हिंदुस्तान की राजनीति का शेर कौन है? लोमड़ी और भेड़िया कौन है?

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जब से अमित शाह ने जानवरों से नेताओं की तुलना की तो विवाद बन गया. लेकिन इस पोस्ट का जानवरों से लेना देना नहीं है. शीर्षक में लिखे जानवरों के नाम पर न जाएं. ये किसी नेता को नीचा दिखाने के लिए नहीं बल्कि राजनीति शास्त्र के मानक सिद्धांतों पर नेताओं के वर्गीकरण का एक हिस्सा है. इस पोस्ट में हम उन्हीं सिद्धांतों के आधार में भारत के नेताओं का विश्लेषण करेंगे.

दुनिया भर में ये हमेशा से एक बहस का मुद्दा रहा है कि नेता कैसा होना चाहिए? व्यक्तियों के नाम पर तो बहस भी होती है लेकिन असल में नेता का चरित्र कैसा होना चाहिए इस पर बातचीत नहीं होती. राजनीति शास्त्र और समाज शास्त्र में ये बताया जाता है कि एक लीडर के ये जरूरी है कि वो बुद्धिमान हो, समायोजन करने की क्षमता हो, कर्त्तव्य निष्ठ हो, अनुभव से सीखने और सदैव बदलाव के प्रति तत्पर हो और प्रभावशाली हो. इन मूल लक्षणों को लेकर लीडरशिप पर कई थ्योरी बनी. उन्हीं में से एक है इलीट थ्योरी.

करीब पांच सौ साल पहले इटली में एक महान दार्शनिक हुए – निकोलो मैकियावेली. उन्हें रेनेसां यानि युरोप के पुनर्जागरण का एक प्रमुख स्तंभ माना जाता है. शायद वो पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने जानवरों के चरित्र के मुताबिक राजनेताओं के व्यक्तित्व का विश्लेषण किया. उन्होंने तीन राजनेताओं के तीन जानवरों लक्षणों का जिक्र किया – शेर, लोमड़ी और भेड़िया. लेकिन, बीसवीं सदी में फिर से मैकियावेली के इस विश्लेषण का प्रयोग इटली के ही एक दूसरे दार्शनिक विलफ्रेडो पेरेटो ने किया. ये भी इटली के ही थे. पेशे से इंजीनियर लेकिन उन्होंने समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण योगदान किए. वो आजीवन मार्क्सवाद के धूर विरोधी रहे इसलिए हिंदुस्तान में उनके बारे में ज्यादा पढ़ाया नहीं जाता है. राजनीतिशास्त्र के छात्र भी इनके बारे में नहीं जानते हैं.

पेरेटो ने 1902 में ‘इलीट’ शब्द को ईजाद किया था और अमेरिकन डेमोक्रेसी का विश्लेषण करते हुए इलीट थ्योरी की रचना की थी. उन्होंने राजनेताओं को दो वर्ग में बांटा था – Lion और Foxes मतलब शेर और लोमड़ी. पेरेटो ने ठीक मैकियावेली की तरह ही शेर और लोमड़ी का इस्तेमाल किया था. मैकियावेली और पेरेटो ने शेर को बल, शक्ति और साहस का प्रतीक मानते हैं तो वही लोमड़ी को कपट और धूर्तता का प्रयाय बताते हैं.

शेर के लक्षण..

जैसा कि नाम से पता चलता है कि ऐसे नेता प्रत्यक्ष और निर्णायक कार्रवाई करने की अपनी क्षमता की वजह से शक्ति प्राप्त करते हैं. पेरेटो के मुताबिक ‘शेर’ रूढ़िवादी होते हैं. राष्ट्र की एकता पर उनका ज्यादा ध्यान होता है. इनकी सबसे पहली चिंता देश की सुरक्षा होती है. ये बाहर से यानि दूसरे देशों से पैदा होने वाले खतरे और देश के अंदर से उत्पात मचाने वालों से शक्ति से निपटने में विश्वास रखते हैं. ऐसे नेता पारंपरिक तौर तरीके का बेहद ध्यान रखते हैं. धर्म और संस्कृति के संरक्षण के लिए सदैव आतुर रहते हैं. इनकी कोशिश समाज में एकरूपता लाने की होती है. वे स्थापित तरीके और स्थापित विश्वास के साथ छेड़छाड़ नहीं करते. ये धूर्त नहीं होते. बेइमान और भ्रष्ट नहीं होते. समस्याओं का समाधान छल कपट से ज्यादा बल के प्रयोग से करने में विश्वास रखते हैं. ये कड़े से कड़े फैसले लेने में हिचकते नहीं है. ऐसे नेता भविष्य को ध्यान में रखकर फैसला लेते हैं. ये बदलाव के पक्षधर होते हैं. इनका एक और प्रमुख लक्षण है कि ये छोटे, केंद्रीकृत और श्रेणीबद्ध नौकरशाही के माध्यम से शासन पर जोर देते हैं. लेकिन ऐसे नेताओं के पीछे विशाल जनसमूह का समर्थन होता है. इनकी वाणी प्रखर होती है. ओजश्वी भाषण देते हैं.

लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि शेर हमेशा सत्ता में बने नहीं रहते हैं. बदलती परिस्थितिओं में उनमें भी लचीलापन और नरमी आती है और वो अप्रभावी होने लगते हैं. शेरों के साथ परेशानी ये है कि उनके बनाए नियमों और योजनाओं के लिए उन्हें छल की आवश्यकता नहीं होती है. ये उनकी सबसे बड़ी ताकत है साथ ही यही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है. जब शेर का प्रभाव जब कम होने लगता है तो लोमड़ियों की टोली साजिश करने लगती है. और जब भी उन्हें मौका मिलता है वो सत्ता में सेंध मार देते हैं. शेर को भगाकर सत्ता पर काबिज हो जाते हैं.

लोमड़ी के लक्षण..

जैसा की नाम से ही पता चलता कि लोमडी के गुणों वाले नेता कपटी, कुटिल, चालाक, धूर्त और भ्रष्ट होते हैं. इनके पास निर्णायक कार्रवाई करने की क्षमता नहीं होती है. ये कभी भी आमने सामने की लड़ाई नहीं करते हैं. ये छिप छिप कर वार करते हैं. कांसपिरेसी में विश्वास ऱखते हैं. चूंकि ये शक्तिहीन होते हैं इसलिए ये सौदेबाजी और धोखेबाजी के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. इनकी लड़ाई शेर से है और इनके पास उससे लडने की शक्ति नहीं होती तो ये गुट बनाते हैं. मतलब ये कि ऐसे नेता धोखेबाजी से, चालाकी और हेराफेरी से सत्ता में आते हैं. ये परंपरा और संस्कृति के विरोधी होते हैं. ये एकता से ज्यादा विभिन्नता पर जोर देते हैं. इनका जोर विक्रेदीकरण पर होता है और बल का प्रयोग करने से बचते हैं. ये हमेशा गुट बनाते हैं. साजिश और छल के प्रयोग से शक्तिशाली शेर को भगाने की जुगत में रहते हैं. इनके पास जनता का समर्थन नहीं होता. कोई फैन फोलोइंग नहीं होती. इनकी वाणी बहुत ही कमजोर होती है. ये हर मौके पर समझौता करने को तैयार रहते हैं. लोगों का इन पर विश्वास नहीं होता. लेकिन ये इस तरह की परिस्थितयां पैदा जरूर कर देते हैं जिससे लोगों के मन में शेर के प्रति उदासीनता पैदा हो जाती है.

हिंदुस्तान में शेर और लोमड़ी की पहचान

अगर विलफ्रेडो पेरेटो के सिद्धांत के जरिए हिंदुस्तान के नेताओं का वर्गीकरण करना हो तो बेशक नरेंद्र मोदी में शेर के हर गुण मौजूद हैं. वहीं, राहुल गांधी, मनमोहन सिंह, केजरीवाल, मुलायम सिंह, अखिलेश, लालू यादव, यचूरी-करात आदि कई नेता लोमड़ी से मिलते जुलते हैं. नरेंद्र मोदी हिंदुस्तान की राजनीति के न सिर्फ शेर हैं बल्कि आजादी के बाद हिंदुस्तान के सबसे बड़े नेता के रुप में उभरे हैं. देश की राजनीति के केंद्र में न कोई मुद्दा है.. न कोई पार्टी है.. न कोई विचारधारा है… सिर्फ नरेंद मोदी हैं. पचांयत से लेकर लोकसभा चुनाव तक सिर्फ मोदी ही मोदी हैं. बीजेपी तो मोदी मोदी करती ही है.. विपक्ष की जुबां पर भी सिर्फ मोदी का ही नाम होता है. दुनिया के सबसे बड़े प्रजातंत्र के केंद्र में एक शख्स का होना, उसके लिए सौभाग्य की बात है. ये कारनामा तो स्वयं नेहरू या इंदिरा गांधी नहीं कर पाई थी. नरेंद्र मोदी को शेर इसलिए भी हैं क्योंकि विपक्ष भी लोमड़ियों की भांति गुट बना कर शेर पर हमला करते हैं. मतलब ये कि मोदी को हराने के लिए जो लोग एकजुट हो रहे हैं वो सब के सब लोमड़ी ही हैं. अगर उनमें शेर के लक्षण होते तो गुट बना कर हमला करने की बात नहीं करते. मतलब ये कि नरेंद मोदी आज की राजनीति के एकमात्र शेर हैं.

लेकिन देश में कौन कौन से नेता लोमड़ी हैं इसका विश्लेशण आपलोगों पर छोड़ता हूं.. कमेंट करने की जगह पर आपलोग नेताओं के नाम और उनके लक्षणों को लिखिए..

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