डा. राधेश्याम द्विवेदी
परिचय:- जंगली सुअर (Sus scrofa) या वाराह, सुअर की एक प्रजाति है। यह मध्य यूरोप, भूमध्य सागर क्षेत्र (उत्तरी अफ्रीका, एटलस पर्वत) सहित एशिया में इंडोनेशिया तक के क्षेत्रों का मूल निवासी है। हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु ने दशावतार में से एक अवतार वराहावतार में इस पशु के रूप में ही अवतरण कर पृथ्वीको पाताल से बाहर निकाला था। सूअर (Pig) आर्टियोडेक्टिला गण (Order Artiodactyla) के सुइडी कुल (family Suidae) के जीव है। संसार के सभी जंगली और पालतू सूअर इसके अंतर्गत आते हैं। इन खुर वाले प्राणियों की खाल बहुत मोटी होती है और इनके शरीर जो थोड़े बहुत बाल रहते हैं वे बहुत कड़े होते हैं। इनका थूथन आगे की ओऱ चपटा रहता है जिसके भीतर मुलायम हड्डी का एक चक्र सा रहता है, जो थूथन को कड़ा बनाए रखता है। इसी थूथन के सहारे ये जमीन खोद डालते हैं और भारी-भारी पत्थरों को आसानी से उलट देते हैं। जंगली सूअर (Wild Boar) प्रजाति सुस स्क्रोफ़ा, सुइडी कुल का जंगली सदस्य है। पालतू सूअरों, गिनी पिग और कई अन्य स्तनधारी प्राणियों के नरों के लिए भी ‘बोर’ (जंगली सूअर) शब्द का उपयोग होता है।
सुअरों के कुकुरदंत उनकी आत्मरक्षा के हथियार हैं। ये इतने मजबूत और तेज होते हैं कि उनसे ये घोड़ों तक का पेट फाड़ डालते हैं। ऊपर के कुकुरदंत तो बाहर निकलकर ऊपर की ओर घूमे रहते हैं लेकिन नीचे के बड़े और सीधे रहते हैं। जब ये अपने जबड़ों को बंद करते हैं तो ये दोनों आपस में रगड़ खाकर हमेशा तेज और नुकीले बने रहते हैं। सूअरों के खुर चार हिस्सों में बँटे होते हैं जिनमें से आगे के दोनों खुर बड़े और पीछे के छोटे होते हैं। पीछे के दोनों खुर टाँगों के पीछे की ओर लटके भर रहते हैं और उनसे इन्हें चलने में किसी प्रकार की मदद नहीं मिलती। इन जीवों की घ्राणशक्ति बहुत तेज होती है जिनकी सहायता से ये पृथ्वी के भीतर की स्वादिष्ट जड़ों आदि का पता लगा लेते हैं। इनका मुख्य भोजन कंद-मूल, गन्ना और अनाज है लेकिन इनके अलावा ये कीड़े-मकोड़े और छोटे सरीसृपों को भी खा लेते हैं। कुछ पालतू सुअर विष्ठा भी खाते हैं।
जातियाँ:- पालतू सूअर संसार के प्राय: सभी देशों में फैले हुए हैं और भिन्न-भिन्न देशों में इनकी अलग-अलग जातियाँ पाई जाती हैं। यहाँ उनमें से केवल कुछ जातियों का संक्षिप्त वर्णन दिया जा रहा है जो बहुत प्रसिद्ध हैं।
1. बर्क शायर (Berkshire)-इस जाति के सूअर काले रंग के होते हैं जिनका चेहरा, पैर और दुम का सिरा सफेद रहता है। यह जाति इंग्लैंड में बनाई गई है। जहाँ से यह अमरीका में फैली। इनका माँस बहुत स्वादिष्ट होता है।
2. चेस्टर ह्वाइट (Chester white)-इस जाति के सूअरों का रंग सफेद होता है और खाल गुलाबी रहती है। यह जाति अमरीका के चेस्टर काउन्टी में बनाई गई और केवल अमरीका में ही फैली है।
3. ड्यूराक (Duroc)- यह जाति भी अमरीका से ही निकली है। इस जाति के सूअर लाल रंग के होते हैं जो काफी भारी और जल्द बढ़ जाने वाले जीव हैं।
4. हैंपशायर (Hampshire)-यह जाति इंग्लैंड में निकाली गई है लेकिन अब यह अमरीका में भी काफी फैल गई है। इस जाति के सूअर काले होते हैं जिनके शरीर के चारों और एक सफेद पट्टी पड़ी रहती है। यह बहुत जल्द बढ़ते और चरबीले हो जाते हैं।
