जम्मू-कश्मीर को पृथक करने वाले विवादित अनुच्छेद के संशोधन पर आपत्ति क्यों_? 

हमारे संविधान के अनुच्छेद 35 A एवं 370 दोनों जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद के उत्तरदायी बने हुए थे ! इन्हीं के कारण वहां के हिन्दुओं का व्यापक नरसंहार हुआ और शेष को पलायन करने को विवश होना पड़ा !  निसंदेह ये अनुच्छेद जो एक अस्थायी व्यवस्था थी, जिसे भारत सरकार ने अगस्त 2019 में लोकसभा और राज्यसभा में पूर्ण बहुमत से संशोधित करके राष्ट्रीय अखंडता की रक्षा की है! लेकिन यह दुःखद है कि सर्वोच्च न्यायालय में इन अनुच्छेद के संशोधन के विरुद्ध सुनवाई चल रही है!  लोकतान्त्रिक व्यवस्था में संसद से पारित राष्ट्रहित में किया गये  संवैधानिक संशोधन को न्यायालय में चुनौती देना क्या राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में नहीं आना चाहिए_?

 ऐसा संशोधन करके स्वतंत्र भारत के इतिहास में सत्ता में बैठे शासकों ने सम्भवतः प्रथम बार राजनीति को राष्ट्रनीति में परिवर्तन करने का संकल्प दिखाया था। तीन मूर्ति मोदी-शाह-डोभाल ने राष्ट्र निर्माण की चिकीर्षा का अद्भुत परिचय दिया। देश के साथ विश्वासघात करके अनुच्छेद 35 A व 370 को संविधानिक बना कर विभाजनकारी नीतियों को यथावत बनायें रखने में किसे लाभ हो रहा था ? यह नेहरू, शेख अब्दुल्ला व लार्ड माउंटबेटन की भारत के विकास में रोड़ा बनाये रखने की कुत्सित मानसिकता थी।

इन विवादित राष्ट्र तोड़क अनुच्छेदों के कारण भी पाकिस्तान व पाकपरस्त इस्लामिक जिहादी कश्मीर को “गेटवे आफ आतंकवाद” बना कर भारत में इस्लामीकरण का बीजारोपण करने का दुःसाहस करते आ रहे है। भारत का मुकुट कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर पर आतंकवादियों, अलगाववादियों व भ्रष्टाचारियों के अनगिनत प्रहारों से दशकों से बहता हुआ लहू भारत की अस्मिता को ललकार रहा था। वह चीख चीख कर पुकार रहा था कि जब तक चोटिल व घायल माथे की चिकित्सा नहीं होगी तब तक कोई कैसे स्वस्थ रह सकेगा? फिर भी “कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है” व “कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है” आदि नारे दशकों से हज़ारों बार लगाने वाले राजनेताओं ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि जब तक संविधान के अनुच्छेद 35 ए व 370 को निष्प्रभावी नहीं किया जाएगा तब तक यह लुभावने नारे देशवासियों के साथ विश्वासघात है।

इन अनुच्छेदों के दुष्परिणामों को अनेक विशेषज्ञों व लेखकों ने बार बार विस्तार से लिख वर्षों से देशवासियों को जागरूक करने में बहुत बड़ी भूमिका निभायी। भारतीय जनसंघ से बनी भारतीय जनता पार्टी  ने भी इस विभाजनकारी व्यवस्था को निरस्त करके अपने अटूट एजेंडे को मूर्तरूप देकर करोड़ों देशवासियों के ह्रदयों में भारतभक्ति का भाव भरकर वर्षों पुराने घाव को भरने का कार्य किया।

