संसद भवन के उद्घाटन पर मोदी-विरोध की राजनीति क्यों?

0
35

-ललित गर्ग-
दुनिया में भारत एवं भारतीय लोकतंत्र का गौरव एवं सम्मान बढ़ रहा है, वहीं भारत में लोकतंत्र के इतिहास की एक महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक घटना का बहिष्कार करते हुए समूचा विपक्ष भारतीय लोकतांत्रिक उजालों पर कालिख पोतने का प्रयास कर रहा है। यह समय न केवल नये संसद भवन के उद्घाटन बल्कि लगातार दुनिया में भारत एवं उसके महानायक के सम्मान की घटनाओं को लेकर गर्व एवं गौरव करने का है। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन ऐतिहासिक क्षणों को यादगार बनाते हुए विपक्ष विवेक एवं परिपक्व सोच का परिचय देने की बजाय संकीर्ण, बिखरावमूलक एवं विनाशकारी राजनीति का परिचय दे रहा है। अब यह लगभग तय हो चुका है कि लोकतंत्र का मंदिर कही जाने वाली संसद के नए भवन के उद्घाटन समारोह से विपक्ष के 19 दल गायब रहेेंगे। इन विपक्षी दलों ने बाकायदा घोषणा कर दी कि वे रविवार को होने वाले इस समारोह का बहिष्कार करेंगे। कारण यह है कि संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों करना तय किया गया है, जबकि विपक्षी दलों के मुताबिक यह काम राष्ट्रपति के हाथों होना चाहिए।
भारत के लिये सौभाग्य की बात है कि नरेन्द्र मोदी जैसा महानायक प्रधानमंत्री के रूप में मिला है। वैसे तो नौ वर्षों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कई देशों ने अपने सर्वाेच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया है लेकिन इसी सप्ताह उनकी जापान, पापुआ न्यू गिनी और आस्ट्रेलिया यात्रा के दौरान उन्हें जो सम्मान मिला, वह हर भारतीय को अभिभूत कर देने वाला है। यह सम्मान उनके व्यापक सोच, मानवीय दृष्टिकोण, कुशल राजनीतिक नेतृत्व और दूरदृष्टि का प्रतिबिम्ब है जिसने वैश्विक मंच पर भारत के उदय एवं उसकी साख को मजबूत किया है। यह सम्मान दुनिया भर के देशों के साथ भारत के बढ़ते संबंधों को भी दर्शाता है। सौ साल में आई भयंकर कोरोना महामारी, दूसरी तरफ युद्ध की स्थिति में बंटा हुआ विश्व और संकट भरे माहौल को प्रधानमंत्री मोदी ने जिस कुशलता, परिपक्वता एवं दूरदर्शिता से सम्भाला इससे पूरा देश तो आत्मविश्वास से भर ही उठा बल्कि पूरी दुनिया में भारत को लेकर सकारात्मकता, उम्मीदें और भरोसा बढ़ा। पूर्व के छोर पर स्थित छोटे से देश पापुआ न्यू गिनी जैसे अनेक जरूरतमंदों देशों की भारत ने मदद कर मानवता का उदाहरण प्रस्तुत किया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पापुआ न्यू गिनी पहुंचने पर सारे शासकीय प्रोटोकाल को तोड़ कर उस देश के प्रधानमंत्री जेम्स मारापे ने न केवल मोदी का स्वागत किया साथ ही एयरपोर्ट पर सबके सामने मोदी के पांव भी छूए। यह अपने आप में अभूतपूर्व है कि विश्व के इतिहास में आज तक कभी भी राष्टाध्यक्ष ने किसी दूसरे राष्ट्राध्यक्ष के पांव सार्वजनिक रूप से नहीं छूए हैं। किसी जमाने में पेशावर से पापुआ न्यू गिनी तक हिन्दू संस्कृति का साम्राज्य था। पांव छूने की इस घटना ने हमारी उस प्राचीन संस्कृति को एक बार फिर से मजबूत कर दिया। भारत की जनता ने महानायक मोदी को एक नए भारत के शिल्पकार के रूप में देखा। उनको मिले सम्मान से हर भारतीय अभिभूत एवं गौरवान्वित हैं, स्वस्थ राजनीतिक धर्म का पालन करते हुए तमाम विवादों के रहते विपक्ष को उनको मिल रहे सम्मान का स्वागत करना चाहिए। लेकिन सम्मान तो दूर की बात उनके द्वारा संसद भवन के लोकार्पण करने के कारण ही इस ऐतिहासिक घटना का बायकाट कर विपक्ष ने अपने विपक्षी धर्म को धुंधलाया है, जो शर्म एवं लज्जाजनक है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन में जबरदस्त बोडिंग दिखी। बाइडेन और मोदी गले तो मिले ही साथ ही बाइडेन का यह कहना अपने आप में अद्भुत है कि ‘‘आप तो अद्भुत लोकप्रिय हो। अमेरिका में आपके कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अनेक बड़ी-बड़ी हस्तियां मेरे से टिकट उपलब्ध करने के लिए सिफारिशें कर रही हैं। मुझे तो आपके आटोग्राफ लेने चाहिए।’’ आस्ट्रेलिया के सिडनी में जिस तरह से पूरा स्टेडियम वहां बसे भारतीयों ने ठसाठस भर दिया और पूरा स्टेडियम मोदी-मोदी के नारों से गुंजायमान हो उठा। उसे देखकर तो आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथोनी अल्बानीस भी हैरान रह गए। जिस तरह से प्रधानमंत्री मोदी की अपील पर पूरा स्टेडियम इंडिया-इंडिया के शोर से गूंज उठा उसे देखकर आस्ट्रेलियाई पीएम को भरे मंच से कहना पड़ा की मोदी ही बॉस हैं। दुनिया की बड़ी शक्तियां जिसे इतना सम्मान दे रही है, ऐसे युगपुरुष के करकमलों से संसद भवन का उद्घाटन होना सौभाग्य की बात है। इस सौभाग्य को घटित होते हुए देखना एवं उसमें शामिल होने का भाव विपक्ष में जागना, कहीं-न-कहीं विपक्ष को उजाले साये ही देता। लेकिन जो अंधेरे सायों से प्यार करते हैं, उनकी आंखों में किरणें आंज दी जाये तो भी वे यथार्थ को नहीं देख सकते। क्योंकि उन्हें उजाले के नाम से ही एलर्जी है। तरस आता है विपक्ष की बुद्धि एवं विवेकहीनता पर, जो सूरज के उजाले पर कालिख पोतने का असफल प्रयास करता है, आकाश में पैबंद लगाना चाहता हैं और सछिद्र नाव पर सवार होकर राजनीति रूपी सागर की यात्रा करना चाहता हैं।
नरेन्द्र मोदी की लगातार बढ़ती साख एवं सम्मान से समूचा विपक्ष बौखलाया हुआ है। मोदी का जितना विरोध किया जा रहा है, उतनी ही उनकी प्रतिष्ठा एवं जनस्वीकार्यता बढ़ती जा रही है। एक तरह से विरोध उनके लिये वरदान बन रहा है। इस युगनायक पर कीचड़ उछालने की जिस तरह की हरकतें की गई, वर्तमान में वे पराकाष्ठा तक पहुंच गयी है। पर इससे मोदी का वर्चस्व धूमिल होने वाला नहीं है। क्योंकि उनकी राजनीति एवं नीति विशुद्ध है और सैद्धान्तिक आधार पुष्ट है। विरोध करने वाले दल एवं राजनेता स्वयं भी इस बात को महसूस करते हैं। फिर भी वर्ष 2024 के चुनावों के मध्यनजर जनता को गुमराह करने के लिये और उसका मनोबल कमजोर करने के लिये वे उजालों पर कालिख पोत रहे हैं, इससे उन्हीं के हाथ काले होने की संभावना है। विपक्षी दल एवं उनके नेताओं को सद्बुद्धि आए, वे अपना श्रम एवं श्रम सार्थक एवं उद्देश्यपरक राजनीति को मजबूत करने में लगाये तो भारत का लोकतंत्र ज्यादा सुदृढ़ होगा। विरोध ही करना हो तो स्तर का विरोध करें, क्योंकि लोकतंत्र में स्तर का विरोध एवं आलोचना का स्वागत है और इससे लोकतंत्र को मजबूती ही मिलती हैं।
विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति द्वारा नये संसद भवन के उद्घाटन का सुझाव दिया, सही है। लेकिन इसको लेकर जो जड़ता एवं हठधर्मिता का प्रदर्शन किया, वह गलत है। विपक्ष का यह कहना है कि प्रधानमंत्री सदन का हिस्सा और शासन प्रमुख होने के नाते अक्सर विपक्ष के निशाने पर रहते हैं और उन्हें उस तरह की निर्विवाद हैसियत हासिल नहीं होती, जो संवैधानिक प्रमुख होने के नाते राष्ट्रपति को प्राप्त होती है। लेकिन यहां बड़ा सवाल यह है कि इस सुझाव पर विपक्ष को सामान्य स्थिति में कितना जोर देना चाहिए था। क्या इसे इस सीमा तक खींचना जरूरी था कि उस आधार पर समारोह का ही बहिष्कार कर दिया जाए? निश्चित रूप से विपक्ष की यह हठधर्मिता सहज-स्वाभाविक नहीं कही जा सकती। यह इस बात का सबूत है कि लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूती देने की बजाय प्रधानमंत्री का विरोध ही विपक्ष की नियति बन गयी। नौ वर्ष का कुशल देश संचालन, विकास की नयी इबारत लिखना, विश्वमंचों पर भारत की साख को बढ़ाना आदि घटनाओं के साक्षी रहे लोगों का अनुभव है कि इस अवधि में जितना एवं जैसा विरोध मोदी का हुआ, शायद पहले कभी किसी प्रधानमंत्री का नहीं हुआ। मोदी का विरोध कोई नयी बात नहीं है। आश्चर्य इस बात का है कि विरोध की तीव्रता एवं दीर्घता के बावजूद मोदी के अस्तित्व पर कोई आंच नहीं आयी। हां, इन स्थितियों सेे सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच मतभेदों की खाई बहुत ज्यादा चौड़ी हो चुकी है। दोनों के बीच विश्वास का संकट पैदा हो गया है। यही चिंता की सबसे बड़ी बात है और एक आदर्श एवं सफल लोकतंत्र को कमजोर करने की द्योतक हैं। प्रधानमंत्री की आलोचना करना विपक्ष के लिए आसान हो सकता है लेकिन उनके त्याग को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। भारत की जनता उन्हें एक नए भारत के अभ्युदय के आधारस्तंभ के रूप में देख रही है। ऐसे में विपक्ष को भगवान सद्बुद्धि दें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,024 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress