बाज़ारू शक्तियों की चूलें हिल गयी हैं और तथाकथित वैश्विक अर्थव्यवस्था के दुकानदारों की भी चूलें हिल गयीं हैं। जी हां, देश में नरेंद्र मोदी की नोट वापसी की घोषणा और अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों में रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रम्प की जीत ने विश्व बाज़ारवादियों और उदारवादियों को सकते में डाल दिया है। बड़े नोटों की वापसी के मोदी सरकार के निर्णय ने पूरे देश में तूफ़ान ला दिया है। पिछले 6-7 वर्षों से देशभर में यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ आंदोलित देश की जनता की अपेक्षाएं अब मूर्त रूप ले रही हैं। देश में आठ नवंबर से भ्रष्टाचारियों, कालाबाजारियों और देशद्रोहियों में भयंकर हड़कंप और बदहवासी मची है। ऐसा पहली बार हुआ है जब पूरा देश सरकार के किसी फैसले से सीधा प्रभावित हो सड़क पर आ गया है। लोग बैंको के बाहर पंक्तिबद्ध हैं, परेशान हैं, थोड़े से आक्रोशित भी, किंतु मान रहे हैं कि एक युग परिवर्तनकारी निर्णय ले चुका देश का नया महानायक नरेंद्र मोदी जो कुछ कर गुजरा है उसमें उनका और उनकी अगली पीढ़ी का सुरक्षित और स्वर्णिम भविष्य संभव हो सकता है। एक जगे और आंदोलित देश को अब न तो कोई हरा सकता है और न ही मुग़ालते में रख सकता है। इसी कारण बौखलाए और झटका खाये विपक्ष की लाख भड़काने और उकसाने वाली कोशिशों के बाद भी जनता शांत है और लाख परेशानियों के बाद भी सरकार के साथ खड़ी है। देश की जनता देश में नेताओं, नौकरशाहों, न्यायाधीशों, उद्योगपतियों, व्यापारियों, बिल्डरों, मीडिया, शिक्षा, स्वास्थ्य और धार्मिक माफियाओं की बेलाग लूट से तंग आ चुकी है और मोदी का अत्यंत साहसिक बल्कि दु:साहसी निर्णय जनता के लिए घनघोर अंधेरे में उजाले की एकमात्र किरण है। अब देश में नकद में खरीद कम होती जायेगी और काली अर्थव्यवस्था सिकुडऩा निश्चित है। यद्यपि देश में एक बड़ा उद्योग व्यपार से जुड़ा तबका खुद को चौराहे पर खड़ा पा रहा है। आजादी से अब तक जब स्वयं सरकारें भ्रष्ट तरीक़ों से उद्योग चलाने और व्यापार करने वालों की करतूतों से कमीशन लेकर आंखे मूंद लेती हैं, ऐसे में भ्रष्ट तरीकों और नकदी के माध्यम से काम करने वाले कैसे एक रात में चोर हो गए? अगर इनकी कमाई को जाली नोटों व हथियारों के तस्करों, ड्रग्स और शराब माफिया, हवाला, सट्टा, जुआ, मटका आदि अवैध कार्य करने वालों की श्रेणी में रखा जायेगा तो यह घोर नाइंसाफी होगी। इस दिशा में सरकार को तुरंत सोचना होगा। देश को नकद मुक्त अर्थव्यवस्था की ओर न ले जाकर छोटी करेंसी वाली अर्थव्यवस्था की ओर ले जाना ज्यादा व्यावहारिक होगा। सरकार की क्रमिक रूप से प्लास्टिक मनी और चेक, ड्राफ्ट, आरटीजीएस/ एनआईएफ़टी आदि के माध्यम से भुगतान बढ़ाने की योजना है और शीघ्र ही बड़ा कर सुधार जीएसटी लागू कर करने जा रही है अब आयकर में भी बड़ी छूट और कम दर करने का समय है। किंतु यह इसके साथ ही हर गांव तक बैंक, प्रत्येक नागरिक का बैंक खाता और आधार कार्ड, हर दुकान पर ऑनलाइन भुगतान की सुविधा को बहुत ही कम समय में पहुंचाना होगा। फिलहाल तो नयी करेंसी का प्रवाह हर घर तक करने के लिए घोर परिश्रम करना होगा