वर्ल्ड टेड सेन्टर को उडाकर अमेरिका के साथ दुश्मनी लेने वाले दुनिया के सब से बडे आतंकी ओसामा बिन लादेन के खात्मे के लिये अमेरिका को काफी मशक्कत करनी पडी। भले ही उसे ये कामयाबी 9/11 हमले के दस साल बाद मिली है। पर अमेरिका ओसामा को पकडने की जी तोड कोशिश करता रहा। ओसामा को जिन्दा या मुर्दो पकडने और आतंकवाद को खत्म करने के लिये अमेरिका ने पिछले एक दशक में करीब तीन खरब डॉलर फूंक दिये ये रकम करीब एक साल के कुल वैश्विक व्यापार के बराबर है और जिस से उबरने के लिये अमेरिकी को काफी वक्त लगेगा। पर उसने दुनिया को दिखा दिया कि दुनिया की सुपर पावर से टकराने का अंजाम क्या होता है। लेकिन भारत पिछले 20 सालो में तीन दर्जन से अधिक आतंकी हमले और उस मैं 1600 से अधिक निर्दोश भारतीय नागरिको की मौत के जिम्मेदार एक भी आतंकवादी को सजा नही दे पाया। भारत को सबक लेना चाहिये अमेरिका के इस मिशन से। मुम्बई बम कांड का मुख्य आरोपी पाकिस्तान में छुपा है। अजमल कसाब पर कई सालो में हमारी सरकार ने करोडो रूपया फूंक दिया जिसे मौत मिलनी चाहिये वो मजे से भारतीय जेल में मुर्ग और बिरयानी खा रहा है जूडो कराटे सीख रहा है। संसद भवन पर हमले का मुख्य आरोपी अफजल गुरू मजे से जेल में ऐश कर रहा है। हम लोग इस बात से ही खुश है कि संसद भवन की रक्षा करते हुए व मुम्बई ताज होटल शहीद हुए लोगो को हर साल सरकार की ओर से श्रद्वांजलि देकर रस्म अदायेगी कर दी जाती है। लेकिन इस घटना के मुख्य आरोपी मौहम्मद अफजल गुरू और अजमल कसाब को मौत की सजा के बाद भी फॉसी न होने से शहादत और शहीद हुए लोगो के परिजनो को हर साल कितना दुख होता होगा हमारी सरकार और राजनेताओ को शायद इस का अंदाजा आज कई सालो बाद भी नही हो पाया है। इन लोगो को फॉसी की सजा क्यो नही दी जा रही कोई सरकार से पूछने और सरकार किसी को बताने के लिये तैयार नही है। देश के सरकारी खजाने पर इन आतंकवादियो के खाने पीने और जिन्दा रखने पर कितना अतिरिक्त भार पड रहा है सरकार और देश के अर्थशास्त्रीयो को गम्भीरता से सोचना चाहिये।
अमेरिका के 26/11 हमले से पहले 1993 के मुम्बई बम कांड को भारत के इतिहास में भारत पर हुआ सब से बडा आतंकी हमला माना जाता है। 300 से अधिक निर्दोश लोगो की मौते और 700 से अधिक लोगो को घायल करने वाले ऐ के बाद एक 12 सीरियल बम धमाको देश की सब से बडी आर्थिक राजधानी को हिला कर रख दिया था। अफसोस इन बम धमाको में लिप्त एक भी आरोपी को सजा नही हो पाई है। इस बम कांड के 13 साल बाद कोर्ट में हजारो में तारीखे लगने के बाद फैसला आया, तो दोषियो ने सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी जहॉ अब भी इस केस पर सिर्फ सुनवाई चल रही है। सन 2000 में दिल्ली के लालकिले में घुसकर सेना के तीन जवानो की हत्या और 11 को घायल करने वाले लश्कर ए तैय्यबा के आतंकी मुहम्मद आरिफ की फांसी की सजा पर अभी तक कार्यवाही जारी है। 