युवराज नहीं ‘युवाराज’ के स्वप्‍नदृष्टा हैं राहुल गांधी

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-तनवीर जाफ़री

कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी यूं तो राजनीति में अपने पदार्पण के समय से ही अपने विरोधियों के निशाने पर हैं। ख़ासतौर से उन विरोधी राजनैतिक दलों के निशाने पर जिनके लिए राहुल गांधी की राजनैतिक सोच व शैली घातक साबित होती प्रतीत हो रही है। पिछले दिनों अपने तीन दिवसीय मध्य प्रदेश दौरे के दौरान राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व सिमी अर्थात् स्टुडेंटस इस्लामिक मूवमेंटस ऑंफ इंडिया जैसी कटटरपंथी विचारधारा रखने संगठनों के लिए कांग्रेस पार्टी के दरवाज़े बंद होने जैसी स्पष्ट बात कह डाली। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व उनके परिवार के सदस्यों ख़ासतौर पर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को राहुल गांधी के मुंह से निकला यह ‘सदवचन’ बहुत नागवार गुज़रा। राहुल गांधी ने तो कट्टरपंथी सोच को लेकर दोनों संगठनों के नाम एक ही वाक्य में लिए थे। परंतु राहुल पर निशाना साधने वालों ने तो बस एक ही राग अलापना शुरू कर दिया कि उन्होंने आर एस एस व सिमी जैसे संगठनों की आपस में तुलना कैसे कर डाली। इस विषय को लेकर राहुल पर आक्रमण करने वालों का कहना है कि सिमी एक आतंकवादी संरक्षण प्राप्त आतंकी संगठन है तथा वह देशद्रोह के मार्ग पर चलता है जबकि आर एस एस को यही लोग देशभक्त, राष्ट्रभक्त और न जाने कौन कौन से विशेषणों से नवाज़ रहे हैं।

इस विवादित विषय पर मैं तो संक्षेप में इतना ही कहना चाहूंगा कि निश्चित रूप से सिमी एक देशद्रोही संगठन है तथा उसकी विचारधारा कट्टरपंथी विचारधारा है। ऐसे संगठनों पर बेशक प्रतिबंध लगाना चाहिए तथा प्रमाणित रूप से इनसे जुड़े लोगों को देशद्रोह व आतंकवाद फैलाने के आरोप में सख्‍त सजा दी जानी चाहिए। परंतु आर एस एस की राष्ट्रभक्ति व देशभक्ति का ढोल तो केवल वही पीट सकते हैं जो या तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य हों या कट्टर हिंदुत्ववादी विचारधारा के परस्तार। एक वास्तविक देशभक्त तो दरअसल वही भारतीय नागरिक अथवा संगठन है जो देश के सभी धर्मों व संगठनों के लोगों को समान नज़र से देखता हो तथा सांप्रदायिक्ता व जातिवाद की राजनीति से उसका दूर तक का भी नाता न हो। महात्मा गांधी तथा गांधीवादी विचारधारा ही वास्तविक देशभक्त भारतीय की पहली व आंखिरी पहचान है। आज दुनिया में भारतवर्ष को अनेकता में एकता या सर्वधर्म समभाव जैसी बेशकीमती पहचान के रूप में ही जाना जाता है। यदि ऐसा न होता तो राहुल के वक्तव्य से तिलमिलाए लोग आर एस एस की शान में महात्मा गांधी ही द्वारा पढ़े गए चंद ‘क़सीदों’ का जगह-जगह उल्लेख करते नहीं दिखाई देते।

आर एस एस की राष्ट्रभक्ति के बेशक लाखों उदाहरण पेश क्यों न कर दिए जाएं परंतु महात्मा गांधी की हत्या केपश्चात सरदार वल्लभ भाई पटेल के गृह मंत्री रहते केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा इस पर प्रतिबंध क्यों लगाया गया तथा अब तक यह तथाकथित’राष्ट्रवादी संगठन’ अब तक देश में तीन बार प्रतिबंधित क्यों हो चुका है इसका इन राष्ट्रवादियों के पास कोई माकूल जवाब नहीं है। दूसरी बात यह कि गुजरात राज्‍य में गोधरा ट्रेन हादसे के बाद हुए दंगों को लेकर पूरे देश की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बदनामी हुई। देश विदेश के मीडिया ने गुजरात में हुए इस अंफसोसनाक घटनाक्रम को यह कहकर संबोधित किया कि ‘गुजरात’ आर एस एस की प्रयोगशाला है। अपने इस संबोधन पर संघ हमेशा चुप्पी साधे रहा। क्या यही संघ की राष्ट्रवादिता है? इसके बाद पिछले कुछ दिनों में जिस प्रकार देश में हुए कई बम विस्‍फोटों व धमाकों में संघ के सदस्यों तथा इसी विचारधारा से जुड़े लोगों के नाम आ रहे हैं इस विषय पर मैं तो कुछ नहीं कहना चाहूंगा परंतु इन राष्ट्रवादियों के चाल, चरित्र और चेहरों को पूरा देश बखूबी देख, सुन व पहचान रहा है। विगत लोकसभा चुनावों के परिणाम ाी इसके स्पष्ट प्रमाण हैं।

राहुल के बयान को लेकर उठा विवाद दरअसल आर एस एस द्वारा स्वयं को राष्ट्रवादी बताने व भारतीय संस्कृति का ध्वजावाहक होने का ढिंढोरा पीटने को लेकर इतना नहीं था जितना कि राहुल गांधी को राजनीति का अल्पज्ञानी,कम तजुर्बेकार तथा अबोध राजनैतिक नेता बताने का था। वास्तव में राहुल गांधी ने राजनीति करने की जो राह अख्तियार की है वह पंडित जवाहरलाल नेहरु, इंदिरा गांधी, राजीव गाधी, सोनिया गांधी आदि सभी नेताओं से अलग है। राहुल गांधी ने राजनीति शास्त्र का गहन अध्ययन किया है तथा प्रधानमंत्री निवास में पालन-पोषण होने के बावजूद वे देश की नब्‍ज यहां के बुनियादी हालात तथा जरूरतों से बंखूबी वाक़िंफ हैं। वे जानते हैं कि देश की असली तांकत युवाओं व गरीबों में है। और इस वर्ग का उत्थान ही वास्तव में देश का उत्थान है। यही वजह थी कि वे अपने मित्र ब्रिटिश विदेशमंत्री डेविड मिलीबैंड को अपने चुनाव क्षेत्र अमेठी में एक झोंपड़ीनुमा मकान के एक गरीब परिवार में ले गए तथा उस झोंपड़ी में बैठकर उन्होंने मिलीबैंड को यह बताया किहमारी वास्तविक शक्ति ही यही वर्ग है। राहुल जब कभी किसी दलित या गरीब के घर रात बितातें हैं या अपने सिर पर मिट्टी की टोकरी उठाकर मादूरों के साथ मजदूरी करने जैसा प्रदर्शन करते हैं तो ऐशपरस्ती के आदी हो चुके राजनेताओं को अपनी कुर्सी हिलती दिखाई देने लगती है।