और बैंकों में जमा हुई धनराशि और रद्दी हुए कालेधन के बदले में मिलने वाले लाखों करोड़ रुपयों को कृषि, पशुपालन, कृषि आधारित उद्योगों, सहकारिता, सूक्ष्म, लघु और मध्यम श्रेणी के उद्योगों में लगाना होगा ताकि अधिकतम लोगों को रोजगार मिल सके, देसी उत्पादन बढ़े, आयात रुके और पर्यावरण पूरक विकास हो सके। साथ ही भ्रष्टाचार में डूबे व्यवस्था के सारे खंभों (कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका और मीडिया) की जवाबदेही तय करने के साथ ही बड़े कारपोरेट घरानों में कारपोरेट गवर्नेंस लागू करना जरुरी है।
अब यह निश्चित है कि अगले कुछ समय में देश की जनता अधिक राष्ट्रवादी, स्वदेशी परक और अपनी संस्कृति और भाषा के प्रति अधिक भावनात्मक लगाव महसूस करती जायेगी और बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा प्रायोजित अन्तर्राष्ट्रीयवाद, मानवतावाद, विश्व बाज़ार, अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से उसी प्रकार विमुख होती जायेगी जैसा अमेरिकी जनता पिछले कुछ वर्षों में विशेषकर सन् 2008 की आर्थिक मंदी के झटके खाकर महसूस कर रही है और अपने सुरक्षित भविष्य के लिए रिपब्लिकन ट्रम्प के पीछे एकत्र हो गयी है। राष्ट्रवादी होती दुनिया राष्ट्र राज्यों के उदय के बाद पूरी दुनिया के लिए एक नयी करवट है। उम्मीद है अन्तत: यह प्रयोग मानवीय हितों में ही होगा।
नोटबंदी के बाद देशभर से सेकड़ो उद्योगपतियों, व्यापारियों, बिल्डरों और आयत- निर्यात से जुड़े लोगों से मेरी बात हो रही है। सब घबराए हुए हें और बदहवास भी। 10-20-50 लाख से लेकर 10 -20-50 करोड़ तक का और कुछ पर इससे भी ज्यादा कालाधन था, जिसे ठिकाने लगाने की कोशिशें वो कर रहे हें। किसी ने अपनी फर्मो और कंपनियो में, किसी ने कर्मचारियों के वेतन में या उन्हें नकद देकर बेंको की लाइनों में लगा, किसी ने पेट्रोल पंप वाले दोस्त की मदद से, किसी ने रिश्तेदार बैंककर्मी की सहायता से, किसी ने मित्रों और रिश्तेदारों के खातों में, किसी ने सोने और डॉलर की खरीद के माध्यम से अपने कालेधन को किसी हद तक ठिकाने लगा दिया है। यद्धपि अभी तक उनके पास 10% भी नयी करेंसी नहीं आयी है। वो धीरे धीरे एक से छ महीनो में अलग अलग तरीके से ही आएगी और कुछ उसमे से मारी भी जायेगी। किंतू 20 से 50 प्रतिशत तक कमीशन देने के और देर से आने के बाद भी यह कालेधन के रूप में ही रहेगी यानि उनके ऊपर कानून की तलवार लटकी ही रहेगी।
नेताओं और सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से इन सभी ने नकद में कारोबार किया और अपने टैक्स नहीं चुकाए। नेता और अधिकारी भी सरकारी योजनाओ में गबन, घोटालों और कमीशन का पैसा अपनी पत्नी, बच्चों , मित्रों और रिश्तेदारों के माध्यम से इधर उधर करते रहे ओर अब सकते में हें। अगर ये सब लोग चोरी नहीं करते तो सरकार के पास वर्तमान 15-16 लाख करोड़ रूपये प्रतिबर्ष की जगह पांच गुना टैक्स आता यानि लगभग 90-95 लाख करोड़ रूपये प्रतिबर्ष तक। तक सरकार इतना टैक्स भी नहीं वसूलती और बहुत कम टैक्स दरों के साथ जीवन जीना बहुत सरल होता। इसके साथ ही सरकारी योजनाएं भी व्यवहार में जमीन पर उतरती और देश में गरीबी, भुखमरी और अराजकता का कोई बोलबाला नहीं होता और देश के प्रत्येक नागरिक की रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय की मुलभुत आवश्यकताएं आराम से पूरी हो रही होती। किंतू इन लम्पटों की वजह से ऐसा नहीं हो रहा। इन्होंने उपरोक्त छ मुलभुत जरूरतों को बाजार के हवाले कर दिया और हर व्यक्ति को अंधी होड़ में शामिल कर दिया। दुःखद यह भी है कि सभी धर्मो में धार्मिक गुरु और संसथान भी इन्हीं रक्त पिपासुओं के दुष्चक्र का हिस्सा बन आमजन को लूट रहे हें। इसके बाद नशे, शराब, ड्रग्स, जुआ, सट्टा, लॉटरी,पोर्न, जाति, धर्म, भाषा, आतंक, नक्सल और क्षेत्रवाद की अफीम अलग से।
देश का करोड़ो पढ़ा लिखा युवा बेरोजगार पड़ा है किंतू इनको फर्जी डिग्री बेचने वालो के पास इनके लिए कोई रोजगार नहीं, आंकड़े बता रहे हें कि पिछले 10-12 सालो में घटिया और मिलावटी सामान के कारण 10 करोड़ से ज्यादा लोग बीमार और गरीब बन चुके हें। देश में एक करोड़ से ज्यादा ख़ाली मकान पड़े हुए हें और 10 करोड़ लोग स्लमो में रहने को मजबूर हें। देश की अदालतों में 3-4 करोड़ मुकदमे लटके हें किंतू अब न्याय खुद उत्पाद बन बाजार में है।
इन सबके बीच मुझसे विमर्श करने वाले अनेक उच्च वर्गीय लोगो का कहना था कि मोदी के नोट वापसी के फैसले के बाद वे निराश हें और या तो काम करना बंद कर देंगे अथवा विदेश चले जायेंगे। मेरा उनसे कहना है कि अगर वो ऐसा करते हें तो इस देश पर अहसान ही होगा क्योकि वो देश में कमाते भी हें तो टैक्स चोरी कर कालाधन विदेश भेज देते हें या विदेशो से नकद में आयात कर देश के उद्योगों की कमर तोड़कर युवा पीढ़ी को बेकार कर रहे हें। कृपया अपने साथ लंपट नेताओ और नोकरशाहों को भी ले जाइयेगा और जल्द हमें बताइये कि किस देश में आप बिना कानून माने और टैक्स दिए बिना अय्याशी कर रहें हें। हमारी करोड़ो प्रतिभावान और बेकार पड़ी युवा पीढ़ी आपसे हाथ जोड़कर अनुनय विनय कर रही है कृपया ऐसे ही काम करना है तो न ही कीजिये यह देश अगर कल छोड़ना है तो आज ही छोड़ दीजिये। हमे बख्श दो प्लीज। हमें कुछ बर्ष दो, हम दिखा देंगे कैसे बनता है मौलिक भारत।
महाबचत ही नहीं जीवन का आनन्दोत्सव मनाने का समय भी
जीवन सरल हो चूका है और मन प्रफुल्लित। नोटबंदी ने सन् 1991 के खुले बाज़ार और आर्थिक उदारवाद के बाद उलझते और बदहवास भागते जीवन को ठहराव सा दे दिया है। अब अमीर हो, मध्यम वर्ग हो या गरीब सब महसूस कर रहे हें कि उनके जीवन में किये जाने वाले खर्च का एक बड़ा हिस्सा बेफिजूल था और बहुत कम खर्च करके भी वो ज्यादा सुखी रह सकते हें।सरकार की नीतियों और अपनी जीवन शैली को पलटकर देखने का यह अच्छा मौका है। सुख और सम्पन्नता का लालच दिखा गाँवो से शहर की ओर भगाया वो युवा जो अब अधेड़ होने को आया है उसके लिए गहराई से सोचने का समय नियति ने दिया है। बाज़ार ने उसे मशीन बना दिया। फ्लैट, गाड़ी ,फ्रिज, टी वी, लेपटोप और बच्चों की शिक्षा एवं शादी या रोजगार के इंतज़ाम में लगी एक मशीन। जो 24 घंटे काम करने के बाद भी अपनी सारी कमाई ईऍमआई की भेंट चढ़ाकर तनाव और हताशा में खुद को डॉक्टर और वकीलों के हवाले कर देता है क्योकि बाजार ने उसके फ्लैट के पैसे गबन कर लिए हें और