सामूहिक कीर्तन के उपासक- श्री श्री 1008 श्री हरे राम जी महाराज

              नर्मदापुरम के महान संत की जीवनी
           सन् 1900 का वह दौर था जब अंग्रेजों को नर्मदाजी के मध्यपूर्व से पश्चित तक फैले विशाल पर्वत सतपुड़ा-विन्ध्याचल की उचाईयों ही नहीं अपितु नर्मदा जल की पवित्रता के दर्शन का आभास होने लगा। इस दौर में नर्मदा की सामूहिक परिक्रमा के लिये बडे़ दादा जी केशवानन्द जी की जमात उन्हें अपनी देवीय शक्ति का आभास करा चुकी थी और शहर के बीचोंबीच बने नाले के गंदे पानी को बंद करवाकर वहॉ सेठ डालचंद की पत्नी व नन्हेलालजी और घासीरामजी की मॉ सेठानी जानकीबाई घाट का निर्माण करा चुकी थी जो कालान्तर में उनके ही नाम सेठानीघाट के रूप में प्रतिष्ठत है। इसी नर्मदा क्षेत्र में कड़ा माड़िकपुरी जिजौतिया ब्राम्हण पण्डित हीरालाल जी परसाई जी के घर कहारिया ग्राम में संवत 1957 के चेत्र महिने (सन् 1900)में एक बालक का जन्म हुआ जिसका नाम जगन्नाथ प्रसाद था। जगन्नाथ प्रसाद को माखनलाल चतुर्वेदी जी का मित्र बताया गया है।

 ’’माखनलाल चतुर्वेदी की जीवनी’’ के लेखक लक्ष्मीचन्द जैन के अनुसार माखनलाल चतुर्वेदी के दादा जी (चाचाजी) पण्डित हीरालाल चतुर्वेदी का विवाह सन् 1901 में जिन हीरालाल जी की बेटी से होना बताया गया है वह हीरालाल जी होशंगाबाद के धनिक सेठ नन्हेलाल जी के मुनीम थे तथा इन्हीं हीरालाल जी के घर जन्मे बालक जगन्नाथ प्रसाद के तथ्य को अस्वीकार करते हुये हरेराम महाराज के वंषज अषोक परसाई जी द्वारा उनके वंषवृक्ष की जानकारी से इस सत्य को प्रमाणित किया है कि वे कहारिया के हीरालाल जी परसाई के पुत्र थे, जो वंषवेल से स्वमेव प्रमाणित होने से हरेराम महाराज के पिता एवं जन्म को लेकर सारे संषय समाप्त हो जाते है। हीरालाल जी ने अपने पुत्र जगन्नाथ का विवाह किया लेकिन उन्होंने विवाहोपरांत गृहस्थी छोड़कर विरक्ति का मार्ग अपनाया और कालान्तर में वे ही सामूहिक कीर्तन के उपासक बनकर हरेराम जी महाराज के नाम से नर्मदाचंल में विख्यात हुये।

जगन्नाथ प्रसाद जो अब वैराग्य धारण करने के पश्चात संकीर्तन के द्वारा भगवान के बाल स्वरूप की उपासना में समय बिताकर उनके साक्षात दर्शन करने के बाद असीम आनन्द एवं मस्ती में लीन रहते और आम व्यक्ति की तरह धारण की जाने वाली पोषाक को त्याग वे टाट को ओढ़ते और बिछाते थे।उनकी भक्ति की चर्चा सभी ओर फैल गयी थी और उनके त्याग और कठोर तपस्या व संर्कीतन में सदैव लीन रहने से संतों में उनकी गिनती होने लगी। उनके द्वारा सभी प्रकार का भोज्य-अनाज फलादि का पूर्णतया परित्याग कर दिया गया और वे अखण्ड कीर्तन के समय मात्र अभिमंत्रित बिल्वपत्र को भोज्य स्वरूप चौबीस घन्टे में एक समय ग्रहण कर नाम संकीर्तन के पश्चात वे सदैव मौन में चले जाते थे और न किसी के पैर स्पर्श करते और न ही किसी को अपने पैर स्पर्श करने देते, उनके द्वारा सुबह चार बजे से प्रभातफेरी निकाली जाती जो दोपहर 12 बजे वे कुटिया में लौटते।