राजनीति व सरकारी तंत्रों में भ्रष्टाचार को लेकर राहुल का रुख़ अपने पिता राजीव गांधी से भी अधिक स्पष्ट व सख्‍त है। राजनीति में अपराधीकरण को लेकर भी राहुल बहुत अधिक चिंतित हैं। यह सभी चिंताएं केवल राहुल गांधी की ही नहीं बल्कि पूरे देश के हर उस व्यक्ति की हैं जो अपनी निष्पक्ष सोच रखता है तथा देश के विकास के बारे में चिंतित रहता है। यह चिंताएं प्रत्येक राष्ट्रवादी, राष्ट्रभक्त व देशभक्त व्यक्ति की हैं व होनी चाहिएं। दरअसल राजनीति का पारंपरिक स्वरूप अत्यंत विवादित, संदेहपूर्ण तथा लगभग बदनाम सा हो चुका है। आजकल राजनीति तो धन कमाने तथा सरकारी सुविधाओं पर ऐशपरस्ती करने व अपने परिवार केसदस्यों व रिश्ते-नातेदारों के घर भरने का माध्यम बन चुका है। राहुल गांधी इस सडांध भरी बदबूदार राजनैतिक शैली से भारतीय राजनीति को उबारना चाह रहे हैं। भले ही उन्हें मीडिया युवराज की संज्ञा क्यों न दे रहा हो। भले ही मीडिया बार-बार ऐसे कयास क्यों न लगा रहा हो कि कब मनमोहन सिंह राहुल केलिए सजा-सजाया सिंहासन हमवार करेंगे। परंतु हकीकत तो यही है कि राहुल गांधी जिस प्रकार देश में घूम-घूम कर छात्रों से सीधा संवाद स्थापित कर रहे हैं तथा छात्रों को राजनीति में आने का न्यौता दे रहे हैं उससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि राहुल गांधी युवराज नहीं हैं बल्कि ‘युवाराज’ के स्वप्दृष्टा हैं।

राहुल गांधी की सादगी, युवाओं के प्रति उनका प्रेम व आकर्षण, उनकी राजनैतिक गंभीरता तथा राजनैतिक चिंतन, देश के युवाओं के समक्ष जबरदस्त आदर्श प्रस्तुत कर रहा है। उनकी कर्मठता, जुझारुपन, उनके धैर्य, संयम तथा त्याग ने देश के नौजवानों को उनकी ओर आकर्षित होने के लिए मजबूर कर दिया है। याद कीजिए संघ के पोस्टर लीडर नरेंद्र मोदी का वह बयान जबकि उन्होंने राहुल गांधी के विषय में यह फरमाया था कि इसे तो कोई भी व्यक्ति अपना ड्राईवर तक रखना पसंद नहीं करेगा। यह थी एक तथाकथित राष्ट्रवादी तथा भारतीय संस्कृति का स्वयं को पहरेदार बताने वाले नेता की शैली। और अब जरा तुलना भी कीजिए जनता द्वारा इनकी स्वीकार्यता व अस्वीकार्यता की। गत् लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने 106 चुनाव क्षेत्रों में प्रचार किया जिनमें 68 सीटों पर विजय प्राप्त हुई। इन 68 सीटों में 43 सीटें ऐसी थी जो यूपीए ने अन्य दलों से छीनी थीं। यानि राहुल गांधी के प्रचार अभियान की सफलता 63 प्रतिशत आंकी गई। उधर ‘राष्ट्रवादी रहनुमा’ नरेंद्र मोदी ने भी 122 सीटों पर अपना उड़न खटोला घुमाया। इनमें से 22 सीटें राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के हाथों से निकल गई। कुल मिलाकर राहुल गांधी को नरेंद्र मोदी की तुलना में 18 प्रतिशत अधिक बढ़त मिली। यह चुनाव परिणाम तो यही बता रहे थे कि देश की जनता विशेषकर युवा शक्ति किसी गाड़ी की तो क्या बल्कि देश तक की चाबी राहुल गांधी को सौंपने का मन बना चुकी नार आ रही है।

