
—विनय कुमार विनायक
नैतिकता को ताख पर रखकर बोलते रहो झूठ
पार्टीबद्ध होकर करते रहो लूट
घोंपते रहो सच्चाई की पीठ में छुरी
जब सौ में निन्यानबे हो गए झूठ के पोषक
फिर एक की आवाज कौन सुनेगा?
ऐसे में नक्कार खाने में
तूती की आवाज कौन सुनता?
जिसकी लाठी उसकी भैंस, यही तो रोना है
ऐसे में लट्ठधर तुम्हें होना हीं होना है!
दबाते रहो आत्मा की आवाज
करते रहो झूठी बयानबाजी
अखबार छापेगा सुर्खियों में!
सत्य, अहिंसा और देशहित की बातें
खतरनाक होगी तुम्हारी सेहत के लिए
येन केन प्रकारेण बदलते रहो विधान
चलाते रहो अपनी दुकान!
सुना है सुविधा दी गई है जनता को
फैसला सुनाने की पांच वर्षों में एकबार
(तुम्हारी कृपा से मध्यावधि में भी)
फैसला सही होगा या गलत
इसके फैसलाकार भी तुम्हीं हो!
जनादेश का हिसाब भी
तुम्हीं कर लिया करते हो
घड़ी की सुई को इधर-उधर कर
कभी औसत को घटा-बढ़ाकर
कभी संख्या बल को जोड़-तोड़कर!
तुम जानते हो गुर
कि कैसे लेने हैं मनोनुकूल फैसले
कैसे काबिज होना है सत्ता पर
कैसे झूठ बोलवाना है जनता से!
उस जनता से जिसकी
सौ में से निन्यानबे की भाषा हो गई है
तुम्हारी तरह राजनीतिक बयानबाजी!
जाति-धर्म-मजहब की अफीम चटाकर
तुमने लूटा इंसानों की इंसानियत/
भाईचारा/देशप्रेम/सत्यनिष्ठा और बना दिया
राजनीतिक शब्दावली में जनता!
हां जनता! गूंगी-बहरी-स्वार्थी जनता
धर्मनिरपेक्षता की तरह विवादित
जो जातिवाद की नशे में चुन लेती
अपनी जाति का कोई डकैत!
अपने मजहब का जुनूनी जालिम
अपने ईश्वर का फाजिल प्रतिनिधि
लूट-भ्रष्टाचार कर खम ठोकनेवाला
सरेआम साजिश करनेवाला
मातृभूमि के बंटवारे की!
पूजा के तामझाम का साफ मतलब है
विधर्मियों के प्रति घृणा का संकेत!
वाह रे खास जनता के खास देवता
तुम पूर्वी आसमान में उगते हो
गैर पूर्वी जनता के नहीं हो!
वाह रे सातवें आसमान के मालिक
तुम सिर्फ पश्चिमाभिमुख पूजाकांक्षी हो!
बड़े महत्वाकांक्षी हो!
हाय रे जनता की चाहत
जब साम्प्रदायिक दंगों में कटते इंसान
तब जनता हिसाब मांगती
कितने थे हिन्दू, कितने मुसलमान?
आज की जनता से कहीं बेहतर था
कल का हिंसक शेर
जो हिंसा के पूर्व जाति नहीं पूछता था
विचारता नहीं था धर्म!
अस्तु अहिंसावादी धर्मचक्र का
प्रतीक बन शेर इतिहास में दर्ज हो गया
और जनता बन गई सिर्फ भेंड़ या भेड़िया
जिसका इतिहास नहीं होता
इसके भी जिम्मेवार तुम्हीं हो जन प्रतिनिधि!
—विनय कुमार विनायक