तुम्हारी तसव्वुर इस कदर मुझे सता रही
हर दीप्त की भांति बता रही
हर तरफ दिखता दीद तुम्हारा
ये वासर अब ढलने को , शाम का अक्स बना रहा
तुम्हारी नशीली आँखें मुझे क्षतिग्रस्त कर रही
हर लफ्ज़, तकल्लुफ को मरहम कह रही
ये अहोरात्र भी सिर्फ तुमसे शुरू होता है
मेरी तन्हाई को दूर कर , मेरी प्रियतम
इन परवश आंखों को चूम लो
हो रहा वृष्टि बनके वात संग झूम लो
मेरी जां ये वात भी तुम्हारा एहसास ए मसर्रत कराती
मेरी जिस्म को परसना कर,इश्क़ कर रूह में बस जाती
कहती श्लोक तुम इस कदर लीन हों जाओ
सुबह का सर ए शाम , शब वासर ए मसर्रत हो जाओ
ये तसव्वुर भी मुझसे तुम्हारा जिक्र करती
तुम्हारी आंखों में अश्क बन सराय करती
तुम्हारा उर धड़क रहा , मेरे खत को ढूंढ रहा
दिन तो ढल जाता तुम्हारी तसव्वुर के सहारे
राते बेचैन कर देती , हर सांस को गरोल समझ लेती