![](https://www.pravakta.com/wp-content/uploads/2017/06/alone-man.jpg)
—विनय कुमार विनायक
तुम सीधे हो सच्चे हो
मगर उनकी नजर में अच्छे नहीं हो
क्योंकि तुम उनकी विरादरी के नहीं हो!
वो बातें करते हैं हमेशा
वसुधा भर लोगों के मानवाधिकार की
पर परे होते हैं पड़ोसी के दुख दर्द से!
उन्हें तुम्हारी उपस्थिति भी
तथाकथित उनकी दुनिया में पसंद नहीं!
उनकी धर्मपोथी के अनुसार
तुम उनके चिन्हित जानी दुश्मन हो!
नफरत है उन्हें तुम्हारी छोटी सी कुटिया,
मनमाफिक आस्था, पूर्वजों के रीति रिवाज से!
तुम बेदखल किए जाते रहोगे सारे जहां से
जबतक तुम उनकी तरह बुराई
वेशभूषा, हिंसा की भाषा स्वीकार नहीं लेते!
इसके लिए जरूरी नहीं
कि उनकी धर्मपोथी की अच्छाइयों को मानो!
बल्कि इसके लिए आवश्यक है
कि उसकी बुराइयों को आत्मसात कर लो
और अच्छाइयों के खिलाफ मौन साध लो!
इसके लिए जरुरी नहीं कि साधु बन जाओ
बल्कि जरुरी है दिखने लगो साधु के जैसा
मगर चेहरे से पूरी तरह मासूमियत त्याग दो!
त्याग दो वैसे सभी भाव भावनाओं को
जो विरासत में मां पिता से मिले हों
जो मानवीय प्यार रिश्तेदारों से मिले हों!
ओढ़ लो वैसी अमानुषिक पाशविकता को
जो तुम्हें कहीं से नहीं मिली हो
ना ही पशु से, ना देवता से, ना खुदा से!
क्योंकि पशुता विरासती नहीं होती
क्योंकि आदमी है पशु से इतर प्राणी
आदमी खुद खुदा व पशुता का नियंता होता!
आदमी के बुरे कार्य में खुदा की होती नहीं मर्जी
हमेशा आदमी खुदा के नाम करता है खुदगर्जी!