जाकिर नाईक पर अब तक चुप क्यों थी भारतीय मीडिया

Zakir-Naikईस्लामिक तकरीरों को लेकर मुस्लिम धर्मगुरू डाॅ. जाकिर नाईक के जिन वीडियो के आधार पर न्यूज चैनल रोजाना सनसनीखेज खबरें परोस रहे हैं वे वीडियों पिछले पिछले कई सालों से यूटयूब पर मौजूद थे । बांग्लादेश में मारे गये आतंकियों से जाकिर की इन प्रेरणादायी तकरीरों के कनेक्शन की खबरों के बाद ही जाकिर भारतीय मीडिया की नजरों में क्यों चढ़ा ? यह बड़ा सवाल है । क्या इससे पहले मैनस्ट्रीम मीडिया सोई हुई थी । छोटे से वीडियो को आधार बनाकर एक घंटे का शो बना देने वाले समाचार चैनलों को इससे पहले हिन्दुस्तान से हो रहा ये दुष्प्रचार क्या दिखायी नहीं दे रहा था । यू ट्यूब पर मौजूद जाकिर नाईक के एक-एक वीडियों को देखोगे तो पता चलेगा कि हिंन्दुस्तान में रहकर कितने खतरनाक तरीके से सनातन धर्म के देवी देवताओं की धज्जियाँ उढ़ाकर ईस्लामिक विचारधारा मजबूत की जा रही है । भारत में पैसे के लालच में हिन्दु से ईसाई धर्म परिवर्तन और उसके बाद हिन्दु संगठनों द्वारा उनकी घर वापसी के समाचार सुर्खियां बनते हैं । लेकिन क्यँू हैरानी नहीं होती जब लाईव कार्यक्रम के दौरान हिन्दुस्तान में ही डाॅ. नाइक जैसे धर्मगुरू सैकड़ों गैरमुंिस्लमों को एक कलमा पढ़ा कर मुस्लिम धर्म में परिवर्तित करा देते हैं । एैसे कार्यक्रम के लिये राज्य सरकारें डाॅ. नाईक को बाकायदा मैदान उपलब्ध कराती आयी हैं । पीस टीवी पर हजारों लोगों के सामने वेद, उपनिषद, गीता, जैसे हिन्दु शास्त्रों को कुरान से कमतर साबित कर किसी भी अन्य धर्म के लोगों को कलमा पढ़ाकर मुस्लिम बनाये जाने के वीडियो क्या धार्मिक भेद फैलाने के सबूत नहीं देते हैं ।
जाकिर नाईक के अनुयायियों के अनुसार वह सर्वधर्म सद्भाव के विचारों से शांति फैलाता है । लेकिन यूट्यूब पर मौजूद उसके वीडियों बताते हैं कि वह सनातन धर्म सहित दुनियाॅ ंके सभी धर्मों के खिलाफ माहोल बनाने का कार्य कर रहा है । अन्य धर्मों से इतर ईस्लाम को ही दुनियाँ का एकमात्र अच्छा धर्म साबित करना नाईक का मुख्य उद्देश्य है । कानूनन अपने धर्म का प्रचार-प्रसार गलत नहीं है लेकिन नाईक ईस्लाम के प्रचार से ज्यादा दूसरे धर्मों के बारे में दुष्प्रचार करता नजर आता है । हजारों लोगों के सामने वो कृष्ण से लेकर गणेश तक, हिंदुओ की परम्पराओं, प्रथाओं और मूर्तिपूजा तक का मजाक उड़ाता है । उसकी तकरीरंे मुस्लिम कट्टरपंथियों को बेहद पसन्द आती हैं । नौजवान लड़के उसे धर्मगुरू मानकर ईस्लाम को पूरे विश्व का धर्म बनाने की प्रेरणा ले रहे हैं । हिन्दुस्तान में रहकर नाईक यहाँ से ज्यादा विश्व के अन्य देशों में चर्चित है । भारतीय मीडिया की खबर वह ढाका में हुये हमले के बाद बना है। पड़ोसी देश से ही खबर आयी कि वे युवा आतंकवादी जाकिर के विचारों से प्रेरित थे, जिन्होनें इस्लाम का कलमा ना सुनाने पर 22 गैरमुस्लिमों की जान ले ली । इससे सक्रीय हुई भारतीय इंटेलीजेंस और मीडिया में जाकिर को लेकर अब नये खुलासे हो रहे हैं । जाकिर के यूट्यूब वीडियों की जाॅंच हो रही है तो भारत में उनके पीस चैनल को ‘बैन’ किये जाने की बात कही जा रही है ।
राजनीति ने भी इस पर अपनी रोटी सेंकना शुरू कर दिया है । कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह पर जाकिर की एक सभा में शामिल होकर उसे शांतिदूत की उपाधि देने का आरोप लग रहा है । विरोधी पार्टी को उन्होनें इत्ता सा जवाब दिया कि राजनाथ सिंह भी विवादास्पद साध्वी प्रज्ञा की सभा में गये थे । शायद उन्हें नहीं मालूम कि जाकिर के एक कार्यक्रम में हिन्दुओं के एक कथित शंकराचार्य स्वामी देवानंद सरस्वती ने बाकायदा ईस्लाम के सदके में कसीदे पढ़े थे और जाकिर को फरिश्ता बताया था । उक्त कथित शंकराचार्य महोदय (बाद में इन पर कई आरोप लगे कि यह फ्राॅड शंकराचार्य हैं) ने डंके की चोट पर कहा कि अगर कोई हिंदू कुरान का पहला कलमा ही पढ़ ले तो उसकी सारी भक्ति पूरी हो जायेगी । इस प्रशंशागान में उन्होनें कहा कि हिन्दु धर्म तो कोई धर्म ही नहीं है । वाकई नहीं है, एक विचारधारा है लेकिन यह विचारधारा इंसानों को प्रेम करना सिखाती है । दूसरे धर्मों का आदर करना सिखाती है, सनातन धर्म के नाम पर दूसरे धर्मों को मानने वालो को बेइज्जत और काफिर करने की सीख नहीं देती । कथित शंकराचार्य का यह वीडियो जाकिर के चेलो नें धुआंधार शेयर किया हुआ है । यह भी किसी दिन खबरों में दिखायी दे जायेगा ।