5. हियरफोर्ड (Hereford)- यह जाति भी अमरीका में निकाली गई है। ये लाल रंग के सूअर हैं जिनका सिर, कान, दुम का सिरा और शरीर का निचला हिस्सा सफेद रहता है। ये कद में अन्य सूअरों की अपेक्षा छोटे होते हैं और जल्द ही प्रौढ़ हो जाते हैं।
6. लैंडरेस (Landrace)-इस जाति के सूअर डेनमार्क, नार्वे, स्वीडन, जर्मनी और नीदरलैंड में फैले हुए हैं। ये सफेद रंग के सूअर हैं जिनका शरीर लंबा और चिकना रहता है।
7. लार्ज ब्लैक (Large Black)- इस जाति के सूअर काले होते हैं जिनके कान बड़े और आँखों के ऊपर तक झुके रहते हैं। यह जाति इंग्लैंड में निकाली गई और ये वहीं ज्यादातर दिखाई पड़ते हैं।
8. मैंगालिट्जा (Mangalitza) -यह जाति बाल्कन स्टेट में निकाली गई है और इस जाति के सूअर हंगरी, रूमानियाँ और यूगोस्लाविया आदि देशों में फैले हुए हैं। ये या तो घुर सफेद होते या इनके शरीर का ऊपरी भाग भूरापन लिए काला और नीचे का सफेद रहता है। इनको प्रौढ़ होने में लगभग दो वर्ष लग जाते हैं और इनकी मादा कम बच्चे जनती है।
9. पोलैंड चाइना (Poland China)-यह जाति अमर को ओहायो (Ohio) प्रदेश की बट्लर और वारेन (Butler and Warren) काउंटी में निकाली गई है। ड्यूराक जाति की तरह यह सूअर भी अमरीका में काफी संख्या में फैले हुए हैं। ये काले रंग के सूअर हैं जिनकी टाँगें, चेहरा और दुम का सिरा सफेद रहता है। ये भारी कद के सूअर हैं जिनका वजन 12-13 मन तक पहुँच जाता है। इनकी छोटी, मझोली और बड़ी तीन जातियाँ पाई जाती हैं।
10. स्पाटेड पोलैंड चाइना (Spotted Poland China)-यह जाति भी अमरीका में निकाली गई है और इस जाति के सूअर पोलैंड चाइना के अनुरूप ही होते हैं। अंतर सिर्फ यही रहता है कि इन सूअरों का शरीर सफेद चित्तियों से भरा रहता है।
11. टैम वर्थ (Tam Worth)-यह जाति इंग्लैंड में निकाली गई जो शायद इस देश की सबसे पुरानी जाति है। इस जाति के सूअरों का रंग लाल रहता है। इसका सिर पतला और लंबोतरा, थूथन लंबे और कान खड़े और आगे की ओर झुके रहते हैं। इस जाति के सूअर इंग्लैंड के अलावा कैनाडा और यूनाइटेड स्टेट्स में फैले हुए हैं।
12. वैसेक्स सैडल बैक (Wessex Saddle Back)-यह जाति भी इंग्लैंड में निकाली गई हैं। इस जाति के सूअरों का रंग काला होता है और उनकी पीठ का कुछ भाग और अगली टाँगें सफेद रहती हैं। ये अमरीका के हैंपशायर सूअरों से बहुत कुछ मिलते-जुलते और मझोले कद के होते हैं।
13. यार्कशायर (Yorkshire)-यह प्रसिद्ध जाति वैसे तो इंग्लैंड में निकाली गई है लेकिन इस जाति के सूअर सारे यूरोप, कैनाडा और यूनाइटेड स्टेट्स में फैल गए हैं। ये सफेद रंग के बहुत प्रसिद्ध सूअर हैं जिनकी मादा काफी बच्चे जनती है। इनका मांस बहुत स्वादिष्ट होता है।
जंगली सूअर की उत्पत्ति:- यूरोपीय देशों में जंगली सूअर को ‘वाइल्ड बोर’ भी कहा जाता है, यह जंगली सूअरों में सबसे बड़ा होता है। यह पश्चिमी और उत्तरी यूरोप, उत्तरी अफ़्रीका, भारत, अंडमान द्वीप समूहऔर चीन में पाया जाता है। इसे अमेरिका और न्यूज़ीलैंड भी ले जाया गया है (जहाँ यह स्थानीय जंगली प्रजातियों में घुलमिल गया है)। इसके शरीर पर कड़े बाल होते हैं, रंग धूसर, काला या भूरा होता है और कंधे तक इसकी ऊँचाई 90 सेमी तक होती है। अकेले रहने वाले बूढ़े नरों को छोड़कर, जंगली सूअर झुड़ों में ही निवास करते हैं। ये तेज़, निशाचर, सर्वभक्षी और अच्छे तैराक होते हैं। इनके दाँत पैने और बाहर की ओर निकले होते हैं। हालांकि यह आक्रामक जानवर नहीं है, फिर भी ख़तरनाक साबित हो सकता है।
