डॉ. मयंक चतुर्वेदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 के नोटों की बंदी का एलान क्या कर दिया, लग रहा है कि देश में भूचाल आ गया है, जिसमें कि सबसे ज्यादा यदि कोई प्रभावित हुआ है तो वे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री #ममताबनर्जी हैं। देश में जिस दिन से बड़े पुराने नोट बंद किए हैं, उस दिन से आप देख लीजिए, आपको कांग्रेस, सपा, बसपा, आम आदमी पार्टी से ज्यादा कोई बेचैन नजर आएगा तो निश्चित ही वे ममता ही होंगी। अब ममता से जुड़ी जो बात समझ नहीं आ रही, वह यह है कि प्रधानमंत्री के लिए इस फैसले पर वे इतनी आकुल और व्याकुल क्यों हो रही हैं। यहां तक कि कोलकाता में मार्च निकालने के वक्त मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पीएम पर निशाना साधते हुए कह गईं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अचानक भगवान बनकर आए और उन्होंने नोटबंदी कर दी। मैं आज कसम लेती हूं कि चाहे में जिंदा रहूं या मर जाऊं लेकिन पीएम मोदी को भारतीय राजनीति से हटाकर रहूंगी।
उनकी बातों से लगता तो यही है कि उन्होंने पीएम #मोदी और #भारतीयजनतापार्टी को भी पश्चिम बंगाल की कम्युनिष्ट पार्टी समझ लिया है, जिसे वे वर्षों के संघर्ष के बाद सत्ता से हटाने में सफल रही हैं। जबकि वे ये भूल रही हैं कि आज जिस तरह उनकी आवाज नोटबंदी पर बुलंद हो रही है, उसका संदेश यही जा रहा है कि वे भी कहीं न कहीं भ्रष्टाचार को ही प्रश्रय देती हैं, जिसका आरोप लगाकर कम्युनिस्ट पार्टी को सत्ताच्यूत करने के लिए वे संकल्पित रहते हुए स्वयं लगाती रही हैं। नहीं तो कोई कारण बनता ही नहीं कि वे नोट बंदी के विरोध में अपना बयान देतीं।
ममता का आरोप है कि प्रधानमंत्री के इस एक निर्णय के कारण बाजार, सिनेमा, थियेटर सब प्रभावित हुए हैं, लेकिन पीएम को आम लोगों से कोई फर्क नहीं पड़ता। उनका यह आरोप सही पूछें तो बेमानी लगता है। प्रधानमंत्री को इससे कितना फर्क पड़ता है यह बात आज कहने की जरूरत नहीं है। सभी को अपने नोट बदलवाने का भरपूर मौका दिया गया, जब देखा गया कि लोग इसमें भी भ्रष्टाचार करने से बाज नहीं आ रहे हैं तब स्हायी को प्रचलन में लाया गया किंतु इसके बाद भी जब बैंकों के सामने से लम्बी कतारें कम होने का नाम नहीं ले रही थीं तब उन्होंने यह निर्णय लिया कि अब यह बड़े नोट सीधे बैंक में जमा कराए जाएं।
ममता क्या चाहती हैं, कि वे सभी को बताते फिर इस प्रकार बड़े नोट प्रचलन से बाहर करते, जिससे कि भ्रष्टाचारियों को अपना कालाधन ठिकाने लगाने का मौका मिल जाता। सच पूछिए तो ममता का इस तरह एक ईमानदार, स्वच्छ छवि वाले नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप-प्रत्यारोप करना उन्हीं की छवि को धूमिल कर रहा है। यह धूमिलता इसलिए भी आ रही है कि लोगों को लगने लगा है कि ममता भी अन्य अवसरवादी नेताओं की तरह मुद्दों की राजनीति छोड़ स्वार्थ की एवं सत्ता पर काबिज रहने की राजनीति में लिप्त होती जा रही हैं। यह बात कहने के पीछे सीधा तर्क यह है कि ममता के सत्ता में आने के बाद लगातार पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या बढ़ रही है, जिसे कि एक ईमानदार राजनेता के सत्ता में आ जाने के बाद पूरी तरह समाप्त हो जाना चाहिए था।
इसी प्रकार पश्चिम बंगाल में मालदा जैसे हुड़दंग होते हैं, जिसमें कि हिन्दुओं की सम्पत्ति को योजनाबद्ध तरीके से निशाना बनाया जाता है, लेकिन वे मुख्यमंत्री होकर भी कुछ नहीं कर पातीं। जब उनके राज्य में शारदीय नौदुर्गा पूजन का समापन होता है और दुर्गा विसर्जन की बात आती है तो वे हिन्दुओं के लिए यह आदेश निकालती हैं कि दुर्गा पूजा का विसर्जन उन्हें एक दिन पूर्व करना होगा क्योंकि दूसरे दिन ताजियों का विसर्जन होना है। यहां भी वे बहुसंख्यक हिन्दुओं की भावनाओं से खिलवाड़ करती और अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण करती हुई नजर आती हैं। ममता का राज्य आज भी बड़ा राज्य होने के बावजूद देश के गरीब राज्यों में शुमार है, जिस प्रकार से इंडस्ट्री एवं इन्फ्रस्ट्रक्चर वहां होना चाहिए था वह अब तक विकसित नहीं हो सका है। ममता इस पर ध्यान न देकर उन सभी बातों पर ध्यान देती नजर आ रही हैं जिनसे कि आम जन की भावनाओं को तो आसानी से भड़काया जा सकता है किंतु राज्य या देश का भला बिल्कुल भी नहीं हो सकता है।
काश ! ममता बनर्जी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू से इस मुद्दे पर कुछ सीख ले लेतीं, जिसमें वे बार-बार कह रहे हैं कि 500 और 1000 रुपये की नोटबंदी से कालेधन के खिलाफ लड़ाई में मदद मिलेगी।
#नोटबंदी के बाद हुई एक घटना से मोदी के विरोध की ममता की मंशा पर और भी संदेह होता है। केंद्रीय एजेंसियों ने एक ऐसे हवाला रैकेट का खुलासा किया था, जिसका संचालन प.बंगाल से हो रहा था और जिसकी शाखाएं दुनियाभर में थीं। छापामार कार्रवाई के दौरान केंद्रीय एजेंसियों ने करोड़ों रुपए के पुराने नोट बरामद किए थे। कहा जाता है कि प.बंगाल में अभी भी ऐसे कई रैकेट चल रहे हैं। ऐसे में आम लोगों के मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि ममता आखिर नोटबंदी और मोदी सरकार का विरोध कर फायदा किसे पहुंचाना चाहती हैं।
ममता के इतने घोर विरोध का कोई रहस्य है – एक दिन तो खुलेगा ही – इंतज़ार करनी होगी