भारतीयों के प्रति क्यों नहीं थम रही नस्लीय हिंसा?

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एक तरफ भारतीय वह काम कर रहे हैं जो कार्य नासा और अन्य यूरोपीय साइंस से जुडी एजेंसियाँ मिलकर नहीं कर सकीं। चंद्रमा पर जल के पुख्ता प्रमाण खोज निकालना, कोपेनहेगन में दुनिया के सामने पर्यावरण सम्बन्धी ऐसा दस्तावेज रखना, जिसे स्वीकारने में किसी को परेशानी न हो, ऑस्कर पुरस्कारों तक की यात्रा सहजतापूर्वक कर जाना, दुनिया की सबसे बडी महाशक्ति बनने की कगार पर धीरे-धीरे चलना, विश्व की सबसे तेजी से आगे बढती अर्थव्यवस्था बनना तथा धर्म-अध्यात्म या मानवीय जीवन से जुडे प्रत्येक पहलू में अपना सीधा हस्तक्षेप रखना। यह स्वप्न सुखद अहसास कराता है कि हमारा देश भारत विश्व के उन चुनिंदा देशों में से है जो जनसंख्या, विज्ञान, जीवन की विविधता, सभ्यता, संस्कृति और रचनाधर्मिता के मामले में अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए है।

वहीं दूसरा एक ह्श्य और दिखाई देता है। भारत की विश्व के अन्य देशों में वह स्थिति जो उसे शक्तिशाली और स्वाभिमानी बनने से रोकती है, स्वयं के प्रति आत्मसम्मान के भाव में कमी का होना। हाँ! यही वह कारण है जिसके अभाव में भारत की सारी तरक्की बेमानी सी लगती है। कौन भारतीय चाहता है विदेशों में जाकर नौकरी करे, अपनी जमीन तथा अपनों से दूर होकर जीये। अधिक धन कमाने और आगे बढने का स्वप्न ही तो है जो किसी विद्यार्थी और हिन्दुस्तानी प्रतिभा को मजबूर करता है कि वह विदेशों में जाकर अपने परिवार तथा स्वयं की सुख-सुविधाओं के लिए धन कमाये, लेकिन जब विदेशों में उनके साथ नस्लीय हिंसा का दौर चले और भारत का विदेश विभाग हल्की-फुल्की टिप्पणी करके अपने कार्य से इतिश्री कर ले, तब जरूर लगता है कि तेजी से वैश्विक परिह्श्य में छाने वाले भारत का स्वाभिमान कहीं खो गया है।

हमारा आत्म सम्मान केवल पाकिस्तान के मामले में ही क्यों जागता है? अन्य देश कितना भी बुरा क्यों न करते रहें, हिन्दुस्तान की सेहत पर कुछ असर नहीं होता। शायद यही कारण है जो आस्ट्रेलिया में अज्ञात हमलावरों ने अब भारतीय युवक नितिन गर्ग की चाकू से गोदकर हत्या कर दी। अभी तक केवल मारपीट या दुर्व्‍यवहार के मामले ही प्रकाश में आते थे।

केवल आस्ट्रेलिया ही ऐसा देश नहीं, जहाँ भारतीयों के साथ नस्लीय छेडछाड की जाती है। ब्रिटेन, अमेरिका, नेपाल एवं अनेक मुस्लिम देश भी इस मामले में किसी से पीछे नहीं हैं। पिछले वर्ष सिर्फ आस्ट्रेलिया में 100 से अधिक भारतीयों के प्रति नस्लीय हिंसा के मामले प्रकाश में आए थे। उसके पूर्व 2008 में 17 केस उजागर हुए। इस वर्ष का यह पहला अपराध है। पूर्व में बढते भारतवंशियों के प्रभाव के कारण स्थानीय निवासी इण्डियन्स गो बेक के नारे लगाने के साथ हिंसाग्रस्त होने पर भारतीयों के साथ मारपीट करते थे, पहली बार ऐसा हुआ है जब उससे आगे बढकर किसी भारतीय को जान से मारने का कुत्सित अपराध किया गया है। वस्तुत: इस घटना से साफ हो गया है कि विदेशों में अध्ययन करने वाले छात्र तथा रोजी रोटी की तलाश में गये भारतीय वहाँ सुरक्षित नहीं हैं।