शिकार:- अपनी शक्ति, गति और भयंकरता के कारण पुराने ज़माने से ही जंगली सूअर पीछा करके शिकार किया जाने वाला सबसे पसंदीदा जानवर रहा है। यूरोप और भारत के कुछ हिस्सों में अब भी कुत्तों की मदद से इसका शिकार किया जाता है, लेकिन भालों का स्थान अब बंदूकों ने ले लिया है। यूरोप में जंगली सूअर राजसी शिकार के चार पशुओं में से एक है और यह इंग्लैंड के राजा रिचर्ड 3 का विशेष चिन्ह है। काफ़ी समय तक खाद्य पदार्थ के रूप में जंगली सूअर के सिर को विशिष्ट व्यंजन का दर्जा प्राप्त था।
सरंक्षण अधिनियम लागू होने से प्रजनन क्षमता बढ़ गई:- वन्य प्राणी सरंक्षण अधिनियम 1972 के लागू होने के बाद जहां एक ओर सैकड़ों लुप्त होते, दुर्लभ वन्य प्राणियों को बचाना संभव हुआ, वहीं अधिक प्रजनन क्षमता वाले कुछ प्राणियों की संख्या इतनी ज्यादा बढ़ गई कि वे खेत एवं मानव बस्तियों में भी आ धमकते हैं। ऐसे ही हालातों के चलते नीलगाय, काले हिरण, जंगली सूअर, बंदर और जंगली हाथी फसल और इंसानों के लिए संकट का सबब बन रहे हैं। बावजूद वन्य प्राणी सरंक्षण अधिनियम के अस्तित्व में आने के बाद इन 43 सालों में ऐसा पहली बार देखने में आया है कि केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने गंभीरता से सोचे-विचारे बिना एक साथ कई प्राणियों के वैध शिकार की मंजूरी दे दी है। इनमें राष्ट्रीय पक्षी मोर भी शामिल है। यह थोड़ा समझ से परे है कि आखिर मोर जैसा पक्षी कैसे फसल या इंसानों को हानि पहुंचा रहा है ? इस लिहाज से केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी का विरोध और गुस्सा एक हद तक जायज है। मेनका गांधी द्वारा उठाए सवालों को गंभीरता से लेने की जरूरत है, क्योंकि वे पशु प्रेमी होने के साथ स्वयं भी केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री रह चुकी हैं।
पर्यावरण मंत्रालय ने कई राज्यों की मांग पर एक साथ कई दुर्लभ प्रजातियों के प्राणियों को मारने की इजाजत दी है। बिहार में नीलगाय, पश्चिम बंगाल में हाथी, हिमाचल प्रदेश में बंदर, महाराष्ट्र में जंगली सूअर और गोवा में तो राष्ट्रीय पक्षी मोर तक को मारने की इजाजत दे दी है। इस आदेश के पालन में बिहार के मोकामा में करीब 250 नील गाय और महाराष्ट्र के चांदपुर में 53 जंगली सूअर मार दिए गए हैं। ये शिकार हैदराबाद के पेशेवर शिकारी अपनी लाइसेंसी बंदूकों से कर रहे हैं। किराए के इन शिकारियों को पति प्राणी 500 रुपए शिकार के दिए जा रहे हैं। यह सही है कि वन सरंक्षण अधिनियम 1972 में विशेष परिस्थितियों में वर्मिन यानी उपद्रवी प्राणियों को मारने की अनुमति देने का प्रावधान है। बिहार में मारी गई नील गाय और महाराष्ट्र में मारे गए जंगली सूअर इसलिए उपद्रवी प्राणियों के दायरे में कहे जा सकते हैं, क्योंकि वे किसानों की फसलों को तबाह करने में हैं। दूसरी तरफ बंगाल में हाथी और हिमाचल प्रदेश में बंदर कुछ मानव बस्तियों में बर्बादी का सबब बने हैं। अलबत्ता यह थोड़ा सोचनीय तथ्य है कि गोवा में मोर किस कारण से मनुष्यों के लिए संकट का कारण बन रहे हैं ? मोर की प्रकृति न तो उपद्रवी व हिंसक पक्षी की है और न ही वे फसलों को चैपट करने में समर्थ हैं। नीलगाय, काले हिरण और जंगली सूअरों की आबादी पर नियंत्रण गर्भ निरोधक दवाएं देकर भी किया जा सकता है। ये दवाएं चारे में मिलाकर या ट्रेंकुलाइज करके दी जाती हैं।
