योग, संयोग और सहयोग

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डॉ0 राकेश राणा
21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस भारत के लिए गौरव का दिन है। यह तारीख़ विश्व-गुरु भूमिका में भारत का प्रस्थान बिन्दू है। जहां से दुनियां को सुख, समृद्धि और निरोग जीवन के सूत्र प्रदान करने वाली योग पद्धति का औपचारिक प्रथम परिचय सत्र प्रारम्भ हुआ। भारत विश्व कल्याण के लिए संयुक्त राष्ट् संघ में लगातार इसकी मांग कर रहा था। जिसे मान्यता प्रदान करते हुए यू0 एन0 ओ0 ने 11 दिसम्बर, 2014 को प्रस्ताव संख्या 69/131 पर मानवता की भलाई में भारत की सक्रिय पहल पर मुहर लगा दी। योग दिवस के इस महान प्रस्ताव को 173 सदस्य देशों ने खुशी-खुशी अपनी स्वीकृति दी। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों ने इसका समर्थन किया। योग विश्व के लिए भारत के उन महानतम् योगदानों में से एक है जो हमने विश्व समुदाय को अमूल्य जीवन विरासत से सहेजकर सौंपे है। दुनियां ने योग के महत्व को समझा और भारत के इस विचार का स्वागत किया। स्वास्थ्य एवं खुशहाली की दिशा में योग एक सम्पूर्ण पहल है। योग के लाभ समस्त विश्व को मिलेगें। इसके व्यापक प्रचार-प्रसार से दुनिया भर में लोगों को स्वास्थ्य लाभ मिलेगा। यह छठवां अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस है। योग भारतीय समाज जीवन का अभिन्न अंग है। योग, संयोग और सहयोग हमारे जीवन के तीन मुख्य पैरोकार है। योग का आश्य युग्मन से है चीजों को जोड़ने से है। खंड में अखंड़ का विराट दर्शन भारतीय दर्शन का मूल है। संयोग भारतीय जनमानस के आस्थावादी जीवन दृष्टिकोण का आधार है और सहयोग हमारी समाज व्यवस्था का मूल है जिस पर पूरा भारतीय समाज जीवन टिका है। महर्षि अरविन्द का अति-मानस योग से निर्मित होता है और समाज का आम-मानस संयोग से संचालित होता है तथा मानवता के विकास का मानस सहयोग से सृजित होता है। इसलिए हम आध्यात्मिकता, लौकिकता और विश्व कल्याण में बराबर रत रहते हैं।
योग कोई नयी पद्धति नही है संस्कृति के प्रारम्भ से ही इसका आरम्भ माना गया है। आज 21 वीं शताब्दी के परिदृर्शय पर योग की प्रासंगिकता की पुर्नस्थापना सबसे बड़ी मानवीय आवश्यकता है। भारतीय मनीषी पाणिनी के मुख से निकला यह शब्द मानवीय सभ्यता के विकास-शास्त्र का सार है। योग सहनशीलता, समाजशीलता और सयंम के द्वारा शारीरिक, मानसिक, अध्यात्मिक, बौद्धिक और नैतिक विकास की सामूहिक उपस्थिति माना गया है। महर्षि व्यास ने कहा है कि योग समाधि है अर्थात् शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा मे एकात्मकता स्थापित कर संन्तुलित व्यक्ति की रचना करना योग है। आज आधुनिक युग में शांति, सन्तुष्टि और स्वास्थय की अति आवश्यकता है तो ऐसे में विज्ञान और भोग का पीछा करते हुए योग लक्ष्योन्मुखी दिखाई देता है। आज दुनियां ने योग की महत्ता और सफलता को स्वीकार करने के साथ ही दैनिक जीवनशैली का हिस्सा बनाया है। योग व्यक्ति, समाज और सृष्टि सबको जोड़ता है। खंड में अखंड़ की स्थापना की विधि भारतीय योग पद्धति हैं। सामाजिक व्यवस्था और संस्कृति के मुख्य तत्वों को पुनर्जीवित करना योग पद्धति