विश्व सीनियर सिटीजन दिवस :: करें बुजुर्गों का आदर सत्कार व देखभाल ,ये है जीवन का अनमोल आधार

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भगवत कौशिक

आज 21 अगस्त यानी वर्ल्ड सीनियर सिटीजन दिवस,स्पष्ट शब्दों मे कहे तो अंतरराष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक दिवस।हमारे बुजुर्गों के लिए सम्मान प्रकट करने के उद्देश्य से ही हर वर्ष 21 अगस्त को विश्व सीनियर सिटीजन दिवस मनाया जाता है। बुजुर्गों के प्रति सम्मान की भावना प्रकट करने व उनको यह अहसास दिलाने की आप हमारे लिए महत्वपूर्ण और सम्मानीय हो इसी उद्देश्य के चलते अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने इस दिन को देश-दुनिया के सीनियर सिटीजेन्स को समर्पित करने के लिए इस दिन को मनाने की शुरुआत की। इसलिए आप भी कोशिश करें कि अपने परिवार और आस-पास के सभी वरिष्ठ जनों का सम्मान करेंगे
■ संस्कारों और अनुभव का खजाना है हमारे बुजुर्ग –
 हमारे समाज मे बुजुर्ग हमेशा से परिवार के मुखिया के तौर पर सम्मानिय रहे है।सयुंक्त परिवार मे तो बुजुर्ग की अहमियत सबसे ज्यादा रही है।परिवार को एक सूत्र मे पिरोने का कार्य हमेशा से हमारे बुजुर्गों ने किया है।इनकी अहमियत का अंदाजा हम इन शब्दों से लगा सकते है कि “कुछ पल बैठा करो बुजुर्गों के पास हर चीज गूगल पर नहीं मिलती”। जी हा आज के इस आधुनिक युग मे हम इंटरनेट के माध्यम से हर जानकारी तो कुछ पल मे ही हासिल कर सकते है ,लेकिन अच्छे संस्कार और आचरण हमे परिवार के बुजुर्ग सदस्यों से बढकर कोई नहीं दे सकता।बुजुर्ग हैं तो बच्चों की कहानियां गुलजार हैं। दुआओं की दुनिया आबाद है। रिश्तों की अहमियत बरकरार है। अनुभव का खजाना, स्नेह का नजराना। कंपकपाती अंगुलियों से बरसा आशीर्वाद ऊर्जा का संचार करता है। इस सब गुणों का एकमात्र भंडार हमारे बुजुर्ग ही है।
भारत, पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा युवा आबादी वाला देश है और अब ये आत्मनिर्भर लोगों का भी देश बन चुका है। बावजूद यहां वरिष्ठ नागरिकों की स्थिति को लेकर हमेशा सवाल खड़े होते रहते हैं। देश में बुजुर्गों के साथ होने वाले अपराधों की संख्या भी बहुत ज्यादा है। ये एक ऐसी अवस्था है जब तन ही नहीं, व्यक्ति मन से भी बीमार पड़ने लगता है। ऐसे में बुजुर्गों को खास देखभाल की जरूरत होती हैइतिहास में अनेकों ऐसे उदाहरण है कि माता-पिता की आज्ञा से भगवान श्रीराम जैसे अवतारी पुरुषों ने राजपाट त्याग कर वनों में विचरण किया, मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार ने अपने अन्धे माता-पिता को काँवड़ में बैठाकर चारधाम की यात्रा कराई। फिर क्यों आधुनिक समाज में वृद्ध माता-पिता और उनकी संतान के बीच दूरियां बढ़ती जा रही हैं। आज का वृद्ध समाज-परिवार से कटा रहता है और सामान्यतः इस बात से सर्वाधिक दुःखी है कि जीवन का विशद अनुभव होने के बावजूद कोई उनकी राय न तो लेना चाहता है और न ही उनकी राय को महत्व देता है। समाज में अपनी एक तरह से अहमितय न समझे जाने के कारण हमारा वृद्ध समाज दुःखी, उपेक्षित एवं त्रासद जीवन जीने को विवश है।
