क्या बदलेंगी सङकों की तस्वीर ?

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सङकों की तस्वीर

roadकितना अजीब लगता हैं जब हमारे देश में लोग अपना-अपना स्टैंर्ङ दिखाने के लिए चार पहियों की बङी-बङी गाङियों का प्रयोग करते हैं और समझते हैं कि जिसके पास जितनी बङी गाङी होगी वे व्यक्ति अपने आप की नजरों में और समाज की नजरों में उतना ही बङा होगा , जितनी बङी उसकी गाङी हैं पर हम भूल जाते हैं कि गाङी बङी होने से हम अपनी सोच को बङा नहीं कर पाते हैं तभी तो बङी गाङी में बैठकर ट्रैफ्फिक को बङा सा ठेंगा दिखाकर उसका मजाक बनाते हैं , और अक्सर ये मूर्खता भरा महान काम हम भारतीय ही करते हैं । मेरी इस बात पर कई लोगों को आपत्ति भी होगी कि मैं आखिर भारत में रहकर भारतीयों के लिए ऐसा कैसे कह सकती हूँ ? तो सोचने वाली बात हैं , और आप ही लोग सोचिए और अपने आप से पूछिए कि जितना सम्मान आप लोग विदेशों में जाकर वहाँ की ट्रैफ्फिक व्यवस्था करते हैं ,क्या उतना सम्मान आप भारत के ट्रैफ्फिक व्यवस्था का करते हैं ? हम लोग जाम में फंस जाते हैं और जानते हुए भी कि हमारे हार्न बजाने से जाम खुल नहीं जायेंगा पर हम फिर भी बङी शान से हार्न बजाते रहते हैं और बिना वजह शान्ति को अशान्ति में बदलने का प्रयास करने में लगे रहते हैं । ऐसे में अगर हम अपनी गलती को उजागर करते हैं तो इसमें कुछ गलत नहीं होना चाहिए क्योंकि जब तक हमें अपनी कमियां पता नहीं चलेगी तब तक हम न तो अपना और न ही अपने समाज का विकास कर सकते हैं । हम में से अधिकांश लोग ऐसे भी हैं जो समाज सुधार की बङी-बङी बातें करते हैं और समाज की कमियों को गिनाने में सबसे आगे खङें हो जाते हैं । पर पता नहीं शायद ये बातें करते समय हमारी याददाशत थोङी कमजोर क्यों हो जाती हैं ? तभी तो हम भूल जाते है कि समाज की गलतियों को गिनाकर उसे कोसने वाले हम लोग भी उसी समाज का ही हिस्सा हैं जिस समाज को हम कोसते हैं । समाज में रहते हुए हम अपने अधिकारों के लिए बङी-बङी बाते करते हैं और अपने अधिकारों के हनन की बात करतें हुए कभी-कभी तो हम इतने उतावले हो जाते हैं कि हंगामा करके सरकार की नाक में दम कर देते हैं पर अधिकारों की बात करते समय हम सब इतने व्यस्त हो जाते हैं कि हम भूल जाते हैं कि जिन अधिकारों की बात हम कर रहें हैं वे अधिकार हम तभी प्राप्त करने योग्य बन सकेंगें जब हम अपने कर्तव्यों को पूरा करेंगें और ये बातें तो हम सब जानते ही होगें कि हम सङकों पर कितना अपने कर्तव्यों का पालन करतें हैं ?

…………. हम लोगों को शानदार सङक पर चलना तो पसन्द हैं पर जब उसी सङक पर कोई घायल हम से मदद की आशा करता हैं तो हम से कुछ लोगों को छोङकर अधिकांश लोंग उसें नजरअन्दाज करके उसे उसी शानदार सङक पर उसे दर्दनाक मौंत के लिए छोङकर चले जाते हैं और वे बेचारा घायल हमारी मदद की आश देखते-देखते आखिरकार मजबूरी वश अपने आखों के सामने मौंत को आते देखने लगता हैं । हर 4 में सें 3 लोग सङक पर घायलों की मदद नहीं करते हैं। 2006-07 में सुप्रीम कोर्ट की एक कमेटी ने अपने फैसलें में कहा था कि 50 प्रतिशत लोगों की सङक दुर्घटना में जान बच सकती हैं अगर उन्हें समय पर मदद मिल जाएं । विश्व स्वास्थय संगठन के अनुसार भारत सङक हादसों में पहला स्थान रखने वाला देश हैं । संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार भारत में 78 प्रतिशत लोग यातायात दुर्घटना के कारण मरते हैं । हम लोंग अगर नेशनल क्राइम ब्यूरों (एनसीआरबी) के आकङें पर ध्यान दे तों हमारे देश में सङक हादसों में हर मिनट पर एक मौंत और हर घंटे 16 मौंत होती हैं और हर दिन 461 लोगों की मौंत का भयानक आकंङा सामने आता हैं । और तो और हर साल 12 लाख 70 हजार से भी अधिक लोग इन हादसों में अपनी जान गंवा देते हैं और इनमें में सें 85 प्रतिशत 20 से 25 साल के युवा होते हैं । राजमार्गों पर 100 प्रतिशत वाहन चालक ऐसे होते हैं जो निर्धारित गति से तेज गति में वाहन चलाते हैं । 2014 के आकंङे के अनुसार तेज रफ्तार वाहनों के कारण 57,844 लोगों ने अपनी जान गवाई थी । मदद न करने के पीछे भी हमारे बहुत ही बेतुके तर्क होते हैं । हम सोचते हैं कि मदद करने के बाद कौन पुलिस , अस्तपाल और कोर्ट के चक्कर काटे और कौन इन फालतू के कामों के झमेलें में फंसें ।

