क्या यह  लव “जिहाद” होगा….?

यह सर्वविदित ही हैं कि मुगलकालीन इतिहास को छोड़कर भी देखे तो वर्तमान में दशकों से जिहादी मानसिकता के अंतर्गत मुसलमान गैर मुस्लिम लड़कियों को छदम रुप से बहला-फुसलाकर अपने प्रेमजाल में फंसाते आ रहें हैं। तत्पश्चात उससे निकाह करके या बिना निकाह किये भी उनका अनेक दुराचारों द्वारा उत्पीडन करके उसके जीवन को नर्क बना देने में उनको शबाब मिलता हैं। उनके ऐसा करने से “उनको जन्नत मिलेगी” का भ्रम फैलाने वाले मुल्ला-मौलवियों का यह षडयंत्र जो  “लव जिहाद” कहलाता है इस्लामिक जिहाद का एक अत्यंत निंदनीय व अमानवीय भाग है। इस विश्व-व्यापी समस्या से सारा समाज भली भांति परिचित हैं। फिर भी अनेक बुद्धिजीवी व प्रगतिशील समाज के गैर मुस्लिम लोग ऐसे षडयंत्रों का शिकार होते आ रहें हैं। विभिन्न समाचारों से ऐसा ज्ञात होता आ रहा है कि हमारे देश के अधिकांश भागों में यह षड्यंत्र विदेशी धन की सहायता से निरंतर चल रहें हैं।
सबसे नवीनतम उदाहरण जो प्रकाश में आया है वह गाज़ियाबाद के एक वरिष्ठ वैश्य हिन्दू परिवार की उच्च शिक्षित, सुशील व सुंदर लड़की का हैं। जिसका एक मुस्लिम लड़के के साथ वर्षो से प्रेम प्रसंग चलने के बाद विधि अनुसार न्यायालय में निकाह/ विवाह कराया गया। तत्पश्चात कन्या पक्ष ने (22 व 23 दिसंबर 2017) अन्य औपचारिकतायें अपने वैभवशाली निवास व एक अन्य आकर्षक स्थल पर सम्पन्न करीं हैं। लेकिन यह घटना एक प्रश्न छोड़ गई है कि क्या इस लव मैरिज को लव जिहाद कहना उचित होगा ? यधपि स्थानीय जागरुक हिन्दू समाज ने इस वैध परंतु बेमेल विवाह का उनके निवास स्थान पर शांतिपूर्ण विरोध जताया फिर भी स्थानीय प्रशासन ने वहां की ऐसे घेराबंदी करी थी कि मानों कोई बड़ा आतंकवादी आक्रमण हो रहा हो । विशेषतौर पर यह कुछ अनुचित लगा कि प्रदर्शनकारियों की संख्या से अधिक लगभग दुगनी संख्या में पुलिस बल नियुक्त था। जबकि गाज़ियाबाद नगर प्रदेश के एक प्रमुख नगरों में गिना जाता हैं और यहां सत्ताधारी भाजपा का अच्छा प्रभाव हैं। महानगरपालिका में आधे से अधिक पार्षद सहित महापौर से लेकर विधायक व सांसद (दोनों राज्यमंत्री) सभी भाजपा के हैं और भारी बहुमत से विजयी हुए थे। इसके उपरांत भी इस बेमेल विवाह को न तो कोई समझा-बुझा कर रुकवा सका और न ही कोई प्रभावशाली प्रदर्शन हो सका।
ऐसी भीड़ में कुछ लोगों के विभिन्न विचार भी सुनने को मिले , जैसे कोई कह रहा था कि “बच्चों की इच्छाओं के आगे सब निरुत्तर होते हैं” तो किसी ने कहा “अगर शादी हिन्दू रीति रिवाजों से होगी तो बिटिया के भविष्य के लिए अच्छा रहेगा”, कुछ सज्जन “प्रभु इच्छा को ही श्रेष्ठ”  मान कर झंझट से बच रहें थे। फिर एक समझदार व्यक्तित्व वाले सज्जन मिले और बोले क्यों ऐसे विवादों में पड़ते हो जब “मियां बीबी राजी तो क्या करेगा काजी” वाली पुरानी कहावत का वास्ता देकर चलते बनें। मैं सोच में पड़ गया कि क्या हम अभी तक ऐसा कोई काजी नही बना सकें जो मियां-बीबी को राजी ही न होने दें ?
