क्या गुजरात में केजरीवाल का जादू चलेगा?

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-ललित गर्ग-

गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 के दिसंबर में होने हैं, इस बार का चुनाव हंगामेदार होगा, ऐतिहासिक होगा एवं नये परिदृश्यों को निर्मित करने वाला होगा। इसके लिए सभी प्रमुख राजनीतिक दल पिछले कई माह से सक्रिय हैं, भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी भी पूरी तरीके से सक्रिय हो चुकी है, गुजरात में भाजपा जहां पिछले 27 सालों से सत्ता में है तो वहीं कांग्रेस पार्टी सत्ता पाने के लिए बेचैन है। पहली बार में ही आम आदमी पार्टी तो गुजरात में सरकार बनाने का दावा कर रही है। भाजपा की चुनावी तैयारियां जहां पिछले 1 साल से चल रही हैं तो वहीं कांग्रेस और आम आदमी पार्टी अपनी अलग रणनीति के हिसाब से काम कर रही है, आप के चलते कांग्रेस को अपने वोट बैंक में सेंध लगने की आशंका भी है। कुछ भी हो इस बार का चुनाव नरेन्द्र मोदी की प्रतिष्ठा का प्रश्न बनता जा रहा है। अब तो विधानसभा चुनाव का परिणाम ही बताएगा कि चुनावी तैयारी कर रहे इन राजनीतिक दलों को कितना फायदा मिलेगा। क्या गुजरात में अरविंद केजरीवाल का जादू चलेगा?
गुजरात विधानसभा चुनाव का भले ही अभी तक कोई औपचारिक ऐलान नहीं हुआ हो, लेकिन इसे लेकर राजनीतिक गलियारे में सरगर्मियां तेज हो गई है, राजनीतिक दलों के लिये यह प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ है। राज्य में इस बार के चुनावी मैदान में आम आदमी पार्टी तीसरे विकल्प के रूप में धमक पैदा कर रही है। मालूम हो कि अब तक राज्य में केवल कांग्रेस बनाम बीजेपी के बीच मुकाबला देखने को मिलता था, लेकिन इस बार आप तीसरी ताकत के रूप में पूरी किस्मत आजमा रही है। ऐसे में कांग्रेस के सामने इस बार दोहरी चुनौती खड़ी है। ऐसा लगता है कि प्रांत में कांग्रेस का सुपड़ा साफ करते हुए आप भाजपा को कड़ी चुनौती देगा। गतदिनों अहमदाबाद के अपने दौरे के दौरान आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने दावा किया कि कांग्रेस जमीन पर दिखाई नहीं दे रही थी और वह केवल एक संगठन के रूप में कागजों पर मौजूद थी। जिस पार्टी को पिछले चुनावों में करीब 38 फीसदी वोट मिले थे, वह चुनाव शुरू होने से पहले ही जमीन गंवा चुकी है? असल में कांग्रेस की कमजोर स्थिति एवं निस्तेज होते केन्द्रीय नेतृत्व का फायदा आप को मिल रहा है। जो अनेक दृष्टियों से भाजपा के लिये लाभकारी साबित होगा।
गुजरात के चुनाव में आदिवासी समुदाय की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका होगी। अब तक पूर्व चुनावों में आदिवासी समुदाय की उपेक्षा के बावजूद राजनीतिक दलों को इस समुदाय का फायदा मिलता रहा है। लेकिन इस बार आदिवासी अपनी ताकत दिखाने के लिये कमर कसे हुए है। यही कारण है कि आप ने इनको अपने पक्ष में करने के सारे दाव चलने शुरु कर दिये हैं। गतदिनों केजरीवाल की आदिवासी क्षेत्रों में हुंकार सभा काफी सफल रही है। राहुल गांधी ने आखिरी बार 10 मई को गुजरात का दौरा किया था, इस दौरान उन्होंने आदिवासी बहुल दाहोद शहर में आदिवासी सत्याग्रह रैली को संबोधित किया। भाजपा एक साल से भी ज्यादा समय से प्रचार मोड में है और गुजरात भाजपा प्रमुख सी. आर. पाटिल रणनीतियों पर काम कर रहे हैं और उन्हें लागू कर रहे हैं। उनके द्वारा भी आदिवासी समुदाय को लुभाने की तमाम कोशिशें की जारही है। पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने कांग्रेस छोड़ दी और भाजपा में शामिल हो गए। गुजरात में कांग्रेस ने 2017 में भाजपा को टक्कर देने के लिए पटेल, मेवाणी और ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर सहित तीन युवा नेताओं का मोहरा बनाया था। ठाकोर ने कांग्रेस छोड़ दी और 2019 में भाजपा में शामिल हो गए। पटेल भी भाजपा पर सवार है। इन घटनाओं का भाजपा को लाभ मिलेगा। गुजरात में ही आदिवासी संत गणि राजेन्द्र विजय भी इनदिनों राजनीति में सक्रिय है, उन्होंने पटेल को भाजपा से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वे खुद चुनाव लड़ने के मुड में दिखाई देते हैं। उन्हें कौनसा राजनीतिक दल टिकट देने की पहल करता है, जो भी पहल करेगा, उसे आदिवासी वोटों का लाभ मिलेगा।