इस कड़ी में फिलहाल ये सवाल है कि भारतीय मीडिया एैसे सवेंदनशील मुद्दों को तब ही क्यों दिखाती है जब पूरा सच सबके सामने खुदबखुद आ जाता है। जब उस सच के छुपने की गुंजायश ही नहीं रह जाती, तब कौन सा तीर मारा जाता है। बड़े चैनलों में जाकिर अब ‘खबर’ है लेकिन दो साल पहले ही सुदर्शन जैसे कुछ छोटे चैनलों में नाईक के जहरीले विचारों पर बाकायदा श्रंखलाबद्ध स्टोरी चलायी गयीं । तब क्या एबीपी न्यूज, आज तक आदि चैनलों को नाईक के नापाक विचारों में कोई दुर्गन्ध नजर नहीं आयी थी ? मैनस्ट्रीम मीडिया पर जाकिर के हिन्दुविरोधी और आतंक समर्थित जो बयान अब प्रमुखता से दिखाये जा रहे हैं, सुदर्शन चैनल पर तीन साल पहले ही इस पर श्रंखलाबद्ध गंभीर चर्चा की जा चुकी है । बड़े आश्चर्य की बात लगती है कि सबसे ज्यादा जागरूक और जगाने की जिम्मेदारी उठाने वाले लोगों को यह तक पता नहीं चला कि जाकिर के पीस टीवी को हिन्दुस्तान में प्रसारण की अनुमति ही नहीं है । इसके बावजूद वह धल्लड़े से देखा और दिखाया जा रहा है । उधर लोगों का एक सवाल ये है कि कोई हिन्दु संत जरा सा सांई का विरोध कर दे या मंदिर र्निमाण को जरूरी बता दे तो मीडिया के लिये वह विवादास्पद बयान बन जाता है । लेकिन हिन्दुस्तान की सरजमीं से पूरे विश्व के सामने सनातन धर्म और हिन्दु देवी देवताओं के अस्तित्व से लेकर चरित्र तक पर प्रश्न लगाकर लाईव मखोल उड़ाया जाता है तो उसमें मीडिया को कोई विवादस्पकता नजर नहीं आती, क्यों ? क्या इससे दंगे भड़कने की गुंजाइश नहीं है । इस्लाम के एक पैगम्बर का कार्टून बना देने पर ही अमन के पुजारियों ने फ्रांस में कत्लेआम से पूरी दुनिया को डरा दिया कि खबरदार जो हमारे धर्म के बारे में कुछ भी उल्टासीधा कहा या सोचा तो । लेकिन हिन्दु समुदाय के कृष्ण, शिव, गणेश, गीता, उपनिषद, वेद आदि पर स्वतंत्रतापूर्वक लांछन लगाये जा रहे हैं । कृष्ण को बलात्कारी और शिव को नशेड़ी बताया जाता है । क्या इस पर लगाम नहीं लगनी चाहिये । क्या जाकिर की ये तकरीरें बहुत पहले ही खबर नहीं बननी चाहिये थीं । एैसा नहीं है कि किसी को कुछ पता नहीं होता, सब जानते हैं लेकिन एैसी स्टोरीज तय वक्त के लिये उठाकर रख ली जाती हैं ।