13 दिसम्बर 2001 को संसद पर हमले के मुख्य आरोपी तिहाड जेल में बन्द अफजल गुरू को 20 अक्तूबर 2006 को इस अपराध के लिये फॉसी की सजा सुप्रीम कोर्ट ने सुनाई तो इस ने राजनैतिक विवाद का रूप ले लिया। तब से हर रोज माफी और फॉसी का इन्तेजार कर रहे अफजल गुरू के साथ आखिर क्या होगा इस घटना के 10 वर्ष गुजर जाने के बाद भी कुछ नही कहा जा सकता। 2002 में अक्षरधाम मंदिर पर हमलावरो को फांसी देने का मामल भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। 2005 में दीपावली के मौके पर दिल्ली के बाजारो में खुशियो के बदले मौत बाटने वाले बाटने वाले 2006 में संकटमोचन मंदिर और 2006 में मुम्बई लोकल टेनो में विस्फोट करने आतंकियो को सजा मिलने में अभी क्यो और कितना वक्त लगेगा पता नही। आज पूरी दुनिया आतंकवाद के मुद्दे पर एक है किन्तु हमारे देश के राजनेता और राजनीतिक पार्टिया आने वाले चुनाव के लिये इस गम्भीर मुद्दे पर भी अपना अपना वोट बैंक पक्का कर रोटिया सेकने में लगी है। आज देश के सियासी लोगो को देश से ज्यादा आतंकवादियो की जान की ज्यादा फिक्र है। देश भर के विभिन्न अलगाववादी संगठन, मानवाधिकार संस्थाए और अपने अपने वोट बैंक पर नजर जमाये राजनैतिक नेता अफजल गुरू को फॉसी से बचाने के लिये काफी दिनो से सरकार पर दबाव बनाने के साथ ही इस फिराक में लगे है कि किसी भी तरह ये फॉसी टल जाये।
पिछले निदो कांग्रेस की संसदीय दल की बैठक की शुरूआत पार्टी अध्यक्ष सोनिया गॉधी ने वाराणसी विस्फोट और आतंकवाद के भाषण से जरूर की लेकिन अफजल की फॉसी पर सोनिया खामोश रही। लेकिन जब लोक सभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने अफजल गुरू को अब तक फॉसी न होने का मुद्दा उठाया तो सुषमा के ब्यान पर चिे हुए गृह मंत्री ने उल्टै विपक्ष पर राजनीति करने का आरोप लगा दिया। वही चिदंबरम ने कहा कि शहीदो की शहादत के दिन पर (सुषमा) उन के साथ शब्दो के युद्व में फंसना नही चाहता। संसद और मुम्बई ताज हमले के बाद भी ये सियासी लोग आतंकवाद के खिलाफ आज तक एकजुट नही हो पाये। वही आतंकवाद के खिलाफ सख्त कानून के लिये देश की सुरक्षा एजेंसिया सरकार और सियासी लोगो के हाथो की कठपुतलिया बनी होने के कारण कोई भी सख्त कार्यवाही करने के नाम पर मजबूर है।
भारत को बहुत पहले अजमल आमिर कसाब और अफजल गुरू को फॉसी देकर अमेरिका सहित पूरी दुनिया को ये दिखाना चाहिये था कि वो आतंकवाद के विरूद्व सब से अधिक सकि्रय और आक्रामक है। भारत में आतंकवाद की भेट चे लगभग 80 हजार से अधिक नागरिको के परिवारो को खुशी मिलती अगर कसाब और अफजल गुरू को उसी वक्त पर फॉसी मिलती। अन्ना हजारे जी को भ्रष्टाचार के साथ इस मुद्दे को भी अपने आन्दोलन में उठाना चाहिये था और सरकार से अपील करनी चाहिये थी कि देश की विभिन्न जेलो में बन्द आतंकवादियो के केस पर एक दो महीने के अन्दर अन्दर कार्यवाही कर ऐसे तमाम लोगो को फांसी पर लटका दिया जाये जिन्होने भारत की तरफ गलत निगाह डाली। हमारे देश में सदियो से एक नारा लगाया जाता है “जो हमसे टकरायेगा चूर चूर हो जायेगा’’ पर ये नारा भी सिर्फ दूसरे