आचार्य पुरूषोत्तम दीक्षित जी द्वारा संकलित गोरखपुर से प्रकाशित कल्याण के 711 अंक में प्रकाशित जानकारी के अनुसार हरेराम जी महाराज के होशंगाबाद नगर में पधारने का समय सन् 1934 का रहा है जिसमें वे कुछ समय श्रीजी के मंदिर के एक कक्ष में रहने के बाद वे भक्तों द्वारा बनाकर दी गयी कुटिया में साधनारत रहने लगे और उसी समय उनके द्वारा अखण्ड दीपक में ज्योति प्रज्वल्वित कर उसकी स्थापना की गयी जो आज भी निरन्तर 89 वर्षो से प्रज्वल्वित है जिसके दर्षनों के लिये भक्तों का सैलाब समय-समय पर देखा जा सकता है। महाराज जी  सामूहिक कीर्तन करते समय भाव समाधि में लीन हो जाते जिन्हें मूर्छित समझकर अनेक बार चिकित्सकों से जॉच करायी गयी किन्तु वे पूर्णतरू स्वस्थ्य पाये गये और मूर्छा त्याग कर पुनः कीर्तन में लीन हो जाते तथा कितनी भी आग उगलती गर्मी हो, या हाड कडकड़ाती ठण्ड हो, या मूसलाधार बरसात वे सदैव नंगे पाव घुटने भर कीचड़ में चलते-रहते और टाटपटटी धारण कर सेवा करते। उनके द्वारा अन्न-फलादि का सेवन नहीं किया जाता था, केवल बिल्वपत्र के सेवन से लोग मिश्रित कौतूहल से उनकी ओर खिंचे चले आते थे। एक समय ऐसा आया कि उन्होंने बिल्वपत्र का त्याग कर चौबीस घन्टे में एक बार ग्वारपाठे के गूदे का सेवन करना शुरू कर दिया।

महाराज जी की नर्मदा के प्रति अगाध श्रद्धा व भक्ति थी।वे हमेशा नर्मदाजल ही ग्रहण करते थे तथा तीर्थाटन पर जाने के दरम्यान गंगा जी व यमुना जी का जल ग्रहण करते। रामचरित्र मानस उनके हृदय में रची-बसी थी तथा संकीर्तन के बाद वे रामचरित्र मानस पर अपनी मधुर ओजस्वी वाणी से सभी को मंत्रमुग्ध किया करते थे। उनके एक भक्त और उनके दरवार में भजन की प्रस्तुति देने वाली बैनीप्रसाद पालीवाल जी की मॉ श्रीमति सहोदरा पालीवाल के सुनाये प्रसंगानुसार 15 अगस्त 1947 को देष आजाद हो चुका था तब उसी दिन उनके बाल बैनीप्रसाद का जन्म हुआ था उसके कुछ महिने बाद दीपावली का त्यौहार मनाया जाने वाला था तब हरेराम महाराज जी देहातीत की स्थिति में हुआ करते थे और उन्हें अपने शरीर का भान नहीं होता था तथा वे सुबह चार बजे से 11 बजे तक संकीर्तन में नाचने लगते और उनकी ऑखों से अश्रुधारायें फूटती दिखती तो अनेक बार वे धरती पर लौट लगाने लगते जिससे उनका शरीर चोटग्रस्त हो जाता। तभी उनके पैर में एक फोड़ा हुआ जिसकी चिकित्सा महाराज जी नहीं कराना चाहते थे और फोड़ा बड़े जख्म का रूप ले चुका था।मॉ सहोदरा उस समय भजनमण्डली में गाया करती थी और हरेराम महाराज की अनन्य भक्तों में एक थी। तब सभी भक्तों के साथ मॉ सहोदरा ने महाराज जी से आग्रह कर चिकित्सक को पैर दिखाने का अनुरोध किया तब वे अपने भक्तों की बात मान गये।

