यूची कुई-शांग : कुषाण आक्रमण

विनय कुमार विनायक
कहावत है शेर पर सवा शेर
जिस यूची ने सई यानि शक को
बेहक किया मध्य एशिया से
उसी यूची को हिंगनू या हूण ने
खदेड़ दिया बहाँ से, मध्य एशिया से
हिंगनू; हूणों ने यूचियों को यूँ मारा
यूची का हो गया दो भाग में बँटवारा-
कनिष्ठ यूची बसा तिब्बत में
ज्येष्ठ चला पश्चिम की ओर
बैकिट्रया, पार्थिया में शासन करने
समृद्ध हिन्दभूमि में चरने
किन्तु कबिला यूची का
जो पाँच भाग में टूटा था
उसको करके संगठित एक गुट कुई-शांग;
यानि कुषाण समुदाय के नेता
कुजुल कडफिसस ने काबुल और
कश्मीर में किया सत्ता गठित।
ई.सन् 15 से 65 तक कुजुल कडफिसस ने
दक्षिण अफगानिस्तान, काबुल, कांधार,
किपिन और पार्थिया पर राज्य किया
वह वैदिक धर्मालम्बी हिन्दू बनकर जिया!
उनका बेटा बीमा या बीमण्ड कडफिसस
जो द्वितीय शैव कहलाता था
पितृक्षेत्र से विस्तृत भू पर
दस वर्षों तक (65 से 75 ई. तक)
शासन किया जमकर
शिवमय इनके मुद्रा-सिक्के-
द्विभुज, त्रिशूलधारी ,बाघम्बरी,
नन्दीसवार शिव से था
इनको अति श्रद्धा, भक्ति और प्यार
स्वर्ण सिक्के का प्रथम इसने
बीमा ने ही किया था प्रचार।
कडफिसस द्वितीय के बाद आ पड़ा
यादगार ईस्वी सन् (78)अठहत्तर
जब कनिष्क ने कश्मीर जीतकर
बसाया कनिष्कपुर नगर
और राज्यारोहण कर चलाया शक संवत
किन्तु कनिष्क था कुषाण
कश्मीर के उत्तर मध्य एशिया का
चीनी क्षेत्र काशगर, यारकंद और
खोतान का बिजेता
वह कनिष्क था बड़ा महान!
अफगानिस्तान, सिन्ध, बैकिट्रया, ही नहीं
मध्य एशिया से मगध तक
विस्तृत भू पर कनिष्क ने शासन किया
महान मौर्य के बाद इनके ही घोड़े ने
गंगा, सिन्धु और आक्सस का जल पिया!
पूर्व में बिहार, पश्चिम में खोरासान
उत्तर में खोतान, दक्षिण में नर्मदा नदी
इनके साम्राज्य में थी बसी,
पूर्व में चीन का स्वर्गिक साम्राज्य
पश्चिम में पार्थियन राज्य और
नव रोम साम्राज्य के मध्य
कनिष्क बन बैठा था
भारत का महाराजाधिराज
ऐसी थी उनके राज्य की
विशिष्ट भौगोलिक स्थिति
जिससे अति प्रभावित हुई
हमारी अर्थ व्यवस्था, राजनीति
और भारत की संस्कृति!
इनके ही नियंत्रण में था
महान सिल्क मार्ग का तीन मुख्य रास्ता,
जिससे पार्थियन प्रतिद्वंदी
नव रोम राज्य को थी व्यापारिक वास्ता!
कनिष्क का भारत केन्द्र था
समृद्ध अंतराष्ट्रीय ब्यापार का!
शहरीकृत होती प्रजा थी
उच्च आर्थिक स्तर का!
“देवपुत्र महाराजाधिराज शहंशाही’ सी
उपाधि और क्षत्रप शासन प्रणाली
कुषाणों से प्रथम चली!
बड़ी-बड़ी उपाधियाँ ग्रहण की प्रवृत्ति
भारतीय शासकों को कुषाणों से मिली!
कनिष्क कुषाण था बौद्ध-महायानी,
धर्म सहिष्णु,कला प्रेमी और उदार, ज्ञानी
जिसने सिक्कों में अंकित कराया-
पारसी, यूनानी, मिथराइक और भारतीय देवता
उन्हें था बहुधर्मी प्रजा के
दुखती रग का खूब पता!
बौद्ध धर्म जब दो ध्रु्वीकृत हो क्षुब्ध था-
कनिष्क ने बुलबाया काश्मीर के
कुण्डलवन विहार या जालंधर में
चौथी बौद्ध सभा
तब से चली रुढिवादी हीनयान से
उदारपंथी, मूर्ति पूजक महायान शाखा
और बनने लगी बुद्ध
और बोधिसत्वों की मुर्तियाँ
महात्मा बुद्ध को देव समझ
पूजने की चल पड़ीं नव रीतियाँ!
धर्म सहिष्णु समन्वयवादी
कनिष्क ने भारत के बुद्ध को
यूनानी देवता अपोलो सा शक्ल दिया!
बुद्ध को अवतारी समझने का
उसने ही हमें अक्ल दिया!
बौद्ध धर्म की भारतीय विषय वस्तु से
जुड़ी यूनानी रोम निर्माण विधि
कहते हैं ऐसे ही गांधार कला ने जन्म ली!
कनिष्क था विद्वतजन का आश्रय दाता-
चरक सा महान चिकित्सक,
पार्श्व, वसुमित्र, अश्वघोष, नागार्जुन सा
बौद्ध दर्शन के ज्ञाता
कनिष्क दरवार में उपलब्ध था!
अश्वघोष के ग्रंथ “बुद्ध चरितम्’
और “सौन्दरानन्द’ है
संस्कृत काव्य ग्रंथ के अच्छे उदाहरण!
नागार्जुन था महायान शाखा का व्याख्याकार
वसुमित्र महाविधाशशास्त्र के कृतिकार!
विदेशी आक्रांता मूल के शासकों में
कनिष्क था अतिमहान!
यूनानी, शक, पहलव के आक्रमण
एवं अशांति से दिलाकर उसने त्राण
किया भारतियों पर एहसान!
उनके काल में धर्म, कला, साहित्य,
विज्ञान और व्यापार में
हुआ व्यापक उत्कर्ष,
मौर्य और गुप्तों के मध्य किसी क्षेत्र में
कम नहीं था कुषाणों का भारतवर्ष!
कुषाण भारत के लिए बने थे
जो भारतीय जाति व्यवस्था में
घुल मिल गये!
घोड़ों में रस्सी का रकाब, पगड़ी
और सिखानी पहनने का रिवाज
मोची और चमड़े के जूते
जो देख रहे हम आज कुषाणों ने
मध्य एशिया से भारत लाया!
ये कनिष्क ही थे
जो द्वितीय अशोक कहलाया!
कनिष्क के बाद कुषाणों का
होने लगा पतन-
वासिष्क (102 से 106 ई.) के बाद
हुविष्क (106 से 138 ई.) से
शक रुद्र दामन ने छीना मालवा वतन!
फिर वासुदेव प्रथम शिव-विष्णु भक्त
किन्तु राजनीति में वह था अशक्त
ईरान में सासानिक वंश और पूर्व में
नाग भारशिव वंश के उदय से
दो सौ तीस ईस्वी के लगभग
कुषाणी राज का हो गया अस्त।

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