राजनीति

युवराज नहीं ‘युवाराज’ के स्वप्‍नदृष्टा हैं राहुल गांधी

-तनवीर जाफ़री

कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी यूं तो राजनीति में अपने पदार्पण के समय से ही अपने विरोधियों के निशाने पर हैं। ख़ासतौर से उन विरोधी राजनैतिक दलों के निशाने पर जिनके लिए राहुल गांधी की राजनैतिक सोच व शैली घातक साबित होती प्रतीत हो रही है। पिछले दिनों अपने तीन दिवसीय मध्य प्रदेश दौरे के दौरान राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व सिमी अर्थात् स्टुडेंटस इस्लामिक मूवमेंटस ऑंफ इंडिया जैसी कटटरपंथी विचारधारा रखने संगठनों के लिए कांग्रेस पार्टी के दरवाज़े बंद होने जैसी स्पष्ट बात कह डाली। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व उनके परिवार के सदस्यों ख़ासतौर पर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को राहुल गांधी के मुंह से निकला यह ‘सदवचन’ बहुत नागवार गुज़रा। राहुल गांधी ने तो कट्टरपंथी सोच को लेकर दोनों संगठनों के नाम एक ही वाक्य में लिए थे। परंतु राहुल पर निशाना साधने वालों ने तो बस एक ही राग अलापना शुरू कर दिया कि उन्होंने आर एस एस व सिमी जैसे संगठनों की आपस में तुलना कैसे कर डाली। इस विषय को लेकर राहुल पर आक्रमण करने वालों का कहना है कि सिमी एक आतंकवादी संरक्षण प्राप्त आतंकी संगठन है तथा वह देशद्रोह के मार्ग पर चलता है जबकि आर एस एस को यही लोग देशभक्त, राष्ट्रभक्त और न जाने कौन कौन से विशेषणों से नवाज़ रहे हैं।

इस विवादित विषय पर मैं तो संक्षेप में इतना ही कहना चाहूंगा कि निश्चित रूप से सिमी एक देशद्रोही संगठन है तथा उसकी विचारधारा कट्टरपंथी विचारधारा है। ऐसे संगठनों पर बेशक प्रतिबंध लगाना चाहिए तथा प्रमाणित रूप से इनसे जुड़े लोगों को देशद्रोह व आतंकवाद फैलाने के आरोप में सख्‍त सजा दी जानी चाहिए। परंतु आर एस एस की राष्ट्रभक्ति व देशभक्ति का ढोल तो केवल वही पीट सकते हैं जो या तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य हों या कट्टर हिंदुत्ववादी विचारधारा के परस्तार। एक वास्तविक देशभक्त तो दरअसल वही भारतीय नागरिक अथवा संगठन है जो देश के सभी धर्मों व संगठनों के लोगों को समान नज़र से देखता हो तथा सांप्रदायिक्ता व जातिवाद की राजनीति से उसका दूर तक का भी नाता न हो। महात्मा गांधी तथा गांधीवादी विचारधारा ही वास्तविक देशभक्त भारतीय की पहली व आंखिरी पहचान है। आज दुनिया में भारतवर्ष को अनेकता में एकता या सर्वधर्म समभाव जैसी बेशकीमती पहचान के रूप में ही जाना जाता है। यदि ऐसा न होता तो राहुल के वक्तव्य से तिलमिलाए लोग आर एस एस की शान में महात्मा गांधी ही द्वारा पढ़े गए चंद ‘क़सीदों’ का जगह-जगह उल्लेख करते नहीं दिखाई देते।

आर एस एस की राष्ट्रभक्ति के बेशक लाखों उदाहरण पेश क्यों न कर दिए जाएं परंतु महात्मा गांधी की हत्या केपश्चात सरदार वल्लभ भाई पटेल के गृह मंत्री रहते केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा इस पर प्रतिबंध क्यों लगाया गया तथा अब तक यह तथाकथित’राष्ट्रवादी संगठन’ अब तक देश में तीन बार प्रतिबंधित क्यों हो चुका है इसका इन राष्ट्रवादियों के पास कोई माकूल जवाब नहीं है। दूसरी बात यह कि गुजरात राज्‍य में गोधरा ट्रेन हादसे के बाद हुए दंगों को लेकर पूरे देश की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बदनामी हुई। देश विदेश के मीडिया ने गुजरात में हुए इस अंफसोसनाक घटनाक्रम को यह कहकर संबोधित किया कि ‘गुजरात’ आर एस एस की प्रयोगशाला है। अपने इस संबोधन पर संघ हमेशा चुप्पी साधे रहा। क्या यही संघ की राष्ट्रवादिता है? इसके बाद पिछले कुछ दिनों में जिस प्रकार देश में हुए कई बम विस्‍फोटों व धमाकों में संघ के सदस्यों तथा इसी विचारधारा से जुड़े लोगों के नाम आ रहे हैं इस विषय पर मैं तो कुछ नहीं कहना चाहूंगा परंतु इन राष्ट्रवादियों के चाल, चरित्र और चेहरों को पूरा देश बखूबी देख, सुन व पहचान रहा है। विगत लोकसभा चुनावों के परिणाम ाी इसके स्पष्ट प्रमाण हैं।

