क्या बिहार की सियासत लेगी करवट, दिखेगा नया रूप…?

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जी हां कहते हैं कि सियासत में सबकुछ संभव होता है। ऐसा एक बार फिर से पटल पर दिखाई दे रहा है। ऐसा इसलिए कि बिहार की सियासत में दो धुर विरोधी दल एक बार फिर एक दूसरे के साथ दिख रहे हैं। सियासत में कोई भी निष्कर्ष इतना सरल नहीं होता न ही बिना किसी रणनीति के कोई फैसला लिया जाता है। सियासत में जब भी कोई कदम उठाया जाता है तो निश्चित ही उसके अपने मायने होते हैं। उसके अपने संदेश होते हैं उसके अपने दबाव बनाने के तरीके होते हैं। सियासत में कोई भी नेता आम जनमानस की भाँति साधारण रूप से फैसले नहीं लेता।
बिहार की राजनीति में जो दृश्य दिखाई दे रहा है। वह निश्चित ही अपने आपमें एक बड़ा संदेश है। जिसको साधारणतः बिना किसी यन्त्र के आसानी के साथ उस बारीक सियासी नब्ज को नहीं देखा जा सकता। राजनीति की नब्ज को समझना देखना एवं दूरगामी परिणामों को भाँपना इतना सरल नहीं है। और अगर यह कदम किसी सधे हुए राजनेता के द्वारा उठाया गया हो तो फिर और भी विचित्र हो जाता है। बिहार की राजनीति में नितीश कुमार एक अनुभवी एवं सधे हुए राजनेता हैं। उनको पता है कि कब कौन सा पैंतरा बदलना है। इसलिए ऐसे समय पर नितीश के द्वारा इस प्रकार का कदम उठाया जाना अपने आपमें एक बड़ी रणनीति के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है।
बिहार की राजनीति में राष्ट्रीय जनता दल की तरफ से आयोजित इफ्तार पार्टी में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शामिल होकर सबको चौंका दिया। लालू यादव को बेल मिलने के बाद उनके इफ्तार में शामिल होने की खबर से बिहार के राजनीतिक गलियारों में तेज हो गई है। खास बात है कि मुख्यमंत्री अपने आवास के पिछले गेट से पैदल ही वहां पहुंचे। बता दें कि इससे पहले अंतिम बार 2017 में मकर संक्रांति के मौके पर नीतीश कुमार राबड़ी आवास गए थे। तब वह आरजेडी के साथ मिलकर सरकार चला रहे थे। बाद में उन्होंने नाता तोड़कर भाजपा से हाथ मिला लिया। बताया जा रहा है कि इस बार के आयोजन की पूरी तैयारी तेजस्वी यादव और उनके बड़े भाई तेज प्रताप यादव ने मिलकर की। इसमें बिहार के समस्त जिलों से मुस्लिम समाज के लोगों और अन्य हस्तियों को भी आमंत्रित किया गया। नीतीश कुमार के राबड़ी आवास पर जाने की योजना को बड़ी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। खबरों की माने तो बिहार के बड़े आयोजन में नितीश को न्योता नहीं भेजा गया जिसके बाद नितीश ने दूरगामी परिणामों को भाँपते हुए यह कदम तुरंत उठाया। यदि यह बात सत्य है कि नितीश को बिहार के एक बड़े आयोजन का न्योता नहीं दिया गया जबकि भाजपा के बड़े नेतागण उस आयोजन का हिस्सा हैं। यदि यह खबरें सही हैं तो नितीश बड़ी चतुराई के साथ दांव चल दिया है। जिसके परिणाम आने वाले समय दिखाई देंगे। नितीश के इस कदम को बदले के रूप में भी देखा जा रहा है। हालांकि भाजपा के इस भव्य