उत्तर प्रदेश के गांवों में पशु किसानों की फसल चौपट कर देते हैं. किसानों को अपनी फसलों को बचाना पड़ता है. पुलिस के पास गौशाला नहीं होता है. यदि पशुओं के स्थान पर कोई बच्चा या व्यक्ति घायल होता है तो मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई की जाती है. बारूद का गैरकानूनी तरीके से उपयोग हो रहा है. इस बारे में ठोस सूचना मिलने पर कार्रवाई की जा सकती है. हथगोले से किसी इंसान की मौत होती है तो वह आईपीसी की धारा 302 के तहत संज्ञेय अपराध का मामला बनता है. लेकिन पशुओं की मौत पर इस धारा के तहत कार्रवाई नहीं हो सकती है. पुलिस इसे एक दुर्घटना मान लेती है. कई किसानों ने खेतों के किनारे बिजली के तारों का जाल बिछा रखा है. उन तारों में रात में करंट दौड़ता है. बिजली के झटके से कुछ दिनों के अंतराल में ही दर्जनों पशुओं की मौत हो चुकी है. पुलिस और वनविभाग से बचने के लिए किसान इन पशुओं को नदी में फेंक देते हैं या रेत में दफना देते हैं. इस तरह जानवरों को करंट लगने की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं, लेकिन प्रशासन कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है. जबकि स्थानीय अधिकारियों और वनविभाग के अधिकारियों को इस बारे में बाकायदा सूचित किया जा जाता है.
नोटिफिकेशन्स के खिलाफ पिटीशन:- केंद्र ने पिटीशन में बिहार में नीलगाय और जंगली सूअर को नुकसान पहुंचाने वाले पशु (वर्मिन) घोषित करने के लिए 1 दिसंबर 2015 को नोटिफिकेशन जारी किया था। इसी तरह 2 फरवरी को उत्तराखंड में जंगली सूअरों को मारने का नोटिफिकेशन जारी हुआ था। 24 मई हिमाचल प्रदेश में बंदरों को मारने के लिए नोटिफिकेशन जारी हुआ। तीनों नोटिफिकेशन एक साल के लिए हैं। इनके जरिए नीलगाय, जंगली सूअर और बंदरों को वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के दायरे से हटा दिया गया है। इन्हीं के खिलाफ दायर पिटीशन्स में पिटीशनर गौरी मौलेखी ने नोटिफिकेशन को गैरकानूनी बताया गया है। इसमें कहा गया है कि सरकार ने बिना किसी आधार और साइंटिफिक स्टडी के ये नोटिफिकेशन जारी किया है, जबकि सचाई यह है कि न तो इन जानवरों की संख्या के बारे में सरकार को कोई जानकारी है और न ही कोई रिपोर्ट। पिटीशन में कहा गया है कि सरकार जंगलों में माइनिंग भी नहीं रोक पाई है। इसकी वजह से जानवर रिहायशी इलाके में घुसने को मजबूर हो गए। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में नीलगाय, जंगली सूअर और बंदरों को मारने पर रोक लगाने से फिलहाल इनकार कर दिया। बेंच ने इस पर सुनवाई करते हुए पिटीशनर्स से कहा कि वे अपना विरोध राज्य सरकारों और केंद्र के सामने दर्ज कराएं। जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की बेंच ने कोई इंटरिम ऑर्डर देने से इनकार कर दिया लेकिन इस मामले में 15 जुलाई को सुनवाई होने के लिए नोटिश जारी किया है ।