यह कहां तक उचित है कि आधुनिक समाज में बेटियों को स्वतंत्र रुप से पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करने की छूट हो और वे अपने माता-पिता के अनुरुप व्यवहार न करके अपने मनमाने ढंग से रहने लगे ?  यहां तक कि ऐसे बच्चे अन्य धर्म में भी संबंध को अनुचित नही मानते। इतने पर भी यदि हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें तो कभी मेरी, कभी तेरी व कभी उसकी कोई न कोई अबला बहन-बेटी इन बहरुपियों के चंगुल में फसती रहेगी। ऐसी विपरीत परिस्थिति में हम कैसे व कब तक अपनी बहन-बेटियों को सुरक्षित रख पायेंगे ? अतः जब तक धर्म  व संस्कार से बच्चों को प्रेरित नही किया जायेगा और उसके महत्व से उनको अवगत नही कराया जायेगा साथ ही अपने धर्म के प्रति स्वाभिमान नही जगेगा तब तक दुराचार बढ़ता ही रहेगा।
हमारा समाज यह क्यों नही समझना चाहता कि इस्लाम में गैर मुस्लिम के प्रति कोई सम्मान नही होता वे अधिकांश उनसे घृणा करते हैं । ऐसी असमान विवाह/निकाह हिन्दू रीति से हो या कोर्ट से या मौलवी द्वारा कुछ माह या कुछ वर्ष उपरांत निष्कर्ष सभी स्थितियों में गैर मुस्लिम लड़कियों का उत्पीडन ही पाया जाता रहा हैं । ऐसे लव जिहाद संबंधित आत्मघाती व अधार्मिक कृत्य के व्यापक दुष्प्रचार होने से समाज को इन षडयंत्रो के प्रति सचेत रहने का बार बार संदेश मिलता रहता हैं फिर भी हमारा समाज समझते हुए भी अनजान बना रहता हैं।यह एक गंभीर चिंता का विषय हैं कि हिन्दू समाज कब तक ऐसे जिहादियों से लुटता व पिटता रहेगा ? क्या ऐसे में जागरुक समाज का यह दायित्व नही बनता कि वह ऐसे बिगड़े हुए दूषित वातावरण को स्वस्थ करने व रखने के लिए शेष समाज को व्यवहारिक कठोरता के साथ कर्तव्य का बोध करायें ?  ढोंगी धर्मनिरपेक्षता से भ्रमित समाज के लोगों को भी ऐसे षडयंत्रो के प्रति सावधान करना होगा।‎ संविधान का सम्मान रखते हुए क्या ऐसे परिवारों का समाजिक बहिष्कार नही होना चाहिये जो आत्मघाती व अधार्मिक षड्यंत्रों का शिकार होने पर भी सतर्क नही होते बल्कि उसका सुखद पारिवारिक व सामाजिक प्रदर्शन करके अपनी कोई विवशता का भी आभास नही होने देतें ? इन विकट परिस्थितियों में क्या समाज को सतर्क रहकर अपने धर्म की रक्षार्थ संघर्ष करना आवश्यक नही ?  “धर्मो रक्षति रक्षितः” का मंत्र भी हमको यही संदेश देता हैं कि धर्म की रक्षा करोगें तभी धर्म हमारी रक्षा करेगा।
यहां यह लिखना भी अनुचित नही  होगा कि जब हिन्दू धर्म के सामर्थ्य शाली वैश्य समाज के लोग अपनी लड़कियों की मुस्लिम समाज में सहर्ष शादी करेंगे तो अन्य दुर्बल हिन्दू समाज का क्या होगा ? जबकि यह एक एतिहासिक सत्य हैं कि मुगल काल में भी वैश्य समाज ने मुगलों के अत्याचार भले ही सहें हो परंतु अपनी अस्मिता से संभवतः कोई समझौता नही किया था। इसी प्रकार अनेक सवर्ण हिंदुओं सहित बाल्मीकि व कुछ दलित समाज का भी प्रेरणाप्रद इतिहास मिलता हैं , जिन्होंने मुगलों के अत्याचार सहे पर अपना धर्म नही छोड़ा। इस्लामी आक्रमणकारियों के इतिहास का ज्ञान न होना भी हमारे समाज को विशेषतौर पर आज की युवा पीढ़ी को धर्म मार्ग से वंचित किये हुए हैं। अतः भूतकाल का अध्ययन भविष्य का निर्माण करने के लिए आवश्यक हैं ।

विनोद कुमार सर्वोदय

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