सालोंसाल पजेशन देने का वादा कर लटका रखा है। गाड़ी के खर्च से वो बेहाल है और जो भी इलेक्ट्रॉनिक सामान बाज़ार उसे देता है, उसकी क्वालिटी से भी। मिलावटी सामान लेना उसकी मजबूरी है , वह भी जमाखोरों की दया से उसे महंगा ही मिलता है। थोड़ी सी तनख्वाह के लिए 12 घंटे काम करने के बाद भी उसकी बीबी गहने और लक्जरी सामान न होने के कारण मुँह फूलाये रहती है। बेटी आवारा हो चुकी है और बेटा घटिया कॉलेज की फर्जी डिग्री लिए नोकरी ढूंढ रहा है और नशेडी होकर मोबाईल पर पोर्न देख देख अधपगला सा हो चूका है। गाँव में उसका भाई परेशान है। उसकी आधी जमीन का अधिग्रहण हो गया है और बाकी जमीन और मुआवजे से परिवार का पेट नहीं भरता। न ही भतीजे को सरकारी विभाग में वादे के अनुरूप नोकरी मिली (तो अब जुए और लॉटरी में पड़ गया) और न ही माँ – पिताजी को रिश्वत देने के बाद भी वृद्धावस्था पेंशन।
देश के 60 प्रतिशत किसानों , 35 प्रतिशत छोटे दुकानदारों और नोकरीपेशा लोगो के लिए तो नोटबंदी वरदान बनकर आयी है और तथाकथित 5 प्रतिशत उच्च मध्यम और उच्च बर्ग के लिए आत्म चिंतन का एक मौका लेकर। इस 5-7 करोड़ लोगो ने देश के लोगो को विकास के नाम पर और नेताओं ने GDP के नाम पर किस कदर लूटा है यह समझ तो सबको आता था किंतू अब स्वीकार्य हो गया है। देश का संपन्न वर्ग कपटी और ठरकी हो चूका है। उसकी दिशाहीन और अय्याश जीवन शैली और पैसे से ही सबकुछ खरीद लेने की मानसिकता खतरनाक रूप ले चुकी है और समाज के लिए खतरा बन चुकी है। इसमें मानवीय संवेदनाओ और जीवंत मूल्यों की कोई जगह नहीं। यह खोखली, छद्म और दिखावे वाली जीवन शैली मात्र तनाव, कुंठा,वितृष्णा और होड़ पैदा कर रही है। #नोटबंदी से मिली फुरसत और अवसर एक सबक की तरह है कि अगर बाज़ारवाद को ही देश में जारी रखना है तो इसमें पर्याप्त संशोधन करने ही होंगे, यह लूटवाद नहीं चलेगा। समाज के सभी वर्गों का कल्याण,न्यूनतम जरूरतों की निर्बाध आपूर्ति, जबाबदेही, पारदर्शिता, कारपोरेट गवर्नेंस,और ह्यूमन हैप्पीनेस इंडेक्स न की जीडीपी इसका मापदंड हो।
इसलिए जरूरी है इस महाबचत के पलों को खोये हुए आपसी प्यार, सहभागिता, सहयोग और भाईचारे के पुनर्वास का पर्व मनाएं और ध्यान, योग आध्यात्म की और मुड़े या जीवनसाथी के साथ प्रकृति की गोद में जाएं ताकि आंतरिक जीवन भी प्रफुल्लित हो और जीवन आनन्दोत्सव में बदलता जाए।
यह आत्मकेंद्रित शिखर और लाचार जन
कुछ ही महीनों पुरानी बात है, मेँ नोयडा में एक आयोजन में गया जिसमे एक पूज्य संत का संबोधन हुआ। उनके कुछ वचन मुझे खासा हतोत्साहित कर गए जब उन्होंने उपस्थित उद्योगपतियो और व्यापारियों से कहा कि चूँकि हमारे नेता, नोकरशाह और सरकारें स्वयं ही #भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती हें और बेईमानो को प्रोत्साहित करती हें, इसलिए आप लोगों को भी ईमानदारी से काम करने की जरूरत नहीं। भारतीय वैदिक परम्परा के एक संत के ऐसे समझोतेवादी शब्द मुझे कचोट गए। मुझे लगा था कि संत भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए जनसमूह की प्रेरित करेंगे किंतू ऐसा करने से उनके शिष्यो और समर्थक नाराज हो चंदा पानी और सत्कार बंद कर सकते थे और नेता उनका