—विनय कुमार विनायक
नारी तुम्हारी सुंदरता है स्वर्ग से सुन्दर,
नारी तुम्हारी आस्था है सृष्टि के ऊपर!
नारी तुम्हारी इच्छा से ही उपजा अक्षर,
कवि की लेखनी औ’ योद्धा की तलवार!
नारी की प्रेरणा से सब करते चमत्कार,
नारी तुम्हारे प्रेम से ही फैला ये संसार!
नारी की उपेक्षा हीं है यमराज का द्वार,
नारी की करुणा ही है बुद्ध का उद्गार!
नारी की त्याग से बनी है सीता-सावित्री,
नारी की आग से ही निकली थी द्रौपदी!
नारी की घृणा से मरा रावण-कौरव-कंश,
नारी तुम नारायणी, नर है तुम्हारा अंश!
नर को इस धरा पर ना बांध सका ईश्वर,
नर की सृष्टि करके डरा-सहमा था ईश्वर!
नर में नकारात्मक,हिंसक ऊर्जा डालकर,
कैसे शांत रहेगा नर ये सोचने लगे ईश्वर!
कि सहसा ख्याल गया मां लक्ष्मी पर,
जैसे रमा की आशक्ति पे रमापति निर्भर!
जैसे शव शिव होते शिवा से संयुक्त होकर,
वैसे उमा-रमा-ब्रह्माणी बिना बंधेगा ना नर!
अस्तु नर के बाद नारी आयी इस धरा पर,
हिंस्र नर बांधने त्रिदेवियों की शक्ति लेकर!
विधि की अपूर्ण-अतृप्त-आकाशी रचना नर,
नारी संपूर्ण-सुयोजित-संतृप्त-समर्पित सुंदर!
नर आक्रोश,जोश,खरोश,खामोश संरचना,
ईश्वर ने नारी रची रच-रच सोच-समझकर!
इसी उधेड़बुन में,नर को साधने के धुन में,
नारी कोमल-विमल-विश्वमोहिनी बनाकर!
ईश्वर ने स्त्री गात्र को असुरक्षित कर डाला,
पर आजीवन पिता-पति-पुत्र की सुरक्षा दी!
अस्तु नारी की विधि विचारित लाचारी ऐसी,
बचपन-यौवन-वृद्धापन में त्रिदेव हैं आरक्षी!