यहां एक बात और गौरतलब है कि गुजरात की भाजपा सरकार के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी के तो राहुल गांधी के विषय में क्या विचार हैं इसका तो उल्लेख हो चुका। परंतु मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गत् दिनों राहुल गांधी के मध्य प्रदेश के दौरे के दौरान उन्हें राज्‍य अतिथि का दर्जा दिया। अब इन दोनों भाजपा मुख्‍यमंत्रियों के राहुल के प्रति अपनाए गए रवैये में ही कितना विरोधाभास नार आता है। दो ही बातें हो सकती हैं या तो नरेंद्र मोदी राहुल के प्रति कुंठा से ग्रस्त हैं क्योंकि उन्हें राहुल एक बहुत बड़ा खतरा नार आ रहे हैं। तथा चौहान ने इसलिए राहुल को राज्‍य अतिथि का स मान दिया क्योंकि वे राहुल के बढ़ते प्रभाव को देखते व समझते हुए राज्‍य की युवा शक्ति की आलोचना का शिकार नहीं बनना चाहते थे। राहुल के द्वारा आर एस एस व सिमी का नाम एक साथ लिए जाने पर संघ प्रवक्ता द्वारा राहुल को जो सुझाव दिया गया उसमें यह भी कहा गया कि वे इटली व कोलंबिया की सहायता के अतिरिक्त भारतीय सभ्‍यता का भी अध्ययन करें। संघ के इस वाक्य में भी कितनी अधिक कुंठा, नफरत व ईर्ष्‍या झलक रही है यह भी साफ जाहिर हो रहा है।

देश में युवराज लाने की कल्‍पना करनेवाले राहुल गांधी ने इन दिनों राजनीति के पारं‍परिक स्‍वरूप पर अनेक धारदार प्रहार किए हैं। इनमें जहां उन्‍होंने सत्ता को लूट-खसो, अय्याशी, धन संग्रह तथा रिश्‍वत व भ्रष्‍टाचार का माध्‍यम न बनाने का प्रण किया है वहीं युवाओं को वे यह सलाह भी दे रहे हैं कि वे चमचागिरी या ख़ुशामद परस्‍ती कर आगे आने के बजाए स्‍वयं में ऐसी नेतृत्‍व क्षमता पैदा करे कि वे स्‍वयं आगे आ सकें। संगठन में चुनाव कराकर वे समर्पित व सक्रिय लोगों का आने का अवसर दे रहे हैं। आशा की जानी चाहिए कि राहुल गांधी के बढ़ते देश में युवाराज स्‍थापित करने की दिशा में अपनी महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाएंगे तथा हमारा देश नई सोच, नए जोश व नए हौसलों के साथ दुनिया के विकसित देशों की शृंखला में जा खड़ा होगा।

9 COMMENTS

  1. तनवीर जी आप एक नंबर के चाटुकार और हीन भावना से ग्रसित है कि इस देश में नेहरू वंस के अतिरिक्त किसी के पास काबिलियत नहीं है.ऐसी सोच रखने वाला या तो बेवकूफ कहा जायेगा या कही पैर निगाहे कही पैर निशाना लगाने वाला.इतनी गालिया खा कर कोई प्रतिक्रिया न देना तो यही साबित करता है कि आप मुर्ख नहीं घुटे हुए है,कुछ आपकी छिपी मनोकामना है.नहीं तो दिल्ली विश्वविद्यालय के चुनाव में बुरी तरह कांग्रेस के पराजित होने पैर भी कुछ प्रकाश डालते कि वे सब आर.एस.एस.से संचालित थे.हलाकि दर्जनों कॉलेज के छात्र विश्वविद्यालय ने वोते डालते है.यही वाकया जयपुर फिर हिमांचल में .पंचायत चुनाव में भी राजस्थान में बुरी गत हुई और गुजरात में सफाया हो गया.वही सफाया उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव में भी हुआ.किस चंदू खाने में सोते रहते हो तनवीर महोदय.क्योकि बिहार का नतीजा जानकर ही चंडूखाने जाइएगा नहीं तो एकाध प्रदेश और राहुल बाबा के चंगुल से छुट जायेगा,अभी तो चुनाव भी दूर है और राहुल के पिता जी ३/४ का बहुमत भी अगले चुनाव में गवा दिए थे जिनके पीछे खली बोफोर्स का भूत था सोनिया मनमोहन की सरकार के पीछे तो भ्रष्टाचार की लाइन लगी है एक का किसी तरह कॉमन वेल्थ गेम की लूट अन्तेर राष्ट्रिय स्टर चाई रही, आदर्श सोसाइटी में तो कारगिल की विधवाओ के लिए बने फ्लैट को राहुल ब्रिगाड़े के ही अशोक चौहाण ने शर्मनाक रूप से अपने और अपने लोगो में बात लिया.अब रजा के २जी स्पेक्त्रुम घोटाले में कितना हिस्सा सोनिया कांग्रेस के हिस्से आया है इसका पता तो शायद ही चले लेकिन जनता जानती है कि मनमोहन सिंह जैसा इमानदार आदमी अगेर ख़ामोशी से लूट होते देखता रहा तो नश्चित सोनिया जी या राहुल जी का vyktigat और bada swarth था jo hamare itane इमानदार pradhan mantri को भी aaj kathghare में inhi ma–bete के chjalte khada hona pad रहा है.

