तो क्या हाथी निकलेगा ? 

0
257

दुनिया में शाकाहारी अधिक हैं या मांसाहारी; शाकाहार अच्छा है या मांसाहार; फार्म हाउस के अंडे और घरेलू तालाब की छोटी मछली शाकाहार है या मांसाहार; मांस में भी झटका ठीक है या हलाल; ताजा पका हुआ मांस अच्छा है या डिब्बाबंद; ये कुछ चिरंतन प्रश्न हैं, जिनके उत्तर मनुष्य सदियों से तलाश रहा है। शर्मा जी यों तो शुद्ध शाकाहारी हैं; पर किसी पार्टी या दावत में दूसरी तरफ भी चले जाते हैं। असल में वे इस मामले में ‘माले मुफ्त दिले बेरहम’ के पक्षधर हैं। उनकी मैडम जी मांस तो दूर अंडा तक घर में नहीं घुसने देती। इसलिए वे अपना शौक ऐसी जगहों पर ही पूरा कर लेते हैं।

वैसे उनका मानना है कि भगवान ने मनुष्य को शाकाहारी ही बनाया है। इसके लिए वे मांसाहारी पशुओं के तीखे और मांस फाड़ने में सहायक दांतों का उदाहरण देते हैं। वे कहते हैं कि एक समय था, जब मानव जाति को खेती करना नहीं आता था। उसे यह भी नहीं पता था कि पेड़ पर लगे फल और बेलों पर लगी सब्जियां खाने की चीज हैं। वह इन्हें जहरीला मानता था।

ऐसे में उसके सामने शिकार करना और उसे कच्चा खाना मजबूरी थी। पशु भी ऐसा ही करते थे। आगे चलकर जब उसने आग का प्रयोग सीख लिया, तो फिर वह मांस को भूनकर खाने लगा। उस काल में उसके दांत भी पशुओं जैसे ही तीखे थे। रामलीला में राक्षस भी ऐसे ही दांतों वाले दिखाये जाते हैं।

पर जब मानव ने खेती करना सीख लिया, तो फिर मांस खाने की मजबूरी नहीं रही। आज तो सब ओर भरपूर खेती होती है। अन्न, दूध और फल-सब्जी की भी कोई कमी नहीं है। ऐसे में मांसाहार गलत है। यद्यपि इसके बावजूद वे कभी-कभी मांस खा लेते हैं, जिससे यह याद रहे कि लाखों साल पूर्व लोग क्या खाते थे; पर उस समय लोग जिन गुफाओं में रहते थे और पशुओं की खाल या पेड़ों की छाल पहनते थे, ऐसा प्रयोग शर्मा जी भूल कर भी नहीं करते।

खैर, इस पुराने इतिहास को छोड़कर कल-परसों की बात पर चलें। शर्मा जी के मित्र गुप्ता जी का बेटा विशाल दिल्ली के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान के छात्रावास में रहकर पढ़ रहा है। पिछले दिनों गुप्ता जी उससे मिलने वहां गये, तो वे शर्मा जी को भी साथ ले गये। सुबह-सुबह का समय था। अतः दोनों ने नाश्ता वहीं कर लेना उचित समझा।

विशाल ने अपने कमरे में ही खानपान सामग्री मंगा ली। यद्यपि उन्होंने शाकाहारी थाली मंगायी थी। पंराठे के साथ उस दिन बैंगन की सब्जी थी। जैसे ही थाली खोली गयी, तो सब्जी में चूहे जैसे कोई छोटा प्राणी भी दिखायी दिया। गुप्ता जी ने बैंगन की डंडी समझकर जिसे उठाया, वह असल में चूहे की पूंछ थी। वे खानदानी शाकाहारी थे। उन्होंने थाली फेंक दी। शर्मा जी को यद्यपि मांस से परहेज नहीं था; पर चूहा तो उन्होंने आज तक नहीं खाया था। इसलिए वे भी सन्नाटे में आ गये।

गुप्ता जी के गुस्से का पारावार नहीं रहा। वे आग-बबूला होते हुए कैंटीन में गये और खाना बनाने वाले कर्मचारियों पर बरस पड़े। उन कर्मचारियों ने कहा कि यहां हजारों छात्रों के लिए भोजन बनता है। ऐसे में सब्जी या दाल की सफाई संभव नहीं है। कैंटीन का ठेकेदार जो सामान भेजता है, हम वही पका देते हैं। हो सकता है सब्जी के बोरे में चूहा भी आ गया हो।

गुप्ता जी ने उनसे कैंटीन के ठेकेदार का नंबर लिया और उसे फोन मिला दिया। वे अपनी बात अभी पूरी भी नहीं कर पाये थे कि ठेकेदार ने सफाई दे दी। उसने कहा कि हम तो साफ माल ही भेजते हैं; पर कैंटीन की कई साल से मरम्मत नहीं हुई है। वहां दीवारों और फर्श में चूहों ने बिल बना लिये हैं। हो सकता है सब्जी की सुगंध से आकर्षित होकर वहीं से कोई चूहा टहलता हुआ सब्जी के भगोने तक आ गया हो। इसलिए आप छात्रावास के प्रमुख से बात करें।

गुप्ता जी अपनी उसी शैली में छात्रावास प्रमुख पर बरस पड़े। वह पहले तो धैर्य से उनकी बात सुनता रहा। फिर वह हंसकर बोला, ‘‘श्रीमान जी, नाश्ते जैसी छोटी चीज है, तो उसमें चूहा ही निकल सकता है। आप क्या चाहते हैं कि उसमें हाथी या ऊंट निकले ? गनीमत है कि इस बार चूहा निकला है। कुछ दिनों पहले तो दाल के भगोने में एक सांप मिला था।’’

गुप्ता जी बिना नाश्ता किये ही लौट आये; पर तब से उनकी समझ में नहीं आ रहा कि वे अपने बेटे के भविष्य की चिंता करें या वर्तमान की ?

– विजय कुमार,

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,849 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress