क्यों दिखानी पड़ी भाजपा को सख्ती ?

  केवल कृष्ण पनगोत्रा

खबर है कि भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सभी राष्ट्रीय और प्रदेश प्रवक्ताओं को पार्टी लाइन से हटकर विवादित बयान नहीं देने का फरमान जारी किया है। यानि हजरत मोहम्मद साहब पर भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा के विवादित बयान के बाद भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने प्रवक्ताओं और पैनलिस्ट की लगाम कसी है। इसके साथ ही भाजपा ने धार्मिक भावनाएं भड़काने वाले 38 नेताओं की लिस्ट बनाई है । इनमें से 27 नेताओं को कड़ी हिदायत दी गई है और उनसे कहा गया है कि कोई भी बयान देने से पहले पार्टी से अनुमति लें।
पार्टी की समझ के मुताबिक अनंत कुमार हेगड़े, गिरिराज सिंह, संगीत सोम, शोभा करंडलाजे, तथागत राय, प्रताप सिन्हा, विनय कटियार, महेश शर्मा, टी राजा सिंह, विक्रम सैनी, साक्षी महाराज जैसे भाजपा नेताओं को धार्मिक भावनाएं आहत करने वाले बयान देने वाला माना गया है।
पिछले कई वर्षों से नफरती भाषणों (hate speech) को सहज सहन करने वाली भाजपा को इसलिए यह सख्ती दिखानी पड़ रही है, क्यों कि इसके दो प्रवक्ताओं नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल ने ने पैगम्बर मुहम्मद साहब और इस्लाम को लेकर विवादास्पद टिप्पणियां की थीं।
परिणाम यह हुआ कि 56 इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी विवादास्पद टिप्पणियाें की निंदा करके एक तरह से भारत सरकार को यह संदेश दिया कि दुनिया की 1.89 बिलियन यानि लगभग 25 प्रतिशत आबादी भारत में बढ़ते जा रहे इस्लामिक विरोधी नफरती भाषणों और टिप्पणियाें से नाराज़ है।
यह नाराज़गी इसलिए भी स्वाभाविक थी क्यों कि इस्लामी सहयोग संगठन का उद्देश्य मुस्लिम राज्यों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के साथ इसके इस्लामी आस्था और पवित्र स्थलों की सुरक्षा भी है।
यहां यह समझना भी जरूरी है कि भाजपा नेताओं की विवादित टिप्पणियाें का विरोध अगर आर्थिक लिहाज़ से कमजोर किसी एकाध इस्लामी देश ने किया होता तो भाजपा शायद ही परवाह करती। मगर इस्लामी सहयोग संगठन में सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे खाड़ी देश भी हैं जो भारत के लिए बहुत ज्यादा अहमियत रखते हैं।
यहां यह भी समझना होगा कि खाड़ी देशों की नाराज़गी के भारत के लिए क्या मायने होंगे?
यदि हम अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के संदर्भ में देखें तो खाड़ी देश कई जरूरतों के लिए भारत पर निर्भर हैं लेकिन भारत को कच्चे तेल की 60 प्रतिशत जरूरत खाड़ी देशों से पूरी होती है। भारत की हर रोज़ 50 लाख टन बैरल कच्चे तेल की आपूर्ति खाड़ी देशों से होती है। भारत को न सिर्फ अपनी ऊर्जा जरूरतें अपितु सामरिक एवं रणनीतिक जरूरतों के लिए भी कच्चे तेल का आयात करना पड़ता है क्योंकि भारत की घरेलू क्षमता न के बराबर है।
संयुक्त अरब अमीरात हमारा तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है।
खाड़ी के देशों में भारतीय मज़दूर और पेशेवर भारी संख्या में काम करते हैं। ऐसे ही अप्रवासी कर्मियों की वजह से भारत दुनिया में सबसे ज्यादा प्रेषित धन (remittance) पाने वाला देश है। हर साल देश में 80 अरब डालर से ज्यादा की राशि मात्र खाड़ी देशों से प्राप्त होती है। यही वजह है कि भारत के विदेश मंत्रालय को यह कहकर सफाई भी देनी पड़ी और ठसक भी कायम रखनी पड़ी कि भारत के लिए सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात चिंता का विषय है न कि ओ आई सी है।
विदेश मंत्रालय भले ही खाड़ी देशों सहित इस्लामी मुल्कों को दी गई सफाई में अपने पूर्व प्रवक्ताओं नुपूर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल के खिलाफ कार्रवाई करते हुए विवाद को ठंडा करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन एक बात से भी इन्कार नहीं कि मामला काफी गंभीर है। भारत और खाड़ी देश आर्थिक रूप से भी एक-दूसरे से गहरे जुड़े हैं। वैश्विक मंच पर भी दोनों को एक दूसरे की जरूरत पड़ती है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान जिस तरह से खाड़ी के देशों ने कश्मीर सहित अन्य मुद्दों पर पाकिस्तान की अनदेखी की है, उससे भारत के लिए इन देशों के महत्व को समझा जा सकता है।
नुपूर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल की विवादास्पद टिप्पणियों को लेकर जिस तरह से भाजपा ने कार्रवाई की है उससे स्पष्ट है कि भारत के लिए खाड़ी देश बहुत अहम हैं। भारत न सिर्फ खाड़ी देशों के कच्चे तेल पर निर्भर हैं बल्कि उनके साथ हमारे सदियों पुराने संबंध हैं, जिनका खराब हो जाना एक तो भाजपा के लिए भी शुभ नहीं होता और दूसरे 2014 के बाद खाड़ी देशों के साथ संबंधों को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सारी मेहनत खाक हो जाती।
बेशक इस्लामी सहयोग संगठन और दुनिया में भाजपा ने भारत की पंथ निरपेक्ष छवि और साख को फिलहाल धूमिल होने से बचा लिया है मगर अहम सवाल तो यह भी है कि भारत की जनता में बढ़ती सांप्रदायिक नफ़रत कैसे खत्म हो। *

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here