जिन्दगी के दर्दो को,कागजो पर लिखता रहा
मै बेचैन था इसलिए सारी रात जगता रहा
जिन्दगी के दर्दो को,सबसे छिपाता रहा
कोई पढ़ न ले,लिख कर मिटाता रहा
मेरे दामन में खुशिया कम् थी,दर्द बेसुमार थे
खुशियों को बाँट कर,अपने दर्दो को मिटाता रहा
मै खुशियों को ढूढता रहा,गमो के बीच रहकर
वे खुशियों को छीनते रहे,मै गमो में तडफता रहा
जिनको जल्दी थी,वो बढ़ चले मंजिल की ओर
मै समंदर से राज, गहराई के सीखता रहा
बदले रंग सभी ने यहाँ,गिरगिट की तरह
रंग मेरा निखरा पर मेहँदी की तरह पिसता रहा
आर के रस्तोगी
डॉ. नाधुसूदन जी ,
बधाई के लिए धन्यवाद|जब तक सांस है मुझे लिखने की आस है |
खुशियों को बाँटकर दर्दों को मिटाना बहुत गहरी और बडी बात है.
कवि को बधाई.
सुन्दर कविता.
रस्तोगी जी — लिखते रहिए.