खेल गांव में कंडोम का क्या काम?

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शम्स तमन्ना

ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में 21वें  राष्ट्रमंडल खेल अपने चरम पर पहुँच गया है। भारतीय खिलाडियों ने भी पदकों के साथ खाता खोला है और रोज़ कोई एक भारतीय खिलाड़ी स्वर्ण पदक पर निशाना लगा रहा है। राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान प्रतिस्पर्धा के साथ साथ इसके आयोजन और व्यवस्था समेत सभी विषयों पर कई सारी ख़बरें आने लगी है। जिनके बारे में जानने के लिए सभी उत्सुक होते हैं। सुरक्षा व्यवस्था से जुड़ी ख़बरें जहाँ संवेदनशील होती हैं वहीं कुछ ख़बरें ऐसी भी होती है जो पाठकों के लिए रोचक तो होती हैं परंतु चर्चा की बजाये इन्हें पढ़कर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। यदि हम इन्हीं खबरों पर गंभीरता से विचार करें तो इसके अनेक अर्थ निकल कर सामने आएंगी, जो समाज की सोंच और इसके दृष्टिकोण को दर्शाती है।

इन्हीं में एक खबर ऐसी है जिसको सामाजिक तौर से नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है और इसपर चर्चा करने से भी बचा जाता है। ख़बर है कि इस बार राष्ट्रमंडल खेल में खिलाडियों के ठहरने वाले स्थान खेल गांव में लगभग सवा दो लाख कंडोम फ्री में बांटने की व्यवस्था की गई है। याद रहे कि इस खेल गांव में 6000 खिलाडियों और टीम अधिकारियों के लिए ठहरने की व्यवस्था की गई है। यानि एक अनुमान के अनुसार लगभग 34 कंडोम प्रति व्यक्ति है और 12 दिन तक चलने वाली प्रतियोगिता के हिसाब से लगभग तीन कंडोम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन होता है। रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण कोरिया में हाल ही में आयोजित प्योंगचांग शीतकालीन ओलंपिक में रिकॉर्ड एक लाख दस हज़ार कंडोम मुफ्त बांटे गए थे जबकि 2016 में रियो ओलंपिक में लगभग साढ़े चार लाख कंडोम वितरित किये गए थे। 2010 में दिल्ली में आयोजित राष्ट्रमंडल खेल में कंडोम का इतना अधिक प्रयोग किया गया कि सीवर जाम हो गया था। क्योंकि तब खिलाड़ी स्वच्छ भारत अभियान से वाकिफ़ नहीं थे और कंडोम का प्रयोग कर उसे कचरे के डिब्बे में फेंकने की जगह टॉयलेट में बहा दिए थे। राष्ट्रमंडल खेल महासंघ के प्रमुख माइक फेनेल तो इसे सकारात्मक साबित करने में लगे रहे। मतलब खिलाड़ी पूरी सुरक्षा बेल्ट बांध कर मैदान में उतर रहे हैं।

असुरक्षित यौन संबंधों को रोकने के लिए इस तरह के प्रयास सराहनीय है। लेकिन सवाल उठता है कि खेल मेला में इतनी अधिक संख्या में कंडोम का इस्तेमाल क्या संदेश देता है? खिलाड़ी और अधिकारी यदि खेल आयोजन में भाग ले रहे हैं तो इतनी बड़ी संख्या में कंडोम का प्रयोग कौन करता है? ऐसा कई बार होता है कि कुछ देशों से आये खिलाड़ी के साथ साथ उसकी पत्नी भी खेल प्रतियोगिता में भाग ले रही होती है अथवा पति-पत्नी दोनों खेल अधिकारी के रूप में दल के साथ होते हैं जो गर्भ ठहरने की चिंता से दूर केवल खेल को सफ़ल बनाने और पदक जीतने पर ध्यान देना चाहते हैं। लेकिन पति-पत्नी का एक साथ भाग लेने वाले खिलाड़ियों अथवा अधिकारियों की संख्या एक प्रतिशत से भी कम होती है। फिर इतनी बड़ी संख्या में कंडोम का प्रयोग कौन कर रहा होता है?

कहीं ऐसा तो नहीं है कि खिलाडियों के प्रदर्शन के अलावा हम उनकी अन्य गतिविधियों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं? दल के साथ गए अधिकारियों की क्रियाकलाप को गंभीरता से नहीं देखते हैं? संक्षेप में कहीं ऐसा तो नहीं कि हम खेल के जश्न में डूब कर अनैतिकता पर चर्चा करने से बचने की कोशिश रहे हैं? क्या यह संभव है कि अधिक से अधिक 20 दिनों तक चलने वाले खेल महाकुंभ में पुरुष और महिला खिलाड़ियों के बीच प्रगाढ़ प्रेम संबंध हो जायेगा, यदि ऐसा है तो क्या खिलाड़ी प्रैक्टिस और अपने प्रेम संबंधों के बीच परस्पर समय निकाल लेते हैं? क्या इससे उनके खेल प्रदर्शन पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता होगा?

ऐसे बहुत से सवाल हैं जिनपर चर्चा की जानी चाहिए। आज जबकि हम असुरक्षित यौन संबंधों पर खुल कर चर्चा कर रहे हैं, स्कूली पाठ्यक्रमों में इसे सिलेबस के तौर पर पढ़ाने की मांग कर रहे हैं, ऐसे में खेल आयोजनों में पर्दे के पीछे छुपी इस भयानक सच्चाई पर भी गंभीरता से विचार करने का समय आ गया है क्योंकि कोई भी सभ्य समाज अनैतिकता का समर्थक नहीं होता  है। फिर चाहे वह विकसित मानसिकता का दावा करने वाली पश्चिम की सभ्यता ही क्यों न हो।

 

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