ऐसा पहली बार हुआ है,
मुंह से भाप नहीं निकली है,
ना ही दाँत किटकिटाये हैं।
शिशिर नहीं आया इस बार,
हेमंत ऋतु के जाते जाते,
ऋतुराज बंसत पधार गये हैं,
ऋतु-चक्र परिवर्तन अबके,
यह संदेशा लेकर आये हैं-
प्रकृति को इतना मत रौंदो,
रौंदेगी वो इक दिन तुमको!
ऐसा पहली बार हुआ है,
मुंह से भाप नहीं निकली है,
ना ही दाँत किटकिटाये हैं।
शिशिर नहीं आया इस बार,
हेमंत ऋतु के जाते जाते,
ऋतुराज बंसत पधार गये हैं,
ऋतु-चक्र परिवर्तन अबके,
यह संदेशा लेकर आये हैं-
प्रकृति को इतना मत रौंदो,
रौंदेगी वो इक दिन तुमको!
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रहा है। ऐसे में मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। प्रवक्ता डॉट कॉम इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।