  2. तनवीर जी अबतक की ज्यादातर टिप्पड़ियों से भी कठोर शब्दाबली प्रयोग करने का मन करता है क्योंकि आपने चाटुकारिता की पराकाष्ठा को छू लिया है

  3. तनवीर जाफरी का रास्ता ….सही रास्ता ….सही आलेख …बिना लग लपेट के बिना स्वार्थ के जब कुछ लिखा जाता है तो सचाई सर चड़कर बोलती है ,हालांकि मैं राहुल का प्रसंशक कभी नहीं रहा ,क्योंकि जो भी सत्ता पक्ष के साथ है वो ज्यादा नेमत लेकर ज्यादा अनुकूल अवसर पाकर यदि देश समाज के लिए कुछ करता है तो कोई nawaai नहीं करता ,यह तो uski naisargik duty है .
    तनवीर ji का आलेख un aalekhon se तो achchha hi है जो keval bhadaas nikalna hi jaante hain .unke paas vikalp कुछ नहीं hota

  4. Rahulji ki aalochanaa ya prasansha dono ek hi sikke do pahalu hain,kyonki dono se hi unki T.R.P.badhati hai.Aise main Tanvir ji ke vichaaron ko ekdam se varkhaasta bhi nahi kar saktaa.Unhone Rajiv aur Rahul ki bhi tulanaa karne ki koshis hai.mere jaisa aadami Rajiv ke kisi bhi achchhe kaam ko jab Shahbano ke kesh aur samvidhaan sanshodhan ke saath milaakar dekhta hai to unke dwaaraa naaryon ke prati kiyaa vyavahaar sab ko peechhe chhod detaa hai.aise bhi Rajivne bahut anya galtiyan bhi ki thi ,par uski ek galbti hi kaaphi hai uski hajaar achhaa iyon ko peechhe dakelane ke liye.
    Rahul se bhi main bahut aashaa nahi rakkhe huye hoon.Uski kathani aur karanj mein kitanaa antar hai,vah Bihar election ke liye candidates ke chayan mein saamane aa gayaa hai.
    Mera to yahi maananaa hai ki ve Rahul ho ya koi anya, jab tak compromise aur vote bank ki raajniti chalati rahegi,tabtak sabkuchh aisa hi rahegaa ya isse bhi booraa hogaa.

  5. बडबोले राहुल बाबा का थिंक टैंक उन्हें जो कहता है वो उसे वह बड़े आत्मविश्वास से बोलते हैं, कभी भ्रष्टाचार, कभी वंशवाद, कभी सीबीआई तो कभी राजनीति में युवाओं के प्रवेश पर लेकिन वो समाधान का हिस्सा कभी नहीं बनते. अभी तक देश के लिए उनका योगदान क्या है सिर्फ यह कि वह देश की कई समस्यायों के जनक नेहरु के वंशज हैं.