खैर, फिलहाल डाॅ. जाकिर नाईक का नाम टीवी चैनलों की टीआरपी का सबब बना हुआ है । उनके टीवी चैनल और वक्तव्य सभाओं पर प्रतिबन्ध की तैयारी है । अपनी तकरीरों में नाईक महाराज मुस्लिम समाज का वन्दे मातरम कहना गलत बताते हुये यहाँ तक कहते आये हैं कि अगर कोई देश एैसा कानून लागू करे जो ईस्लाम विरोधी हो तो मुस्लिम नागरिकों को उसे नहीं मानना चाहिये, चाहे इसके लिये सरकार के खिलाफ ही क्यूँ ना जाना पड़े । हालांकि अभी तक वह मानता है कि फिलहाल भारत में एैसा नहीं है । एैसी स्थिति में नाईक पर कानूनी बंदिशें क्या रंग दिखा सकती हैं यह तनावपूर्ण सवाल हो सकता है ।

हिन्दुस्तानी मुस्लिम समाज भी जाकिर पर दो फाड़ है । अगर हिन्दुस्तान का मुसलमान जाकिर नाईक की बात से इक्तिफाक रखता तो मंदिर-मस्जिद की लड़ाई पर न्यायालय के आदेश का इन्तजार नहीं किया जाता । हिन्दुस्तान में समाज पढ़कर बढ़ रहा है, उसमें भी हिन्दु जनमानस उदारवादी रवैया अपनाता है । सैक्यूलरवाद के अलावा भी अभी शांतिप्रिय लोगों की कदर हिन्दुस्तान में घटी नहीं है और ना ही घटेगी । इसका विश्वास किया जा सकता है । लेकिन जरूरी है कि धर्म के नाम पर एक दूसरे को नीचा दिखाने वालों को हिन्दु-मुस्लिम एक साथ मिलकर सबक सिखायें । नहीं तो सरहदों से ज्यादा दिलों में दूरियाँ बनाने की इन आतंकियों की चाल कामयाब हो जायेगी ।

-जगदीश वर्मा ‘समन्दर’

2 COMMENTS

  1. इस आलेख पर मैं टिपण्णी इस लिए नहीं करना चाहता था,क्योंकि मूर्ति पूजा का विरोध करने वाले और देवी देवताओं और भगवान के अवतार को न मानने वाले बहुत हिन्दू भी हैं.पूरा आर्य समाज इन सब ढोंगों के विरुद्ध है.पर मुझे यह लिखना पड़ा ,क्योंकि आपने लिखा है,”सेक्युलरवाद के अलावा भी अभी शांतिप्रिय लोगों की कदर हिंदुस्तान में घटी नहीं है और न घटेगी.इसका विश्वास किया जा सकता है.लेकिन जरूरी है कि धर्म के नाम पर एक दूसरे को नीचे दिखाने वालों को हिन्दू मुस्लिम एक साथ मिलकर सबक सिखायें.नहीं तो सरहदों से ज्यादा दिलों में दूरियां बनाने की इन आतंकियों की चाल कामयाब हो जायेगी.”
    मेरा केवल एक प्रश्न .क्या उन हिन्दू कट्टर पंथियों और मीडिया को इससे कोई सबक मिलेगी,जो दिन रात केवल आग ही नहीं भड़का रहे हैं,बल्कि उसमें पेट्रोल डालने का काम भी कर रहे हैं.मानता हूँ,इसके बाद लोग यह कहना शुरू करेंगे कि आप उनको क्यों नहीं समझाते?

  2. हमारा मीडिया केवल भड़काने व लड़ाने का काम करता है , , जो मुख्य बातें जनता तक पहुंचनी चाहिए उनसे उसका कोई मतलब नहीं होता , कुछ एक को छोड़ कर सारे चैनल बिके हुए हैं,

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