विवेक सक्सेना
मैं हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का बेहद आभारी हूं। शायद किसी को यह विश्वास नहीं होगा कि 36 साल तक छत्तीस बिरादियों वाले हरियाणा प्रदेश की रिपोर्टिंग करते रहने के बावजूद मैं उनसे कभी मिला ही नहीं। उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उनसे आमने-सामने मुलाकात नहीं हुई। सिर्फ चैनलों पर या अखबारों की तस्वीरों में ही उन्हें देखने का सौभाग्य हासिल हुआ है। वे भाजपा की एक अनूठी खोज है। ठीक वैसे ही जैसे कि भारत एक खोज सीरियल था।
ईश्वर और रामलीला प्रबंधकों के बाद इस पार्टी की ही यह खूबी है कि वह जिसे चाहे उसे पूंछ लगाकर हाथ में गदा पकड़ाकर हनुमान बना देती है। जिस पर प्रसन्न हो जाए उसे मुकुट व धनुषबाण पकड़ा कर राम की भूमिका में ला देती है। पहले अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री बनने पर उत्तरप्रदेश में रामप्रकाश गुप्ता को खोजकर मुख्यमंत्री बनाया था। ठीक वैसे ही जैसे कि बच्चों की नजर उतारने के लिए सिल लोढ़े की खोज की जाती है। घर की किसी अंधेरी कोठरी में पड़े इस अनुपयोगी सामान को धों-पोंछकर उसे अचानक अहमियत दी जाने लगती है। उसी क्रम में अपने खट्टरजी भी खोजे गए।
तब लोगों को पता चला कि उन्होंने मुफलिसी में मोदी के साथ कैसे दिन बिताए थे। खट्टरजी ने हरियाणा के सबसे बड़े शहर गुड़गांव का नाम बदलकर गुरुग्राम करने का फैसला किया है। वैसे तो इस राज्य की राजनीति में जो कुछ घटा उसे देखकर गुड़-गोबर सरीखे शब्दों की याद आ जाती है। मुख्यमंत्री ने एक झटके में इतना बड़ा काम कर डाला कि दशकों से चली आ रही इस राज्य की राजनीति की अनबूझ पहेली, एक झटके में ही हल हो गई। उन्होंने बताया कि गुड़गांव का असली नाम तो गुरुग्राम था। यह तो गुरु द्रोणाचार्य की भूमि थी। जहां कौरव व पांडव दोनों उनसे युद्ध की शिक्षा लिया करते थे। उन्हें युधिष्ठिर ने यह जमीन गुरुदक्षिणा में दी थी। गुरुग्राम से बिगड़ते बिगड़ते इसका नाम गुड़गांव हो गया।
तभी समझ में आया कि गुड़गांव का जमीन से इतना गहरा नाता क्यों रहा। लगभग हर मुख्यमंत्री यहां की जमीन के कारण ही किसी न किसी विवाद में फंसा। बंसीलाल ने गुड़गांव में संजय गांधी को 297 एकड़ जमीन देकर उनकी मनपसंद मारुति कंपनी की वहां स्थापना की थी। उन्होंने यह कदम उठाकर संजय गांधी सरीखे बिगड़ैल युवराज को अपने कब्जे में कर लिया था। वे आपातकाल के दौरान रक्षा मंत्री थे पर हरियाणा के मुख्यमंत्री बनारसीदास गुप्ता उनकी खडाउं के रुप में सरकार चलाते थे।
मुख्यमंत्री भजनलाल ने तो मुख्यमंत्री के विवेकाधीन कोटे से जमीन बांट कर नए रिकार्ड बनाए। जिस राज्य में कौरव अपने सगे भाई पांडवों को जमीन का एक इंच का टुकड़ा भी देने को तैयार नहीं थे और जिसकी परिस्थिति कुरुक्षेत्र के युद्ध में हुई उसकी जमीन को अपने समर्थकों को मित्रों के बीच कौड़ियों के भाव बांटा। भजनलाल ने मजे से सत्ता सुख भोगा। उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के चपरासी, सोनिया गांधी के घर में सफाई करने वाली महिला कर्मचारी से लेकर, केंद्रीय मंत्रियों, आईएएस अफसरों व न्यायाधीशों तक को इसी गुड़गांव में जमीन बांटी।