नस्लीय हिंसा के सम्बन्ध में आस्ट्रेलियाई लिबरल पार्टी के सीनेटर तथा एक आयोग के अध्यक्ष गैरी हम्फ्रीज का यह बयान भी गले नहीं उतरता कि भारतीयों पर हो रहे हमले केवल लूटपाट के इरादे से किए जा रहे हैं। इनके पीछे कोई नस्लीय भेदभाव नहीं, क्योंकि यह सर्वविदित है कि सभी भारतीयों के पास स्थानीय नागरिकों की अपेक्षा अधिक धन नहीं है। वह स्वयं छोटे-बडे कार्यों से पूँजी संग्रह करते हैं, उसमें से भी वह एक हिस्सा भारत में रह रहे अपने स्वजनों के पास भेज देते हैं। फिर माह के अंत में उनके पास ऐसी मोटी रकम नहीं बचती, जिसको पाने के लिए आस्ट्रेलियन अपराधी उन पर हमला करें और लूटपाट कर भाग जायें।

आस्टन्ेलिया में भारतीय छात्रों पर बढते हमलों के बीच आस्ट्रेलियाई यूनिवर्सिटियों द्वारा संयुक्तरूप से कराई गई स्टडी में यह पाया गया कि 85 प्रतिशत आस्ट्रेलियन महसूस करते हैं कि देश में नक्सली भेदभाव बढा है। 11 वर्षों तक चला यह अध्ययन बताता है कि सांस्कृतिक भिन्नताएँ, सामाजिक सौहार्द्र के सामने एक खतरा खडा करती हैं। अध्ययन का निष्कर्ष यह भी है कि 6.5 फीसदी आस्ट्रेलियाई पूरी तरह बहुसंस्कृतिवाद के खिलाफ हैं। इस रिपोर्ट से स्पष्ट हो रहा है कि आस्ट्रेलिया के अधिकांश स्थानीय नागरिकों के मन में भारतीयों के प्रति नकारात्मक भाव हैं।

आमेरिका के टेक्सस से कुछ माह पूर्व खबर आई थी कि अज्ञात लोगों ने एक सिख युवक पर हमला कर दिया। वहाँ भारतीय घरों पर लुटेरों की नजर रहती है। लंदन में एक भारतीय पुरोहित के परिवार पर नस्लीय हमला किया गया, भारतीय मूल की फोटोग्राफर को सरेआम ब्रिटिश ऐक्टर ने थप्पड मारा। नेपाल में भारतीय पुजारियों के साथ पशुपतिनाथ मंदिर के अंदर सार्वजनिक रूप से पिटाई करने के बाद उन्हें भारत वापिस जाने के लिए विवश किया गया है। इन सब वैश्विक घटनाओं से साफ है कि भारत के प्रति विश्व के अनेक देशों का नजरिया बदल रहा है। तेजी से अंतर्राष्ट्रीय शक्ति के रूप में उभरती भारत की प्रतिभा को वह बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं।

हांलाकि आस्ट्रेलिया में हुए हादसे को लेकर केंद्र सरकार को गंभीरता से सोचने की जरूरत है, क्यों विदेशों में भारतीय नस्लीय हिंसा का शिकार हो रहे हैं? एक सम्प्रभू गणराज्य भारत आखिर इतना मजबूर किसलिए है? क्यों वह उस देश को जहाँ हिंसा हो रही है, तल्ख शब्दों में जवाब नहीं दे पा रहा? इस विषय पर भारत सरकार द्वारा शीघ्र ठोस और कारगर कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। अन्यथा हम आत्मसम्मान के स्तर पर बहुत कुछ खो चुके होंगे।

-मयंक चतुर्वेदी

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मयंक चतुर्वेदी मूलत: ग्वालियर, म.प्र. में जन्में ओर वहीं से इन्होंने पत्रकारिता की विधिवत शुरूआत दैनिक जागरण से की। 11 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय मयंक चतुर्वेदी ने जीवाजी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के साथ हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम.फिल तथा पी-एच.डी. तक अध्ययन किया है। कुछ समय शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक भी रहे, साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले मयंक चतुर्वेदी पांचजन्य जैसे राष्ट्रीय साप्ताहिक, दैनिक स्वदेश से भी जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखना ही इनकी फितरत है। सम्प्रति : मयंक चतुर्वेदी हिन्दुस्थान समाचार, बहुभाषी न्यूज एजेंसी के मध्यप्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं।

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