तब होशंगाबाद नगर के प्रसिद्ध चिकित्सक डाक्टर अमीर खॉ ने आकर देखा और बिना शल्यक्रिया के ठीक न होना बतलाया और षल्यक्रिया के लिये महाराज जी को बेहोश किया जाने की बात पर महाराज जी ने बेहोश कराने से इंकार कर दिया। सभी के अनुनय पर उन्होंने शर्त रखी कि उन्हें बिना बेहोश किये शल्य चिकित्सा की जाये। डाक्टर के लिये यह पहला अवसर था कि शल्य चिक्त्सि में मरीज को बेहोश किये बिना इलाज करना था। डाक्टर अमीर खॉ ने महाराज जी की शल्य चिकित्सा शुरू की तब तक महाराज हरेराम का उदघोष करते रहे कब शल्यचिकित्सा हो गयी और फोटा हटा दिया गया तथा शरीर में महाराज जी ने कोई पीड़ा अनुभव नहीं की यह जानकर सभी दंग रह गये। इस शल्य चिकित्सा के पश्चात डाक्टर अमीर खॉ भी महाराज जी के भक्त हो गये और अक्सर समय निकालकर महाराज जी के पास आकर संकीर्तत सुनते और बताते कि उन्हें यहॉ आकर असीम सुख और शांति प्राप्त होती है।

हरेराम जी महाराज की वंशावली श्री भगवान परसाई से प्राप्त होती है जिनकी छटवी पीढ़ी में हरेराम जी महाराज का जन्म हुआ। वंशवेल के क्रम को देखा जाये तो श्रीभगवान परसाई के पुत्र सभाचन्द जी, सभाचन्द जी के पुत्र लक्षीराम जी और लक्षीराम जी परसाई के चार पुत्र क्र्रमशः शिवचरण, हरीरामजी, गोविन्दराम जी, सेवकराम जी एवं बिहारी परसाई हुये। बड़े पुत्र शिवचरण के दो पुत्र हीरालाल परसाई एवं रामदयाल जी जिन्हें गुलाबचंद भी कहा गया,सभी ग्राम कहारिया निवासी थे। ज्येष्ठ पुत्र हीरालाल जी के तीन पुत्र हुये जिनमें जगन्नाथ प्रसाद जी, जो हरेराम महाराज के नाम से विख्यात सिद्ध संत हुये। वही उनके दो अन्य छोटे भाईयों में गौरीशंकर जी एवं भवानीशंकर थे। गौरीशंकर जी निसन्तान रहे जबकि भवानीशंकर जी के दो पुत्र रामकिंकर जी तथा रामकृष्ण द्वारा हरेराम महाराज की अखण्ड संकीर्तन परम्परा को जीवित रखा गया। रामशिव किंकर जी के दो पुत्र राघवेन्द्र एवं माधवेन्द्र हुये तथा राघवेन्द्र के काकुस्थ उर्फ यश का जन्म हुआ।दूसरी ओर रामकृष्ण के एक पुत्र मुकुन्दवल्लभ ने जन्म लिया। हरेराम महाराज के पूज्य पिताजी श्री हीरालाल जी परसाई के दूसरे भाई रामदयाल जी उर्फ गुलाबचन्द जी के तीन पुत्र धनेश्वर प्रसाद, रामनारायण एवं रामेश्वर प्रसाद हुये। रामनारायण के लक्ष्मीनारायण, लक्ष्मीनारायण के दीपक एवं अशोक हुये वही रामेश्वर प्रसाद के ओमप्रकाश व अशोक तथा ओमप्रकाश के गोपाल एवं गोपाल के अजय परसाई हुये। जिन्होंने अब भी हरेराम महाराज की परम्परा को जीवित रख संकीर्तन में पूरे नगर में अलग पहचान बनायी हुई है।