में ही संभव है। व्यक्ति का संस्कार, परिष्कार, सामाजीकरण और एक सबल व सफल व्यक्तित्व का निर्माण योग विद्या के द्वारा ही हो सकता है। इसीलिए योग साधक महर्षि पंतजलि योग को सार्वभौम महावृत्ति कहते है। भारतीय दर्शन में छः प्रमुख विद्याओं में से एक योग है। योग शब्द संस्कृति के युज धातु से बना है। जिसका अर्थ है जोडना अर्थात भुज्यते असौ योग। योगेश्वर श्री कृष्ण ने योग कर्मसु कौशलम् कहकर कर्म में कुशलता और दक्षता को योग कहा है।
योग एक खास विद्या है जो मनुष्य के अन्तःकरण को इस योग्य बनाती कि वह उच्च स्फुरणों से अनुकूलन करता हुआ संसार में चारो ओर जो असीम संज्ञान व्यवहार हो रहा है उनको बिना किसी की मदद के ग्रहण करें। योग शरीर, मन व आत्मा का या आत्मा व परमात्मा का जुडना या मन वचन कर्म का जुडना है योग है यदि ऐसा नही होता तो योग नही है। भोगो मे लिप्त रहना दुनियायी भावों से जूझते रहना शरीर को बर्बाद करना है अनेक रोगों को आमंत्रित करना है। योग तो समत्व संतुलन सामंजस्म स्थापित कर मानव को उच्च शिखर पर लाकर महामानव बना देता है। योग में ध्यान ईश्वर की शक्ति पाने का और सद्गुण प्राप्त करने का माध्यम है। ईश्वर के आदेशो को हमारा मनोरथ व लक्ष्य बनाने का रास्ता है। प्रत्येक मनुष्य सुख-समृद्धि चाहता है एक सुन्दर जीवन चाहता है जीवन में सफल होना चाहता है। महानता हासिल करना चाहता है। इसके लिए चाहत, इच्छा और अच्छे विचार होना जरूरी है। इसी क्रम में अटूट लगन और अथक परिश्रम भी। जब जीने की यह कला आ जाय तब योग जिन्दगी को सुन्दर बनाने की विद्या के रुप में काम आता है। जब तक जीवन में शालीनता, उदारता, दयाभाव, करूणा, प्रेम, परोपकार, ईमानदारी, सच्चाई और अहिंसा के अंकुर नहीं फूटेगें तब तक महानता दूर की कोड़ी साबित होगी। महान बनने की आवश्यक अर्हताएं सभी महापुरूषों की कहानी में शामिल है और सभी महापुरूषों ने योग के रास्ते को ही जाने-अनजाने अपनाया है। योग ही सभी सफलताओं की जननी है। योग प्रकृति के, आत्मा के, ईश्वर के गुणों को उत्पन्न करता है। मनुष्य को मानसिक तनाव से दूर रखता है। चिन्ता और भय से छुटकारा दिलाने में मददगार सिद्ध होता है। ईर्ष्या, द्वेष, घृणा से दूर रखता है। किसी भी तरह के व्यसन और नशे से दूर रखता है। योग हमारे पूर्वजों की अद्भुत खोज है। हमें अपने तन, मन और धन को दुरुस्त रखने के लिये जीवनशैली आधारित अनेक सिद्धांत और पद्धतियां विरासत में मिली हैं योग उनमें अनमोल है जो हमारे पुरखों ने हमें दिया है। योग की अदभुतता और खूबसूरती यह है कि हमारे संपूर्ण व्यक्तित्व शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक पक्षों की देख-रेख करता बराबर उनकी मरममत करता है। मानव शरीर के भाग लयबद्ध योग आसन द्वारा प्रशिक्षित किये जाते है तो मानसिक पहलुओं को ध्यान और प्राणायाम से तथा इन सबसे ऊपर है हमारी आध्यात्मिक आवश्यकताएं जिसकी देखभाल और पूर्ति दिव्यता पर एकाग्रता के जरिए योग द्वारा होती है। योग की व्यापकता और समग्रता को समझें बिना इस विद्या सम्पूर्ण लाभ नही लिया जा सकता है। योग के विभिन्न घटकों के बीच परस्पर निर्भरता होती है।

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