बेरोजगारी की मार से बेहाल युवा वर्ग

-ओपी सोनिक-  young generation

कुछ दिन पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा राष्ट्रीय युवा नीति-2014 को मंजूरी दी गई। इसका मुख्य उद्देश्य युवा वर्ग को क्षमता एवं दक्षता हासिल करने के लिए सशक्त बनाना है, ताकि युवा शक्ति को देश के विकास में लगाया जा सके। नई युवा नीति में निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने के लिए पांच परिभाषित उद्देश्यों और प्राथमिकता वाले 11 क्षेत्रों की पहचान की गई है। प्राथमिक क्षेत्रों में शिक्षा, कौशल विकास, रोजगार, उत्पादक श्रम शक्ति का सृजन, उद्यमशीलता और सामाजिक न्याय जैसे विषयों को शामिल किया गया है। उक्त नीति की स्वीकृति देने से पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रवासी भारतीयों के सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कहा था कि ‘आर्थिक नीतियों के कारण भारत बेहतर भविष्य की ओर बढ़ रहा है।’ लेकिन क्या वास्तव में भारत बेहतर भविष्य की ओर बढ़ रहा है? किसी देश का भविष्य तभी बेहतर हो सकता है जब उस देश के युवाओं को बेहतर शिक्षा और शैक्षिक योग्यता के आधार पर बेहतर रोजगार उपलब्ध हों। लेकिन क्या भारत में ऐसा हो पा रहा है! आंकड़ों के आधार पर बड़े गर्व के साथ कहा जाता है कि भारत दुनिया का ऐसा देश है, जहां युवाओं की संख्या सबसे अधिक है। लेकिन हमें यह भी याद रखना होगा कि दुनिया में सबसे अधिक बेरोजगार युवा भी हमारे देश में हैं। इससे भी अधिक चिंताजनक विषय यह है कि युवाओं में जैसे-जैसे शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है, वैसे- वैसे ही बेरोजगारी की दर भी बढ़ रही है। राष्ट्रीय नमूना सव्रेक्षण संगठन द्वारा वर्ष 2009-10 के आंकड़ों के आधार पर जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार माध्यमिक स्तर की शिक्षा प्राप्त कर चुके ग्रामीण युवकों में बेरोजगारी दर पांच फीसद और युवतियों में करीब सात फीसद रही। शहरी क्षेत्रों के युवकों में बेरोजगारी दर 5.9 फीसद और महिलाओं में 20.5 फीसद दर्ज की गई। यानी कि शहरी क्षेत्रों में युवकों की अपेक्षा युवतियों में बेरोजगारी दर करीब चार गुना अधिक है। हायर सेकेंडरी स्तर के ग्रामीण क्षेत्रों के युवकों में बेरोजगारी दर 7.8 फीसद और युवतियों में 22.2 फीसद दर्ज की गई। शहरी क्षेत्रों के ऐसे युवकों में बेरोजगारी दर 11 फीसद और युवतियों में 19 फीसद दर्ज की गयी। स्नातक या उससे आगे की पढ़ाई कर चुकी युवतियों में बेरोजगारी दर युवकों की बेरोजगारी दर से लगभग दोगुनी है। मसलन ग्रामीण क्षेत्र के स्नातक युवकों में बेरोजगारी दर 16.6 फीसद और युवतियों में 30.4 फीसद रही। शहरी क्षेत्रों के ऐसे युवकों में बेरोजगारी दर 13.8 फीसद और युवतियों में 24.7 फीसद दर्ज की गई। तकनीकी शिक्षा क्षेत्र में भी बेरोजगारी दर में बेतहाशा वृद्धि हो रही है जिससे लगता है कि देश में युवाओं के लिए चलाए जा रहे कौशल विकास के तमाम प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। डिप्लोमा एवं सर्टिफिकेट धारकों के मामले में शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी दर अधिक है। ग्रामीण क्षेत्रों में युवतियों में बेरोजगारी दर युवकों के मुकाबले दोगुनी से भी अधिक है। सव्रेक्षण रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र के डिप्लोमा या सर्टिफिकेट धारक युवकों में बेरोजगारी दर 21.4 फीसद और युवतियों में 46.6 फीसद दर्ज की गई। और शहरी क्षेत्र के युवकों में बेरोजगारी की दर 12.8 फीसद और युवतियों में 18 फीसद दर्ज की