■ भारत मे बुजुर्गों की संख्या –
भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की जनसंख्या 104 करोड़ थी। इनमें 51 करोड़ पुरुष और 53 करोड़ महिलाएं थीं। अनुमान है कि इस वक्त भारत में 125 से 150 करोड़ बुजुर्ग नागरिक होंगे।
■ देश में एक चौथाई बुजुर्ग अकेले रहने को मजबूर–
मां-बाप बड़े अरमानों से बच्चों को पढ़ा लिखाकर काबिल बनाने की कोशिश करते हैं। लेकिन हैरानी तब होती है जब बुढ़ापे में ये ही बच्चे मां-बाप को उनके हाल पर अकेला छोड़ देते हैं। पिछले साल दिल्ली के एक गैर सरकारी संगठन एजवेल फाउंडेशन ने देश के 20 राज्यों के 10 हजार बुजुर्गों पर एक सर्वेक्षण किया था। इसकी रिपोर्ट डराने वाली है। रिपोर्ट के मुताबिक, 23.44 फीसद यानी देश का का हर चौथा बुजुर्ग देश में अकेला रहने को मजबूर है। ऐसा भी नहीं कि यह बुराई शहरों तक सीमित है। रिपोर्ट कहती है कि 21.38 फीसद बुजुर्ग गांवों में जबकि 25.3 फीसद शहरों में अकेले रह रहे हैं।
■ आदर, सेवा और सम्‍मान के अधिकारी है बुजुर्ग –
 वृद्धावस्था जीवन का अनिवार्य सत्य है। जो आज युवा है, वह कल बूढ़ा भी होगा ही, ऐसे में युवाओं को एक बात बड़ी गहराई से बैठा लेनी होगी कि उन्हें भी समय के इस चक्र के गुजरना होगा और बुजुर्गों का आदर सम्मान और सेवा करनी चाहिए।
■ आखिर बुजुर्गों की समस्या का कारण क्या है —
 जब युवा पीढ़ी अपने बुजुर्गों को उपेक्षा की निगाह से देखने लगती है और उन्हें अपने बुढ़ापे और अकेलेपन से लड़ने के लिए असहाय छोड़ देती है। आज वृद्धों को अकेलापन, परिवार के सदस्यों द्वारा उपेक्षा, तिरस्कार, कटुक्तियां, घर से निकाले जाने का भय या एक छत की तलाश में इधर-उधर भटकने का गम हरदम सालता रहता। वृद्धों को लेकर जो गंभीर समस्याएं आज पैदा हुई हैं, वह अचानक ही नहीं हुई, बल्कि उपभोक्तावादी संस्कृति तथा महानगरीय अधुनातन बोध के तहत बदलते सामाजिक मूल्यों, नई पीढ़ी की सोच में परिवर्तन आने, महंगाई के बढ़ने और व्यक्ति के अपने बच्चों और पत्नी तक सीमित हो जाने की प्रवृत्ति के कारण बड़े-बूढ़ों के लिए अनेक समस्याएं आ खड़ी हुई हैं।
■ परिवार को जोड़ने की अहम कड़ी हैं बुजुर्ग-
 बुजुर्ग परिवार की  शान होते हैं और इनसे परिवार एक गांठ में जुड़ा रहता है।बुजुर्गों के कारण ही आज भी समाज मे संयुक्त परिवार बचे हुए है।परिवार के सुख दुख मे हमारे बुजुर्ग एक अहम भूमिका निभाते है और परिवार का हिम्मत और हौसला बढाते है।

■  केवल सम्मान और प्यार की ही रखते है इच्छा –
जबकि, एक तरह से देखा जाए तो परिवार के वरिष्ठ नागरिक आपसे सिर्फ सम्मान और प्यार की आशा रखते हैं, न कि धन और सुख-सुविधाओं की। वाबजूद इसके अक्सर लोग अपने परिवार के वरिष्ठजनों के साथ रहने में हिचकिचाते हैं और उनसे अलग रहना पसंद करते हैं।
हमें समझना होगा कि अगर समाज के इस अनुभवी स्तंभ को यूं ही नजरअंदाज किया जाता रहा तो हम उस अनुभव से भी दूर हो जाएंगे, जो हमारे समाज और खासकर बच्चों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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