राहुल के बयान को लेकर उठा विवाद दरअसल आर एस एस द्वारा स्वयं को राष्ट्रवादी बताने व भारतीय संस्कृति का ध्वजावाहक होने का ढिंढोरा पीटने को लेकर इतना नहीं था जितना कि राहुल गांधी को राजनीति का अल्पज्ञानी,कम तजुर्बेकार तथा अबोध राजनैतिक नेता बताने का था। वास्तव में राहुल गांधी ने राजनीति करने की जो राह अख्तियार की है वह पंडित जवाहरलाल नेहरु, इंदिरा गांधी, राजीव गाधी, सोनिया गांधी आदि सभी नेताओं से अलग है। राहुल गांधी ने राजनीति शास्त्र का गहन अध्ययन किया है तथा प्रधानमंत्री निवास में पालन-पोषण होने के बावजूद वे देश की नब्‍ज यहां के बुनियादी हालात तथा जरूरतों से बंखूबी वाक़िंफ हैं। वे जानते हैं कि देश की असली तांकत युवाओं व गरीबों में है। और इस वर्ग का उत्थान ही वास्तव में देश का उत्थान है। यही वजह थी कि वे अपने मित्र ब्रिटिश विदेशमंत्री डेविड मिलीबैंड को अपने चुनाव क्षेत्र अमेठी में एक झोंपड़ीनुमा मकान के एक गरीब परिवार में ले गए तथा उस झोंपड़ी में बैठकर उन्होंने मिलीबैंड को यह बताया किहमारी वास्तविक शक्ति ही यही वर्ग है। राहुल जब कभी किसी दलित या गरीब के घर रात बितातें हैं या अपने सिर पर मिट्टी की टोकरी उठाकर मादूरों के साथ मजदूरी करने जैसा प्रदर्शन करते हैं तो ऐशपरस्ती के आदी हो चुके राजनेताओं को अपनी कुर्सी हिलती दिखाई देने लगती है।

राजनीति व सरकारी तंत्रों में भ्रष्टाचार को लेकर राहुल का रुख़ अपने पिता राजीव गांधी से भी अधिक स्पष्ट व सख्‍त है। राजनीति में अपराधीकरण को लेकर भी राहुल बहुत अधिक चिंतित हैं। यह सभी चिंताएं केवल राहुल गांधी की ही नहीं बल्कि पूरे देश के हर उस व्यक्ति की हैं जो अपनी निष्पक्ष सोच रखता है तथा देश के विकास के बारे में चिंतित रहता है। यह चिंताएं प्रत्येक राष्ट्रवादी, राष्ट्रभक्त व देशभक्त व्यक्ति की हैं व होनी चाहिएं। दरअसल राजनीति का पारंपरिक स्वरूप अत्यंत विवादित, संदेहपूर्ण तथा लगभग बदनाम सा हो चुका है। आजकल राजनीति तो धन कमाने तथा सरकारी सुविधाओं पर ऐशपरस्ती करने व अपने परिवार केसदस्यों व रिश्ते-नातेदारों के घर भरने का माध्यम बन चुका है। राहुल गांधी इस सडांध भरी बदबूदार राजनैतिक शैली से भारतीय राजनीति को उबारना चाह रहे हैं। भले ही उन्हें मीडिया युवराज की संज्ञा क्यों न दे रहा हो। भले ही मीडिया बार-बार ऐसे कयास क्यों न लगा रहा हो कि कब मनमोहन सिंह राहुल केलिए सजा-सजाया सिंहासन हमवार करेंगे। परंतु हकीकत तो यही है कि राहुल गांधी जिस प्रकार देश में घूम-घूम कर छात्रों से सीधा संवाद स्थापित कर रहे हैं तथा छात्रों को राजनीति में आने का न्यौता दे रहे हैं उससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि राहुल गांधी युवराज नहीं हैं बल्कि ‘युवाराज’ के स्वप्दृष्टा हैं।