नारो तक ही सीमित है हम, हमसे टकराने वालो को सालो गुजर जाने के बाद भी आज तक मिट्टी में नही मिला पाये है। हा अमेरिका ने अपने देश अपनी सीमा के बाहर दूसरे देश में घुस कर या यू कहू के आतंक के ग में घुस कर दुनिया के सब से खूंखार आतंकी ओसामा बिन लादेन को अभियान “आपरेशन जेरोनिमो’’ में 79 अमेरिकी सील कंमाडो के जरिये अन्जाम देकर। अमेरिका ने पूरी दुनिया को ये दिखा दिया कि जो उन से टकरायेगा मिट्टी में मिल जायेगा।
भोसले जी आप ने अमेरिका की फितरत को काफिकुछ समझा है. वह आतंकवादियों का इस्तेमाल अपने अनेक हितों को साधने के लिए कर रहा है. आर्मस्ट्रांग के चान्द्रमान पर जाने के बारे में अमेरिकियों द्वारा प्रकट किये संदेहों के इलावा इस ढोल के और भी अनेक पोल हैं.
– जिस कथित वार्ड ट्रेड सेंटर को गिराने का बदला लेने का दावा अमेरिका कर रहा है, वह ट्रेड सेंटर लादेन के आतंकवादियों ने गिराया था या नहीं; इसपर अनेक संदेह व प्रश्न चिन्ह लगे हुए है. इतकी के सांसद ‘ग्युलितो चीज़ा’ की बनी दिकुमेंत्री ‘जीरो’ ले अनुसार तो अमेरिका ने कुछ आतंकवादियों को सी.आई.ए की मदद से वार्ड टावर गिराने के के लिए जाल में फंसाया और उनसे ट्रेड सेंटर गिवाये. इतना ही नहीं, जहाज़ टकराने से उन कक्रीत,स्टील के टावरों का गिरना असंभव था. वास्तव में उन्हें हमन कन्त्रोलेद दायानामाईट्स द्वारा गिराया गया. ये सब ग्युलितो चीज़ा ने अनेक प्रमाण देकर सिद्ध किया है. यु ट्यूब पर अनेकों क्लिपिंग इस विषय पर मिल जायेंगी.
– अमेरिका ने अपने ३००० लोगों को ट्रेड सेंटर में मरवा कर ईराक में हत्याकांड करने का परमिट हासिल कर लिया. अफगानिस्तान में हत्याओं ला लाइसेंस ले लिया. सारे संसार में दहशत फैला कर अपने झंडे के नीची आने का वातावरण बना लिया. अपने कुकर्मों से दुनिया की दृष्टि भटका दी. इस प्रकार अनेक निशाने उसने साधे. अतः इस दानव के चरित्र को बड़े ध्यान से समझने की ज़रूरत है.
डॉ.राजेश कपूर की बात एकदम तथ्यात्मक है की दुनिया का सबसे बड़ा दुश्मन या आतंकवादी तो अमेरिका स्वयं है, अमेरिका सबसे बड़ी आतंकी घटना तो अमेरिका में वहां के मूल निवासियों को खदेड़ कर कर चुका है, वही आतंकवाद की फसल में खाद डालता रहता है ताकि उसके हथियारों का व्यापार (बल्कि महाउद्योग कहना उचित होगा) निर्वाध रूप से चलता रहे, संपन्न मुस्लिम देशों के नागरिको को लड़ाता रहता है और ना जाने क्या खुराफात करता रहता है जो आम लोगों की समझ से बाहर है, चंद्रमा पर जाने का कितना बड़ा नाटक वह खेल चुका हैं जिसकी सत्यता पर खुद अमेरिकी सवाल उठाते ही रहते हैं पर एक बात समझ से परे है की अपने सबसे बड़े चमचे पाकिस्तान को ही उसने इस नाटक का रंगमंच क्यों बनाया जबकि यह काम वह अफगानिस्तान में ज्यादा आसानी से कर सकता था. हालांकि आतंकवाद की भर्त्सना हमेशा होना चाहिए पर इस अमेरिका की भी उतनी ही भर्त्सना होनी चाहिए. एक नंबर का झूटा अमेरिका, पर एक बात तो अवश्य हुई है की नए आतंकवादियों की आत्मा जरूर काँप गयी होगी.