    डा. हेडगेवार जी ने उन कारणों और कारको पर गहन चिंतन किया था जिन्होंने देश को बार बार गुलाम बनाया और उसके बाद संघ की स्थापना एक सशक्त संगठन के रूप में की थी. आज भी उनके विचार, उनके आदर्श और उनके द्वारा बताये गए रास्ते पर चलने वाले स्वयंसेवकों की संख्या उनके महत्त्व का प्रमाण है. राहुल की पार्टी की बात करे तो यही लगता है की गांधी जी का नाम तो काँग्रेस ने अपना लिया लेकिन उनकी विचारधारा से दूरी बना ली.

    संघ को अपने सामाजिक कार्यों, देशभक्ति आदि का सबूत पेश करने की जरूरत नहीं. हिन्दू संस्कृति के प्राचीन ग्रंथों जैसे वेद, पुराण, उपनिषद, गीता, मानस आदि में विभिन्न मनीषीयों द्वारा समाज हित में कही बातें संघ के कार्यों का आधार हैं. संघ पर राहुल की टिप्पणी वस्तुतः इन ग्रंथो पर सीधा प्रहार है क्योंकि संघ की विचारधारा का आधार यही ग्रन्थ हैं. नगरों, कस्बों एवं गावों के खुले स्थानों में लगने वाली दैनिक शाखाएं संघ का प्राण है और ऐसी किसी भी शाखा में जाकर संघ को जाना जा सकता है. संघ पर टिप्पणी करने से पहले राहुल ऐसी किसी शाखा में गए होंगे क्या?

    संघ पर राहुल की टिप्पणी यह भी सिद्ध करती है की भारत के बारे में उनका व उनके सलाहकारों का ज्ञान शून्य है जो राहुल के खुद के भविष्य के लिए एक खतरनाक संकेत भी है. यह भी हो सकता है संघ पर राहुल के द्वारा की गयी टिप्पणी अयोध्या पर आये फैसले से उपजी हताशा हो ताकि काँग्रेस का बचा खुचा मुस्लिम वोट बैंक इस टिप्पणी पर खुश हो जाये, पहले भी राहुल इस तरह का बयान दे चुके हैं कि अगर गांधी परिवार का कोई व्यक्ति सत्ता में होता तो ६ दिसंबर की घटना नहीं घटित होती. लेकिन इसबार मुस्लिम धर्मगुरुओं और नेताओं ने उनकी आशा पर पानी फेरने का ही काम किया है जिससे उनकी राजनीतिक लाभ लेने की इच्छा पुरी नहीं हो सकी.

    काँग्रेस के युवराज को मीडिया ने मुद्दे चुनने की आज़ादी दे रही है. क्या आपने कभी राहुल को किसी कश्मीरी शरणार्थी कैम्प में देखा, कभी राहुल उनका दुःख दर्द सुनने गए, राहुल गुजरात में हुए दंगो की बात करते हैं लेकिन दिल्ली में १९८४ में हुए सिख दंगो की बात नहीं करते. राष्ट्रमंडल खेलों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर सभी बोले लेकिन राहुल क्या बोले कुछ नहीं पता चला. पूर्वोत्तर की समस्या भी राहुल को कभी आकर्षित नहीं कर सकी. वो नक्सलवादियों व अलगाववादियों से काँग्रेस का मंच साझा कर सकते हैं लेकिन हिंदुत्व की विचारधारा वाले व्यक्ति का काँग्रेस में स्थान नहीं, क्या यह लोकतंत्र का काला अध्याय नहीं कि देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी में राजशाही चल रही है.

    राहुल कहते हैं की राजनीति में युवाओं का स्वागत है लेकिन युवाओं के नाम पर राहुल काँग्रेसी चाटुकार नेताओं के बेटे-बेटियों और गुंडे मवालियों को जोड़ रहे हैं प्रतिभाशाली युवाओं को वह पहले ही बता चुके हैं की राजनीति में प्रवेश के लिए मजबूत आधार जरूरी है जो काँग्रेस में सिर्फ वंशवाद से आती है बाहर से नहीं.

