पाक अधिकृत कश्मीर के साथ-साथ गिलगित और बाल्तिस्तान तक इसी तर्ज पर हमला करने और मनचाहा लक्ष्य साधने की शक्ति है। भारत अब शायद इस मनस्थिति में भी आ गया है कि यदि पाक भारत के विरुद्ध लघु पैमाने पर भी परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने की भूल करता है तो भारत जबाव में बड़े परमाणु हमले की कार्यवाही कर सकता है। इसीलिए अंतरराष्ट्रीय बिरादरी चिंतित है। लेकिन भारत ने यह कार्यवाही सिर्फ पाक को चेताने के लिए की है। साथ ही देश के नागरिकों को यह विष्वास दिलाना भी रहा है कि आतंक से निपटने के लिए सेना और सरकार किसी भी हद तक जा सकते है। दरअसल जनवरी 2004 में पाकिस्तान ने भरोसा दिलाया था कि वह अपनी जमीन पर आतंकवाद को पनपने नहीं देगा, किंतु ऐसा करने के बजाय उसने आतंक की पूरी वेल को ही सींचने का काम किया। इस लिहाज से भारत का लक्ष्मण रेखा पार कर पाकिस्तान को सबक सिखाना जरूरी था।

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