अमेरिका के बनाये मुर्ख न बन जाएँ कहीं हम. संसार के लिए लादेन से कई गुना अधिक खतरनाक तो अमेरिका है, इस बात को समझब\ने का प्रयास करिए. लादेन की ह्त्या के ड्रामें को आँखे खोल कर देखिये. जो मरा वह लादेन कहाँ है ? याद करिए की लादेन के चेहरे पर कितनी कोमलता और बुधिमत्ता नज़र आती थी ? कहाँ औरतों जैसा लादेन का कोमल चेहरा और कहाँ यह मूढ़, उजड्ड, गंवार चेहरे वाली यह लाश. यह लादेन हो ही नहीं सकता. वैसे भी तो लादेन की दाढी कुछ-कुछ सफ़ेद नहीं होनी चाहिए थी?
– एक और बात. अगर लादेन आज तकज़िंदा होता तो वह अब तक अमेरिका को धमकी देने वाले अनेक वीडिओ क्लिप जारी कर चुका होता. पर वर्षों से केवल उसके सहायकों की क्लिपिंग ही देखने को मिलती रही है, ऐसा क्यूँ ? क्या इसे नहीं लगता की वह बेचारा तो कभी मारा जा चुका है, अमेरिका उसे ज़िंदा दिखा कर दुनिया को डरा-डरा कर अपनी शरण में लाने की कोशिश करता रहा, अपने मुस्लिम हत्याकांडों पर पर्दा डालने के लिए लादेन के भय का इस्तेमाल करता रहा. जिहादी आतंकी भी इस झूठ पर शायद इस लिए चुप रहे की लादेन के नाम पर उनका सिक्का चलता रहे.
– जिहादी आतंक वास्तव में दुनिया के लिए उतना बड़ा खतरा है नहीं जितना की उसे प्रचार माध्यम ( अमेरिकी दबाव में ) दिखा रहे हैं. पहले न. का असली ख़तरा तो सारे संसार के लिए स्वयं अमेरिका है और दूसरे न. पर है चीन, इसे गहराई से देखना, समझना चाहिए.
शादाब जी अति उत्तम लेख हेतु अभिनन्दन. काश देश में आप सरीखे देशभक्तों को प्रोत्साहन मिले ? पर वर्तमान सरकार तो देशद्रोहियों की रक्षक और देश भक्तों की दुश्मन है, अनगिनत अवसरों पर यह साबित हो चुका है. ऐसी सरकार को इसकी करनियों का दंड तो जनता ही दे सकती है. विश्वास है की अब और अधिक इन विदेशियों की कठपुतली सरकार का शासन इस देश में नहीं चल सकेगा.
अमेरिका ने पुलिस, न्यायधीश एवं दंडाधिकारी की भूमिका एक साथ दिखाते हुए जिस प्रकार ओसामा को मारा और सुपुर्दे-सागर किया वह व्यवहार अनुकरणीय नहीं है…… लेकिन अमेरिका की कार्यशैली ने इस्लामिक कट्टरपंथियों के अन्दर झुरझुरी पैदा कर दी है और उनकी सात पीढी भी अब अमेरिका के विरुद्ध कोई भी आतंकवादी घटना को अंजाम देने की हिम्मत नहीं कर पाएगी…. हमें भारत के केंद्र में नरेन्द्र मोदी जैसा नेता चाहिए जो आतंकवाद के खिलाफ जीरो टोलरेंस रखता हो. साथ ही हमें दिग्विजय सिंह एवं तीस्ता सीतलवाद जैसे आतन्कवादीयो से सहानुभूति रखने वाले नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को भी कानून के कटघरे में खडा करना होगा.