भजनलाल ने जमीन के प्रति इतना आकर्षण पैदा कर दिया था कि जापानी तक गुड़गांव में अपना नगर बसाने के लिए तैयार हो गए थे पर बहुत जल्दी ही उनकी समझ में आ गया कि महाभारत काल की रणभूमि रही इस भूमि से दूर ही रहना अच्छा होगा। भजनलाल के बाद भूपिंदर सिंह हुड्डा ने भी जमीन के जरिए ही देश की सबसे पुरानी सत्तारुढ़ पार्टी का खर्च चलाया। उनके कार्यकाल में 23,000 एकड़ जमीन का लैंड यूज बदला गया। इनमें आम प्रापर्टी डीलर से लेकर सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा तक शामिल थे। अब इन मामलों की जांच शुरु हो गई है।
यह गुड़गांव की भूमि का ही प्रताप है कि उसने ढोर डंगर चलाने वाले किसानों के घरों में भैसों की जगह बेंटले गाड़िया खड़ी कर दी। प्रापटी डीलर रातों रात बिल्डर बन गए। दूसरों के पैरों में हवाई चप्पल पहनाने वाले लोग हवाई कंपनी के मालिक बन बैठे। देखते ही देखते गुड़गांव मल्टीनेशनल कंपनियों का गढ़ बन गया। देश की सबसे बड़ी जमीन कंपनी डीएलएफ के मालिक के पी सिंह ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि एक बार वे कुतुब मीनार के पास कोई जमीन देखने गए थे। यह जमीन हरियाणा में थी। तभी उनके पास एक जीप आकर रुकी। उसमें से राजीव गांधी उतरे जो कि एयर इंडिया की अपनी नौकरी छोड़कर राजनीति में आ चुके थे। उनकी जीप का इंजन काफी गरम हो चुका था। के पी सिंह ने उन्हें इंजन के लिए पानी उपलब्ध करवाया। जब तक गाड़ी चलने लायक होती दोनों बातें करने लगे।
के पी सिंह ने उन्हें बताया कि हरियाणा में विश्व स्तर का शहर बसाना चाहते हैं पर यहां के नियमों के चलते उन्हें जमीन ही उलब्ध नहीं हो पा रही है। राजीव गांधी ने उनको अरुण सिंह से मिलने को कहा। वे दिल्ली आए। अरुण सिंह से मिले। उस समय जमीन खरीदने या मकान बनाने के लिए बैंक कर्ज नहीं देते थे। मुलाकात सफल रही और 1981 में डीएलएफ को हरियाणा की जमीन खरीदकर कालोनी बसाने के लिए 39.34 एकड़ का लाइसेंस जारी किया गया। आज केपी सिंह 2200 लाख वर्ग मीटर फ्लोर एरिया के मालिक है।
भाड़े के सैनिकों के सेनापति की बीवी बेगम समरु ने भी गुड़गांव पर राज किया। शायद यही वजह थी कि हरियाणा के जन प्रतिनिधि भी भाड़े के सैनिकों की तरह बरताव करते आए। देश की राजनीति में ‘आया राम, गया राम’ का मुहावरा यहीं से मिला। भजन लाल ने तो पूरी कैबिनेट समेत ही दल बदल कर डाला था हालांकि गुड़गांव की लोकसभा सीट से 1957 मौलाना अबुल कलाम आजाद जीते थे। उनके निधन के बाद जब चुनाव हुए तो कांग्रेस का प्रत्याशी हार गया। ओम प्रकाश चौटाला ने अपने कार्यकाल में यहां डिजनीलैंड लाने की कोशिश की थी। अब देखना यह है कि मनोहरलाल खट्टर के शासन में आने के बाद गुरुग्राम की जमीन पर क्या गुल खिलते हैं। वैसे हाल ही में गौ भक्त राज्य सरकार ने नील गाय को मारने के लिए उसके नाम से ‘गाय’ शब्द हटा कर हिरण कर दिया है ताकि उस पर ‘गो-हत्या’ का पाप न लगे। इसे कहते हैं न दिमाग!
गुरुग्राम एक परौनिक नामको वर्तमान सार्थक नाम देकर खट्टर जी ने उचित ही किया है जिसके लिए वे बधाई के पात्र हैं ।