विविधा

‘हां मैं कहता हूं यह हिन्दू राष्ट्र है’

-अतुल तारे-

hinduराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत ने क्या आज ही कोई नए ऐतिहासिक तथ्य का प्रगटीकरण किया है? संघ अपनी स्थापना काल (1925) के पहले दिन से यह उद्घोषणा कर रहा है और वह यह कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है। संघ पर समय-समय पर आरोप लगते हैं कि संघ की कार्यपद्धति एवं विचार अत्यंत कट्टर है, पर उसने समयानुकूल हमेशा स्वयं को देश हित में बदला है। लेकिन भारत एक हिन्दू राष्ट्र है इस धारणा पर वह पहले भी कायम था आज भी है और कल भी रहने वला है। पराधीन भारत में संघ के आद्य सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार से भी यह प्रश्न किसी ने किया था कि कौन कहता है यह हिन्दूराष्ट्र है? तब डॉ. हेडगेवार ने गर्जना की कि ”हां मैं केशवराव बलिराम हेडगेवार कहता हूं कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है’। इतिहास साक्षी है कि आज से लगभग 90 साल पहले जब डॉ. हेडगेवार ने यह कहा था तब देश के कथित बुद्धिजीवियों  ने इसे हास्यास्पद कहकर महत्व नहीं दिया था और आज 90 साल बाद यही स्थापित सत्य श्री भागवत दोहरा रहे हैं, तो देश के राजनीतिक वातावरण में एक उबाल है। प्रश्न फिर उपस्थित हो सकता है कि क्या डॉ. हेडगेवार ने संघ की स्थापना के साथ क्या देश की पहचान को एक नया स्वरूप देने का प्रयास किया था? क्या भारत 1925 से पहले हिन्दू राष्ट्र नहीं था या फिर आज श्री भागवत कोई अनूठी बात कर रहे हैं? यहां फिर संघ के तीसरे पू. सरसंघचालक स्व. बाला साहेब देवरस का कथन रेखांकित करने योग्य है। वे कहते हैं कि संघ जो सोए हुए हैं. उन्हें जगाने का प्रयास कर सकता है पर जो सोने का उपक्रम कर रहे हैं, अभिनय कर रहे हैं, उनमें अपनी ऊर्जा का अपव्यय नहीं करेगा।

स्व. श्री देवरस के इस वाक्य के आलोक में जो वाकई सोए हैं उनके लिए निवेदन यह है कि भारत आज से नहीं 1925 से नहीं बल्कि अपने अस्तित्व में आने के साथ से ही एक हिन्दू राष्ट्र है और इसके ऐतिहासिक पौराणिक प्रमाण है। हम सब जानते हैं यह पृथ्वी, जल एवं थल दो तत्वों में वर्गीकृत है। प्राचीन काल से ही सात द्वीप एवं सात महासमुद्र माने जाते हैं। भारत का पौराणिक नाम जो आज भी धार्मिक ग्रंथों में उल्लेखित है, वह है जम्बूद्वीप। जम्बूद्वीप के मध्य में हिमालय पर्वत की शृंखला है, जिसकी सर्वोच्च चोटी, सागरमाथा या गौरीशंकर है, जिसे अंग्रेजों ने 1835 में एवरेस्ट नाम देकर भारत की पहचान बदलने का पहला कूटनीतिक षड्यंत्र किया था। ब्रहस्पति आगम का श्लोक देखिए-
हिमालयम् समारम्भ्य यावद इन्दु सरोवरम्
तं देव निर्मित देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते।
अर्थात हिमालय से लेकर इन्दू (हिन्द) महासागर तक देव पुरुषों द्वारा निर्मित इस भूगोल को हिन्दुस्तान कहते हैं।
अत: भारत एवं हिंदुस्तान कोई अलग-अलग शब्द नहीं है दोनों का सांस्कृतिक भाव एवं भूगोल एक ही है। इसकी पुष्टि के लिए विष्णु पुराण का यह श्लोक पढऩा उचित होगा।
उत्तरं यत समुद्रस्य हिमाद्रश्चैव दक्षिणम्
वर्ष तद भारतं नाम भारती यंत्र संतत
अर्थात हिन्द महासागर के उत्तर में एवं हिमालय के दक्षिण में जो भू-भाग है उसे भारत कहते हैं और वहां के समाज को भारतीय।
लिखने की आवश्यकता नहीं कि संघ किसी नए समाज की रचना नहीं कर रहा न ही वह भारत की पहचान को संकुचित या विकृत कर रहा है, अपितु वह भारत या हिन्दुस्तान को उसका वही गौरव एवं उसकी विस्तारित परंतु आज के दौर में विस्तृत पहचान को पुन: स्थापित करने का प्रयास कर रहा है। संघ की 90 वर्ष की यह साधना कितनी परिणाम मूलक है, इसका एक छोटा सा संकेत हाल ही में गोवा सरकार के एक मंत्री जो महाराष्ट्र गोमंतक पार्टी के सदस्य है, फ्रांसिस डिसूजा के बयान में मिलता है। वे आत्म विश्वास से कहते हैं कि हां भारत प्राचीन काल से एक हिंदू राष्ट्र है और यहां रहने वाले सभी हिंदू हैं।