इस बार भी भाजपा विकास नीतियों को ही चुनाव का मुख्य मुद्दा बनाने वाली है। गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का गृह राज्य भी है। इसलिये सभी विपक्षी दलों ने अपनी ताकत भाजपा को हराने के लिये लगा रखी। लेकिन भाजपा के शीर्ष नेता अपनी पूरी ताकत विकास योजनाओं पर केन्द्रीत किये हुए हैं। गृह मंत्री अमित शाह अलग-अलग क्षेत्र को फोकस करते हुए योजनाओं के दम पर मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में जुटे हैं। बनासकांठा में नडाबेट भारत पाकिस्तान सीमा का उद्घाटन भी किया। यह क्षेत्र सौराष्ट्र में पड़ता है। इसके अलावा लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला ने सूरत में राजस्थानी समुदाय से मुलाकात की। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के लोगों को कई प्रोजेक्ट की सौगात दे चुके हैं। भाजपा गुजरात में विकास का ऐसा मॉडल तैयार करना चाहती है जो पूरे देश के लिए एक आदर्श मॉडल बन सके। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए लगातार गुजरात में नए नए प्रोजेक्ट पर काम हो रहे हैं और इनका लाभ राजनैतिक दृष्टि से आगामी चुनाव में मिलने से इंकार नहीं किया जा सकता।
कांग्रेस देशभर में कमजोर हुई है, विशेषतः गुजरात में उसकी हालत जर्जर हो चुकी है। कांग्रेस ने पिछले दो वर्षों में लगभग 14 विधायकों को खो दिया है, जो भाजपा में शामिल हो गए हैं। राज्य विधानसभा में पार्टी की ताकत 77 से घटकर लगभग 64 विधायक रह गई है। जबकि भाजपा, जिसे 2017 के चुनावों में 100 सीटों के निशान से नीचे 99 पर रोक दिया गया था, 2017 के चुनावों के बाद से इसकी संख्या बढ़कर 111 विधायकों तक पहुंच गई है। भले ही आदिवासी नेता और झगड़िया निर्वाचन क्षेत्र से विधायक छोटू वसावा को अभी भी कांग्रेस पार्टी में किसी चमत्कार के घटित होने की आशा है। 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जहां बेहतर प्रदर्शन किया और 77 सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं अब 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की चुनावी तैयारियां लगातार चल रही है। प्रदेश में कांग्रेस महंगाई को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रही है। वही पार्टी में नए सदस्यों को जोड़ने का काम भी किया जा रहा है। पार्टी के युवा नेता जिग्नेश मेवानी युवाओं को कांग्रेस से जोड़ने के लिए पूरी तरीके से जुटे हैं। इसके अलावा राहुल गांधी के नेतृत्व में भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस को मजबूत करने की कोशिश भी की जा रही है। इन तमाम प्रयासों को बटा लगाने के लिये आप सक्रिय है।
गुजरात में आम आदमी पार्टी पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरने जा रही है। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी ने रोड शो से लेकर जनसभा करने तक का सिलसिला शुरू कर दिया है। इनमें जनता की भीड़ पार्टी का उत्साह बढ़ा रही है। अब पार्टी संगठन को मजबूत करने में जुटी हुई है। इसके अलावा आम आदमी पार्टी तिरंगा यात्रा के माध्यम से सरकार की नीतियों की खामियांे को भी उजागर किया है। वहीं राज्य में शिक्षा को प्रमुख मुद्दा बनाया गया है।  गुजरात के स्कूलों से दिल्ली के स्कूलों की तुलना की जा रही है। वहीं स्वास्थ्य, शिक्षा, महंगाई, भ्रष्टाचार के माध्यम से भाजपा की सरकार पर हमले किए जा रहे हैं। आम आदमी पार्टी गुजरात में भी मुफ्त का राग अलाप रही है, जिसका सर्वाधिक असर देखने को मिल रहा है। भले ही यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन हो। पार्टी नेताओं के जेल में होने एवं भ्रष्टाचार के आरोपों को आप नेता बड़ी चतुराई से नजरअंदाज करते हुए मुफ्त सुविधाओं की बात को आगे रख रही है। अभी आप का अंतिम लक्ष्य मोदी बनाम केजरीवाल की बहस करना है। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि भ्रष्टाचार के आरोपों ने पार्टी को सबसे ज्यादा आहत किया है। क्या केजरीवाल मोदी को टक्कर देते हुए कोई नया इतिहास रच पायेंगे? अभी गुजरात विधानसभा चुनाव के दृश्य काफी दिलचस्प होने है। 

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