सकार शब्दों का अस्तित्व
आज खतरे में है
किन्तु शब्द खतरे में है जैसी गुहार
क्यों नहीं लगाते शब्द रचनाकार?
‘सच्चरित्र’,’सत्यवादी’, ‘सत्यनिष्ठ’,
‘सदाचारी’,’सद्व्यवहारी’, ‘संस्कारी’
जैसे लुप्तप्राय होते शब्दों के लिए
सरकार क्यों नहीं बनाती
एक योजना प्रोजेक्ट टाइगर जैसी?
मिथकीय-ऐतिहासिक
चरित्र नायकों के बूते कबतक
चलते रहेंगे ये शब्द;
मनुष्यता के लबादे
ओढ़ने-पहनने-बिछाने के
अभाव में कबतक ढो पाएगी
इन शब्दों को डिक्सनरी?
क्या शीघ्र नहीं हो जाएंगे
ये सकार सद शब्द
संग्रहालय के कचरे जैसा
लेक्सीकान की मृत शब्द सम्पदा?