हिंदू अर्थात क्या? क्या हिंदू एक पूजा पद्धति है? सर्वोच्च न्यायालय ने भी यह स्पष्ट कर दिया है कि हिंदू एक उपासना पद्धति नहीं है, यह एक जीवन शैली है। एकम् सत्य विप्रा: बहुदा वदंति अर्थात सत्य एक ही है विद्वान इसकी परिभाषा उसका परिचय अलग-अलग शब्दों में करते हैं। हिंदू वह है, जो मूर्ति की पूजा करे, हिंदू वह भी है जो मूर्ति पूजा न करे। हिंदू धर्म में आस्तिक को भी स्थान है तो नास्तिक का भी अनादर नहीं है। हिंदू वह है जो सर्वे सुखिना संतु, सर्वे संतु निरामया: की ही बात करे। यह हिंदू धर्म का वैशिष्ट्य ही है, कि जिस प्रकार सागर में सभी नदियों का जल विलीन होने के बाद भी सागर अपने गांर्भीय को बनाए रखता है ठीक उसी प्रकार हिंदू धर्म में निषेध है ही नहीं न ही अस्वीकार का कोई प्रश्न है। इसलिए यह प्रश्न ही बेमानी है कि हिंदू राष्ट्र में मुस्लिमों का क्या होगा क्रिश्चन समुदाय का क्या होगा, बौद्ध कहां जाएंगे, सिखों की चिंता कौन करेगा, जैन पंथ का क्या भविष्य है? वस्तुत: यह सवाल नहीं है न ही यह चिंताएं है। यह सवालों की शक्ल में षड्यंत्र के तीर हैं, जो भारत की हिन्दुस्तान की मूल ताकत को विखंडित कर रहे हैं। राष्ट्रघाती शक्तियाँ यह समझती है कि भारत या हिन्दुस्तान को उसकी जड़ों से काट कर ही वह अपने लक्ष्य में सफल हो सकते हैं। इसलिए वे बार-बार हिन्दू शब्द को एक योजनापूर्वक संकुचित दायरे में प्रस्तुत करते हैं। जबकि सच यह है कि हिन्दू वह है जो इस भू-भाग को अपनी जननी मानता है और उससे पुत्रवत रिश्ता रखता है। हिंदू वह है, जो भारत के सनातन सांस्कृतिक जीवन मूल्यों में अपनी उदात्त आस्था रखता है। यह जीवन मूल्य क्या है? यह जीवन मूल्य है पिता के वचन का मान रखने के लिए 14 वर्ष का वनवास सहर्ष स्वीकार करना, यह जीवन मूल्य है,