हम में से 88 प्रतिशत लोग घायलों को केवल इसीलिए छोङ देते हैं कि वे किसी कानूनी प्रक्रिया में फंसना नही चाहते हैं । हमारी इस छोटी सोच से परेशान होकर आखिरकार सरकार और कोर्ट को भी उन घायलों की मदद के लिए अपनी नीतियों को बदलना पङा जिससे उन घायलों की मदद के लिए आम आदमी आगे आ सकें और कई लोगों की जान बच सकें । सङक दुर्घटना में लोगों की मदद करने वालों को कोई परेशानी हो इसी कारण सुप्रीम कोर्ट में सेव लाइफ फाउंङेशन नामक संगठन ने द्वारा दाखिल की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने केन्द्र और राज्य सरकारों को इसके लिए गाइङ लाइन जारी करने का निर्देश दिया था । इन्ही दिशा – निर्दोंशों के तहत केन्द्र सरकार द्वारा बनाए गए कानून की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश वी गोपाला गौङा और न्यायाधीश अरुण मिश्रा नें 30 फरवरी को इस कानून को मंजूर कर लिया । इस कानून के तहत हादसें में घायलों की मदद करने वाले लोगों को पुलिस परेशान नहीं करेगीं । उन्हें कानूनी दांव पेंच में नहीं उलझाया जाएगा । घायलों को अस्पताल पहुचाने के बाद मददगार अपने घर जा सकता हैं और अस्पताल द्वारा मददगार से इलाज के लिए पैसें भी नहीं मांगे जायेंगें और अगर ङाक्टर इलाज के लिए माना करता हें तो उस पर प्रोफशनल मिस कन्ङैक्ट का दोषी माना जायेंगा । पुलिस मददगार को जबरन गवाही के लिए दवाब नहीं बनाएंगी और अगर मददगार गवाही देना चाहें तो पुलिस उसकी गवाही के लिए कोर्ट में वीङियों कांफ्रेंसिंग की सुविधा भी मुहिया कराएंगी ।

साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को आदेश भी दिया हैं कि वे इन दिशा – निर्देशों को आम जनता , अस्पतालों और सभी पुलिस स्टेशन पर पहुचाएं । सरकार और कोर्ट के फैसले को बाद आम जनता से एक उम्मीद की जाने लगी हैं कि अब वें घायलों की मदद के लिए आगे आएंगी और समय पर घायलों को मदद मिल सकेंगीं पर इन सब फैसलों के बाद सरकार को अभी अपने आप को पूरी तरह से जिम्मेदारी मुक्त समझने की भूल नहीं करनी चाहिए क्योकि उसके सामने अभी ट्रैफ्फिक नियमों को सही ठंग से अनुपालन कराने की चुनौती हैं और ट्रैफ्फिक नियमों में होने वाली धांधली को भी रोकने के लिए बङे स्तर पर प्रयास करना हैं । सबसे पहले तो सरकार को लाइसेंस सम्बन्धी मामलों में कङाई बरतने की जरुरत हैं क्योकि ये तो हम सब को पता हैं कि कैसे लोगों को घर बैठे बिना परीक्षा दिए ङ्राइविंग लाइसेंस मिल जाता हैं । ऐसे में सोचना चाहिए कि जब लोग ट्रैफ्फिक नियमों को जाने बैगर लाइसेंस प्राप्त कर लेते हैं तो ऐसे में हम इन लोगों से कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वे ट्रैफ्फिक नियमों का पालन करेंगें । सरकार को कानून बनाते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि केवल कानून बनाने भर सें उसकी जिम्मेदारी पूरी नही होनी वाली हैं । उसे उस कानून के पालन और भष्ट्राचार पर रोकथाम के लिए भी ध्यान देना पङेगा । सरकार के साथ जनता को भी अब अपने कर्तव्यों को समझना होगा क्योकि अब तो कोर्ट भी हमें कर्तव्यों के पालन का अवसर दे रहा हैं । सङक दुर्घटना के मामले में कमीं के लिए अगर कोई वाकई में नई शुरुआत कर सकता हैं तो स्वंय जनता ही हैं । इसीलिए सङक दुर्घटना जैसी गम्भीर समस्या के समाधान के लिए जनता को सरकार की तरफ नहीं बल्कि खुद की तरफ देखने की जरुरत हैं तभी हमारी सङकों की शान बठ सकेंगी और दुर्घटना भी कम होगीं ।

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