राहुल गांधी की सादगी, युवाओं के प्रति उनका प्रेम व आकर्षण, उनकी राजनैतिक गंभीरता तथा राजनैतिक चिंतन, देश के युवाओं के समक्ष जबरदस्त आदर्श प्रस्तुत कर रहा है। उनकी कर्मठता, जुझारुपन, उनके धैर्य, संयम तथा त्याग ने देश के नौजवानों को उनकी ओर आकर्षित होने के लिए मजबूर कर दिया है। याद कीजिए संघ के पोस्टर लीडर नरेंद्र मोदी का वह बयान जबकि उन्होंने राहुल गांधी के विषय में यह फरमाया था कि इसे तो कोई भी व्यक्ति अपना ड्राईवर तक रखना पसंद नहीं करेगा। यह थी एक तथाकथित राष्ट्रवादी तथा भारतीय संस्कृति का स्वयं को पहरेदार बताने वाले नेता की शैली। और अब जरा तुलना भी कीजिए जनता द्वारा इनकी स्वीकार्यता व अस्वीकार्यता की। गत् लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने 106 चुनाव क्षेत्रों में प्रचार किया जिनमें 68 सीटों पर विजय प्राप्त हुई। इन 68 सीटों में 43 सीटें ऐसी थी जो यूपीए ने अन्य दलों से छीनी थीं। यानि राहुल गांधी के प्रचार अभियान की सफलता 63 प्रतिशत आंकी गई। उधर ‘राष्ट्रवादी रहनुमा’ नरेंद्र मोदी ने भी 122 सीटों पर अपना उड़न खटोला घुमाया। इनमें से 22 सीटें राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के हाथों से निकल गई। कुल मिलाकर राहुल गांधी को नरेंद्र मोदी की तुलना में 18 प्रतिशत अधिक बढ़त मिली। यह चुनाव परिणाम तो यही बता रहे थे कि देश की जनता विशेषकर युवा शक्ति किसी गाड़ी की तो क्या बल्कि देश तक की चाबी राहुल गांधी को सौंपने का मन बना चुकी नार आ रही है।

यहां एक बात और गौरतलब है कि गुजरात की भाजपा सरकार के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी के तो राहुल गांधी के विषय में क्या विचार हैं इसका तो उल्लेख हो चुका। परंतु मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गत् दिनों राहुल गांधी के मध्य प्रदेश के दौरे के दौरान उन्हें राज्‍य अतिथि का दर्जा दिया। अब इन दोनों भाजपा मुख्‍यमंत्रियों के राहुल के प्रति अपनाए गए रवैये में ही कितना विरोधाभास नार आता है। दो ही बातें हो सकती हैं या तो नरेंद्र मोदी राहुल के प्रति कुंठा से ग्रस्त हैं क्योंकि उन्हें राहुल एक बहुत बड़ा खतरा नार आ रहे हैं। तथा चौहान ने इसलिए राहुल को राज्‍य अतिथि का स मान दिया क्योंकि वे राहुल के बढ़ते प्रभाव को देखते व समझते हुए राज्‍य की युवा शक्ति की आलोचना का शिकार नहीं बनना चाहते थे। राहुल के द्वारा आर एस एस व सिमी का नाम एक साथ लिए जाने पर संघ प्रवक्ता द्वारा राहुल को जो सुझाव दिया गया उसमें यह भी कहा गया कि वे इटली व कोलंबिया की सहायता के अतिरिक्त भारतीय सभ्‍यता का भी अध्ययन करें। संघ के इस वाक्य में भी कितनी अधिक कुंठा, नफरत व ईर्ष्‍या झलक रही है यह भी साफ जाहिर हो रहा है।

देश में युवराज लाने की कल्‍पना करनेवाले राहुल गांधी ने इन दिनों राजनीति के पारं‍परिक स्‍वरूप पर अनेक धारदार प्रहार किए हैं। इनमें जहां उन्‍होंने सत्ता को लूट-खसो, अय्याशी, धन संग्रह तथा रिश्‍वत व भ्रष्‍टाचार का माध्‍यम न बनाने का प्रण किया है वहीं युवाओं को वे यह सलाह भी दे रहे हैं कि वे चमचागिरी या ख़ुशामद परस्‍ती कर आगे आने के बजाए स्‍वयं में ऐसी नेतृत्‍व क्षमता पैदा करे कि वे स्‍वयं आगे आ सकें। संगठन में चुनाव कराकर वे समर्पित व सक्रिय लोगों का आने का अवसर दे रहे हैं। आशा की जानी चाहिए कि राहुल गांधी के बढ़ते देश में युवाराज स्‍थापित करने की दिशा में अपनी महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाएंगे तथा हमारा देश नई सोच, नए जोश व नए हौसलों के साथ दुनिया के विकसित देशों की शृंखला में जा खड़ा होगा।