सम्मान करना बंद कर सकते थे, इसलिए वे अपने कर्तव्य पथ से हट गए। किंतू अब जब #नोटबंदी की सरकार की घोषणा के बाद उनके शिष्य और समर्थको पर ही सबसे बड़ी गाज गिर गयी। काश वे अपने भक्तो को सुशासन, कानून का पालन करने और अपने कर सरकार को देने के लिए प्रेरित करते तो आज उनके भक्त सड़क पर नही होते। हम चाहे किसी भी धर्म से हो हमारे धार्मिक गुरुओं ने अपार धन संपदा बनायी है और इसका अधिकांश हिस्सा उन्हें सरकारी खजाने और गरीबों के लिए बनी योजनाओं में लूट और घोटाले करने वाले नेता और नोकरशाहों ने दिया है या उद्योग – व्यापार में कई गुना लाभ लेने वाले और घटिया माल बेचने वाले कर चोर ने या किसानो से बहुत कम दामो पर जमीन हड़पकर लोगो को कई गुना रेट पर घटिया मकान बेचने वाले बिल्डर, ठेकेदार और इंजीनियर आदि ने। अब धार्मिक गुरुओ को जैसा अन्न मिलेगा वैसा ही उनका मन और विचार हो जायेंगे।
पिछले तीन सप्ताह में देश के विपक्षी दल और मीडिया नोटबंदी पर जनता के समर्थन को वैसे ही दबा गया जैसे अमेरिकी चुनावों में रिपब्लिकन ट्रम्प के उभार को दबा गया था। नकद लेने देन में कमी और #कालेधन पर रोक से अब मीडिया को पेड़ न्यूज की जो रोज की नकद कमाई हो रही थी उसको बड़ा झटका लग चूका है और इस कारण वह सकते में है और एक अच्छे फैसले के विरुद्ध खड़ा है। जबकि हॉल ही में देश में अनेक उपचुनावों में #भाजपा को मिली जीत और विपक्ष के #भारतबंद का बुरी तरह विफल होना स्पष्ट करता है कि लाख मुसीबतों के बाद भी आम जनता मोदी सरकार के इस फैसले के साथ है।सच्चाई यह है कि आगामी एक दो बर्षों में देश के आधे न्यूज़ चैनल और अखबारों का बंद होना तय है और अनेक राजनीतिक दलो के नेताओं का सूपड़ा साफ़ होना भी, क्योकि ये दोनों आपसी मिलीभगत और कालेधन से एकदूसरे को प्रमोट करते रहे थे।
न ही देश के बुद्धिजीवी, अर्थशास्त्री और न ही मीडिया देश की जनता को यह समझा पा रहा है कि बुरे समय में सोना और जमीन का निवेश एक सीमा से ज्यादा काम नहीं आता। बेहतर है कि अपने अतिरिक्त धन को उद्योग और व्यापार में लगाएं।
नोटबंदी के बाद अब आगामी कुछ महीनो की मंदी के बाद कृषि, ग्रामीण क्षेत्रो, बैंकिंग, आई टी और सूक्ष्म, मध्यम व लधु उद्योगों में सरकार खासा निवेश करने और ऋण देने जा रही है जिससे अगले वित्त बर्ष से एक करोड़ रोजगार प्रतिबर्ष आराम से पैदा होने लगेंगे। ऐसे में बेरोजगार पढ़े करोड़ो लोगो को तो रोजगार मिलेगा ही साथ ही नशे, सट्टे, लॉटरी, मटके, दलाली, नक्सल और आतंक के धंधो में लगे और अब बेरोजगार हुए लोगो का भी पुनर्वास हो सकेगा। बेहतर होता मीडिया, राजनीतिक दल और सरकार इस बिषय पर गंभीर चिंतन और बहस करते ताकि नयी पीढ़ी को बिना गलती किये बेहतर भविष्य मिल पाता। साथ ही देशवासियो को कानून का पालन करने और अपने करो का भुगतान करने की प्रेरणा देने का समय है, किंतू शिखर पर बैठे लोगो की अपनी दुकान ही उजड़ गयी है और सच्चाई यह भी है कि ज्ञानी होने के बाद भी उनमेँ नैतिक बल ही नहीं है, वे तो पुर्णतः आत्मकेंद्रित हो गए हें। ऐसे में जबकि धर्मसत्ता, राजसत्ता और अर्थसत्ता अपना कर्तव्य भूल चुके हों समाजसत्ता बिशेषकर युवा शक्ति को आगे बढ़कर कमान लेनी होगी।