स्वतंत्र भारत के इतिहास में 5 अगस्त 2019 का दिन भी स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त 1947 के पूरक के रूप में माना जाय तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। क्योंकि सन् 1947 में पश्चिम पाकिस्तान से आये हजारों हिन्दू शरणार्थियों के परिवारों की चार पीढ़ियां जिनकी संख्या अब लाखों में है,भारतीय नागरिक होकर भी सामान्य नागरिक अधिकारों से वंचित हो रही थी। अब उनको भी स्वाभिमान के साथ एक सामान्य जीवन जीने का शेष भारतीयों के समान स्वतंत्र अधिकार मिला। इसके अतिरिक्त उन लाखों विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं को नारकीय जीवन जीने से मुक्ति मिलेगी और वे छोटे-छोटे सहायता शिविरों में रहने के कारण हो रही वंश वृद्धि की समस्याओं से भी मुक्त होंगे।अधिक विस्तार में न जाकर मुख्यतः यह माना जाय कि जम्मू-कश्मीर और लद्धाख को इस संविधानिक संशोधन से वास्तविक स्वतंत्रता मिली, तो कदापि अनुचित न होगा।

देश को आहत करने वाली ऐसी भयंकर गलतियों को दूर करना हमारे सत्ताधारियों का परम ध्येय होना ही चाहिये। वर्तमान शासकों की कार्य प्रणाली से इतिहास की राष्ट्रघाती भूलों को सुधारने की दृढ़ इच्छाशक्ति का आभास हुआ है। राष्ट्रीय एकता और संप्रभुता को चुनौती देने वाली जम्मू-कश्मीर सम्बंधित ऐसी व्यवस्था को निष्प्रभावी करके भारत वासियों में मोदी सरकार ने राष्ट्रभक्ति का अद्भुत संचार किया है। मोदी सरकार ने इन विवादित अनुच्छेदों को संशोधित करके जम्मू-कश्मीर व लद्धाख को केंद्र शासित राज्य व क्षेत्र घोषित करके भारत के नव निर्माण में एक नये संकल्प का परिचय दिया।वर्तमान अनुकूल स्थितियों में विवादित राष्ट्रतोडक संविधानिक प्रावधानों पर प्रहार करके जिसप्रकार जम्मू-कश्मीर को भारत के अभिन्न अंग होने का  स्थायित्व दिया है वह अपने आप में एक सशक्त शासकीय व प्रशासकीय कार्य है। 

क्या जम्मू-कश्मीर को देश की मुख्य धारा से पृथक करने वाले इस विवादित अनुच्छेद के संशोधन पर सर्वोच्च न्यायालय में आपत्ति करने वालों को पिछले 75 वर्षो से त्राहि-त्राहि करने वाले कश्मीरियों ( भारत की संतानों) की चीख-पुकार सुनाई नहीं देती थी या फिर वे अपने जिहादी जुनून के कारण मानवता को शर्मसार करके जन्नत जाने का मार्ग प्रशस्त करने के लिए कटिबद्ध है l 

हमारे तत्कालीन नेताओं की हठधर्मिता और त्रुटियों को सुधारने के लिए जब राष्ट्र में चारों ओर दशकों से इन संविधानिक प्रावधानों में संशोधन के लिए बार-बार शासन पर देशवासियों का दबाव पड़ रहा था, तो अनुकूल स्थिति में हुए इस एतिहासिक निर्णय को लोकतंत्र की जीत मानकर व्यापक स्वागत हुआ l 

इससे विश्व का प्राचीनतम राष्ट्र “भारत” अपने आप में गौरवान्वित हुआ । वह अपने मुकुट से पुनः सुशोभित हुआ । एक सुखद अनुभूति की आहट हुई है। वर्षों से विनाशकारी और अत्याचारी षडयंत्रकारियों के आघातों से घायल “देव भूमि कश्मीर” अब अंधकार से बाहर निकल कर अपने ज्ञानरूपी प्रकाश से मानवता को लाभान्वित करने को आतुर हुई है। हमारा आग्नेय मंत्र  “वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहितः”  राष्ट्र निर्माण की चिकीर्षा को इसी प्रकार हमें व हमारे राजनेताओं को सशक्त करता रहे तो एक दिन भारत विश्व गुरु बन कर मानवता की रक्षार्थ विश्व में अग्रणी भूमिका निभाएगा।

विनोद कुमार सर्वोदय

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