मांगने वाले को पहचान कर भी उसका भेद एवं हेतु जानकर भी अपना सर्वस्व अर्पण करना, यह जीवन मूल्य है, रक्त की अपनी अंतिम बूंद तक भी न्यौछावर कर एक पक्षी के जीवन की रक्षा करना यह जीवन मूल्य है, युद्ध में जीत कर सैनिकों द्वारा लाईं गई मुस्लिम रानियों में अपनी मां की छवि देखना यह जीवन मूल्य है- ऐश्वर्य एवं समृद्धि की याचना करते समय यही भूल कर वैराग्य एवं विश्व कल्याण की कामना करना? लिखने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए कि इन्हीं जीवन मूल्यों का नाम हिंदू दर्शन है? भारत की पहचान इसी दर्शन के कारण है। आज विश्व में जो अशांति है उसके पीछे मूल कारण सह अस्तित्व को नकार कर स्वयं को स्थापित करने का भाव है। यही कारण है शिया सुन्नी आपस में झगड़ रहे हैं, कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट आपस में और ये चारों मिलकर दुनिया में संघर्ष कर रहे हैं। हिंदू जीवन पद्धति मे भी गुलामी की दासता के चलते विकृतियाँ आई कुरीतियाँ आई यहां भी पंथ को लेकर जाति को लेकर संघर्ष हो रहे है पर इसका निदान इनकी छोटी-छोटी पहचान को और पोषित कर इन्हें तुष्ट करना नहीं है अपितु इन्हें इनके वास्तविक स्वरुप से परिचित कराना है। संघ सरसंघचालक श्री मोहन भागवत के हाल ही में दिए गए बयान कोई नए-नए नहीं है।

प.पू. स्व. डॉ. हेडगेवार से लेकर स्व. सुदर्शनजी तक सभी ने यह एक बार नहीं बार-बार कहा है कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है। श्री भागवत ने वही बात दोहराई है। पर आज संघ पर जो चौतरफा हमले हो रहे हैं, उसके पीछे वजह सिर्फ यह बयान नहीं है। देश में परिवर्तन की लहर है। राष्ट्रघाती शक्तियाँ यह जानती है कि देश में आए बदलाव का सूत्रधार कौन है। यह ताकतें आज घबराहट में है। वे इस षडयंत्र में है कि संघ पर हमले और तेज किए जाएं। यह हमले बयानों की शक्ल में तक ही सीमित नहीं है। हाल ही में संघ पर संघ के जीवन व्रती प्रचारकों पर मर्यादा की सीमा लांघ कर स्तहीन आरोप लगाने का भी सिलसिला शुरू हुआ है। यह बात अलग है कि समाज का चिंतन-अप्रभावित है और वह परिवर्तन के सूत्रधार को और अधिक विश्वास की निगाहों से देख रहा है। वह समझ रहा है कि अगर संघ में हिटलर पैदा होते तो आज दिग्विजयों का अस्तित्व ही नहीं होता। कारण यह संघ का ही दर्शन है, संघ का ही मंत्र है कि आज का विरोधी कल का स्वयंसेवक है यह मानकर हमें समाज में व्यवहार करना है।
वह जानता है कि हिटलर ने विरोधियों का नर संहार कर दिया था पर संघ ने गांधीजी की दुर्भाग्यपूर्ण हत्या के बाद आक्रोषित दिग्भ्रमित देश की जनता को अभय दिया था। वह देख रहा है कि जिन्हें वह फांसीवादी कट्टर कह रहा है वह देश में सेवा कार्यों में, आपदा के समय अग्रणी है, वह यह भी अनुभव कर रहा है कि आज के सांस्कृतिक प्रदूषण में जब परिवार, समाज टूट रहे हैं, संघ के ही वह संस्कार हैं, वह समरसता है, जो देश को एक तानेबाने में जोड़ रही है। अत: वह अब मान रहा है कि संभव है- इस जीवनकाल में ही और नहीं तो अगले जीवन में पूरा देश एक स्वर में कहेगा, हाँ भारत एक हिंदू राष्ट्र है।