कार्यक्रम से पहले नीतीश कुमार के इस राजनीतिक स्टंट ने भाजपाइयों को सकते में डाल दिया है। कहा तो यह भी जा रहा है कि इससे पहले भी नीतीश कुमार को आरा के फ्लाईओवर उद्घाटन कार्यक्रम में भी नहीं बुलाया गया था। खबरें तो यहां तक हैं कि नीतीश कुमार इन दिनों भाजपा के बड़बोले नेताओं के बयान से असहज महसूस कर रहे हैं। वह भले अभी भाजपा के सहारे बिहार में सरकार चला रहे हैं, लेकिन सब कुछ ठीक नहीं है। इन दिनों नीतीश कुमार के बारे में तरह-तरह की अफवाहें फैल रही हैं। अंदरखाने की मानें तो नीतीश कुमार बिहार से रिटायरमेंट तो लेना चाहते हैं, लेकिन दिल्ली में सम्मानजनक पोस्ट चाहते हैं। अपनी मंशा को गठबंधन के सामने रख भी चुके हैं। भाजपा ने अभी तक कोई बात नीतीश कुमार से नहीं की है। इसलिए वह राबड़ी आवास पहुंचकर भाजपा को दिखाना चाहते हैं कि उनके सामने अभी भी विकल्प है। खास बात यह है कि पिछले हफ्ते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी इफ्तार पार्टी दी थी। इसमें सभी नेताओं को निमंत्रण दिया गया था। लेकिन इसमें प्रतिपक्ष नेता तेजस्वी यादव नहीं पहुंचे थे।
इसलिए इस बात को और बल मिल रहा है कि तेजस्वी नितीश की इफ्तार पार्टी में शामिल होने उनके आवास पर नहीं गए लेकिन नितीश के द्वारा खुद जलकर तेजस्वी की इफ्तार पार्टी में आना अपने आपमें बड़ा दाँव है। इससे यह माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री नितीश लालू के घर पहुंचकर राजनीति का नया समीकरण तैयार कर रहे हैं।
जानकारों की माने तो अगर दोबारा नीतीश कुमार आरजेडी के साथ आए तो बिहार में एक बार फिर सियासी समीकरण बदल जाएगा। 243 सीटों वाली विधानसभा में आरजेडी के पास 76 विधायक हैं, वहीं जदयू के पास 45 और एक निर्दलीय साथ है। नीतीश कुमार यदि आरजेडी के साथ जाएंगे तो जीतनराम मांझी की पार्टी एचएएम भी साथ चली जाएगी। इसके बाद बिना कांग्रेस, लेफ्ट और औवैसी के तीनों मिलकर सरकार बना सकते हैं। लेकिन क्या ऐसा हो पाएगा यह बड़ा प्रश्न है। क्योंकि केंद्र में भाजपा की सरकार है तो नितीश अगर भाजपा से अपने आपको बिहार में अलग भी कर लेते हैं तो अभी हाल में दिल्ली की राजनीति में उनको कोई लाभ नहीं होगा। क्योंकि दिल्ली में पूरी मजबूती के साथ भाजपा सरकार है। हाँ अगर बिहार की राजनीति में ही नितीश अपने आपको बनाए रखना चाहते हैं तो यह फैसला हो सकता है। लेकिन बिहार की राजनीति अपने आपको बनाए रखने के लिए नितीश इतना बड़ा फैसला क्यों लेगे जबकि वह अभी भी बिहार के मुख्यमंत्री हैं तो फिर यह सवाल उठता है कि नितीश ने ऐसा क्यों किया। सियासत की सियासी चाल को समझें तो एक बात साफ तौर पर निकल कर आती है कि नितीश का यह पैंतरा अपने सहयोगी दल भाजपा पर मानसिक रूप से दबाव बनाने के उद्देश्य से लिया गया है। जिससे कि भाजपा नितीश को दिल्ली में उचित सम्मानित जगह प्रदान करे साथ ही अपने नेताओं के बयानों पर भी पाबंदी लगाए।

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