सेठानीघाट पर प्रसिद्ध संत सीताराम ओंकारानन्द जी महाराज बंगाली बाबा के नाम से विख्यात वे आये और महाराज जी से मिलने पहुॅचे। दो महान संतों का मिलन अद्वितीय कहा गया जिसे शब्दों में व्यक्त कर पाने के लिये कलम नहीं चल सकी। दोनों संतों के मिलन के अवसर पर सभी ने दोनों संतों को एक अपूर्व सौन्दर्य एवं उच्चकोटि की आभा से प्रकाशित पाया तथा दोनो ंसंत बिना एक शब्द कहे धरती पर लौट लगाकर बालकों की तरह हरकत करते दिखे, जिसे उन दोनों ने ही समझा, शहर का कोई भी भक्त उनके इस परममिलन के रहस्य को नहीं समझ सका। इस घटना के कुछ दिनों बाद ही माघ शुक्ल की चतुर्थी को 24 जनवरी 1958 संवत 2014 में श्री श्री 1008 श्री हरेराम जी महाराज की दिव्यज्योति परमात्मा में विलीन हो गयी और उनके शरीर त्यागने के साथ ही आज भी उनकी स्मृति में प्रतिवर्ष उनकी पुण्यतिथि पर संकीर्तत-भण्डारा का आयोजन किया जाता  है तथा अखण्ड संकीर्तन एवं अखण्ड ज्योति आज भी अनवरत जारी हैं।
भक्तिरस की भावना में श्रृंगार और नृत्य से लौकिक जगत में जिस प्रकार अपपुरूष ंअपनी प्रिया की भावना करता है और भाव में स्वयं पुरूष होते हुये भी स्त्री का हृदयधारण कर कृष्ण की आराधना में नित्यसिद्ध हो जाता है, उसी परम्परा के जनक महाप्रभु चैतन्य जी महाराज की भक्ति का रस समूचे देष के अनेक नगरों-मोहल्लों में सदियों से संचारित हो रहा है और अगणित भक्त मण्डलियॉ स्वयं को गोपीस्वरूप समझ सर्वेष्वर की निष्काम प्रेममयी भक्ति करता है उसी श्रृंखला को पीढ़ी दर पीढ़ी प्रभातफेरियों में राधे-राधे का भावपूर्ण संकीर्तन का दायित्व मेहन्दीपुर बालाजी के पास सिकवाय जिला राजस्थान के पण्डित रामप्रसाद जी मिश्रा, पण्डित हेमन्त कुमार मिश्रा जी पालन करते आ रहे है।

पिछले 30 सालों से होषंगाबाद नर्मदातट के मोहल्लों में ये आठ माह तक सुबह चार बजे से सात बजे तक श्री राधाजी का गुणानुगान करते हुये ढोलक-हारमोनियम के साथ प्रभातफेरी निकालते है जिसमें नगर के लोग ष्षामिल नही होते, पूर्व के सालों में बिना कहे इनके साथ दर्जनों लोग आ जाते थे लेकिन पिछले 5-6 सालों में लोगों का प्रभातफेरी में षामिल होना बंद हो गया है। हेमन्त कुमार जी विगत 17 सालों से अपने पिताजी के साथ आना षुरू किये थे जब उनके पिता कोरोना काल में 2020 में अपने प्राण त्याग चुके है तब ऐसी स्थिति में वे अपने बेटे संजयकुमार मिश्रा के साथ आ रहे है। हेमन्तकुमार जी के अनुसार उनकी यह पॉचवी पीढ़ी है , उसके पूर्व का उन्हें स्मरण नहीं है। ऐसे ही ग्वालटोली में काली मंदिर क्षेत्र में तीन दषक तक ग्वालसमाज के लोग 1995 तक प्रभातफेरी निकाला करते थे परन्तु धीरे धीरे लोग कम होते गये और फिर दो लोगों ने तीन साल निकालने के बाद प्रभातफेरी बंद कर दी।   

आत्‍माराम यादव पीव 

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