गई। देश में आर्थिक उदारीकरण की नीतियों के दौर से ही यह साबित करने के प्रपंची प्रयास हो रहे हैं कि उक्त नीतियों ने देश में रोजगार की गंगा बहाने का काम किया है। लेकिन शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए आर्थिक उदारीकरण की नीतियां बेरोजगारीकरण की नीतियां साबित हो रही हैं। हां, उक्त नीतियों ने सरकारी नौकरियों के बजाए निजी कंपनियों वाली नौकरियों में इजाफा जरूर किया है। लेकिन ऐसी नौकरियां पर अनिश्चितता की तलवार हमेशा लटकी रहती है। ग्लोबल वर्कप्लेस प्रोवाइडर ‘रीगस’ ने करीब एक सौ देशों के बीस हजार कर्मचारियों की राय के आधार पर तैयार एक अध्ययन रिपोर्ट में भी रोजगार की अनिश्चितता का जिक्र किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में करीब 25 फीसद कर्मचारियों को नौकरी जाने का डर सताता रहता है। नौकरी जाने के डर से करीब 35 फीसद कर्मचारी रात को पर्याप्त नींद नहीं ले पाते हैं। इसके अलावा करीब 70 फीसद भारतीय कर्मचारियों का मानना है कि देश की अर्थव्यवस्था में गिरावट के कारण भी रोजगार की अनिश्चितता बढ़ रही है। शिक्षित बेरोजगार युवक बेरोजगारी की कुंठा में इस कदर डूबे हैं कि वे आए दिन आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं। मसलन, खबरें आई हैं कि हरियाणा में तीन शिक्षित युवक साथियों ने बेरोजगारी से तंग आकर एक साथ आत्महत्या कर ली। इंदौर में आईटी क्षेत्र के एक बेरोजगार युवक ने नौकरी न मिलने के कारण अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली। गाजियाबाद में बीटेक की पढ़ाई कर चुके एक युवक ने बेरोजगारी के चलते आत्महत्या कर ली। बेंगलुरु में एक उच्च शिक्षित युवक को बड़ी मुश्किलों से सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी मिली थी, फिर नौकरी छूट जाने के बाद जब लंबे समय तक दूसरी नौकरी नहीं मिली तो उक्त युवक ने मौत को गले लगा लिया। लुधियाना में एक युवक ने बेरोजगारी की हताशा में नदी में कूद कर अपनी जान दे दी। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2010 में 15 से 19 वर्ष की आयु वर्ग के 284 युवाओं और 30 से 44 वर्ष की आयु के 399 लोगों ने नौकरी न मिलने जैसी समस्याओं से आजिज आकर आत्महत्या कर ली। राष्ट्रीय नमूना सव्रेक्षण संगठन के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2010 से 2012 के दौरान रोजगार चाहने वाले लोगों की संख्या एक करोड़ 40 लाख बढ़ गई। इसे गलत नीतियों का परिणाम कहें या नीति नियंताओं की बदनीयती का खामियाजा, कि हम देश के करोड़ों शिक्षित बेरोजगार युवाओं को सही मायने में मानव संसाधन के रूप में स्थापित नहीं कर पा रहे है। इसके बावजूद समावेशी विकास के तथाकथित दावों के बीच बेरोजगारी की कीचड़ पर आर्थिक विकास के आंकड़ों की कालीन बिछाने के प्रयास हो रहे हैं। बेरोजगारी का मुद्दा शिक्षित बेरोजगार युवकों से सीधे जुड़े होने के कारण, भ्रष्टाचार के मुद्दे से ज्यादा अहम है। सोई हुई लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को जान देने से नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक तरीके से किए गए जानदार आंदोलनों के जरिए जगाया जा सकता है। भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने के लिए नया नारा उछाला जा रहा है कि ‘राहुल गांधी के नौ हथियार, दूर करेंगे भ्रष्टाचार।’ बेरोजगारी मुक्त भारत बनाने के लिए यदि यह भी जोड़ दिया होता तो देश के भविष्य के लिए बेहतर होता कि ‘राहुल गांधी की जिम्मेदारी, दूर करेंगे बेरोजगारी।’

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