    संघ की सशक्त विचारधारा सत्तालोलुपो को हमेशा डराती रही है और राहुल भी उसका अपवाद नहीं बन सके जैसे जैसे वह सत्ता के करीब आते जा रहें है उनका डर बढ़ता जा रहा है, संघ के सामाजिक कार्य राहुल के लिए चिंता का विषय हैं, पहले यह विभाग चाटुकार दिग्यविजय सिंह के पास था लेकिन लगता है राहुल ने कमान अपने हाथ में ले ली है. इन सबके विरोध के वावजूद संघ अपने उद्देश्यों की तरफ लगातार बढ़ता जा रहा है और उसकी प्रेरणा से भारतीय राजनीति में सकारात्मक परिवर्तन भी हुए हैं और जनता ने खुद आगे आकर आन्दोलनों का नेतृत्व किया है, जम्मू में हुआ आन्दोलन इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है.

    जब राहुल ने संघ की विचारधारा पर सवाल किया तो क्या मीडिया का यह दायित्व नहीं बनता था की वह संघ की किसी शाखा में जाकर दूध का दूध और पानी का पानी करे, संघ, उसके आनुषांगिक संगठनो या उसकी विचारधारा की प्रेरणा से किये जा रहे अच्छे-बुरे कार्यो को कितने चैनलों ने दिखाया, राहुल की छींक को भी हेड लाइन बनाने वाला मीडिया इस विषय पर प्रतिक्रियाओं से आगे क्यों नहीं बढ़ा, यह विचारणीय बात है.

  6. राहुल गांधी के पक्ष में केंद्र में उनकी सत्ताधीश सरकार है । वह उस दल से जुड़े हैं, या कि यह कहें की वह उस दल के ‘लगभग’ मुखिया समान हैं जिस दल के पास राष्ट्रपिता मोहनदास गांधी – ‘ बापू’ – की विरासत है तथा जिस दल ने इस देश को अधिकतर प्रधानमंत्री, राज्य सरकारें एवं केंद्र सरकारें दी हैं । इस देश में हर बड़ी – बड़ी चीज़ उनके द्वारा या उनकी सरकारों के द्वारा नियंत्रित की जाती है ।

    निश्चय ही देश को उनका गुणगान करना चाहिए, यह वह स्वयं एवं उनके समर्थक चाहते हैं – आखिर वह एवं उनका परिवार हमारे ऊपर इतने दशकों से शासन करता रहा है।

    इन सबके बावजूद विरोध की थोड़ी सी आवाज़ उठती है तो प्रश्न उठता है कि बात क्या है ?

    नज़र उठाने पर दिखता है कि हमारे देश में 42% (2005 – विश्व बैंक) लोग विश्व स्तरीय मापदंडों के अनुसार गरीबी की रेखा के नीचे हैं (रु 21.6 प्रति दिन – यानि कि रु 22 प्रति दिन से कम)।

    हमारी आबादी करीब 120 करोड़ है । इसके अनुसार करीब 50 करोड़ लोग गरीबी की रेखा के नीच हैं । यह प्रदर्शन कैसा माना जाये ? इसके लिए कौन दोषी है ? स्वतंत्रता के समय हमारी आबादी करीब 33-35 करोड़ थी । तो समस्या बढ़ी कि घटी ? और जिम्मेदार कौन ?

    राहुल गांधी को गरीबों के घर जाना क्यों पड़ता है ? क्योंकि गरीबी है । उससे क्या होगा ? गरीब को लगेगा कि समृद्धि आए न आए – महाराजा तो आए , धन्य भाग्य हमारे । यही लग सकता है उन बेचारों को !

    लेकिन राहुल गांधी तो अब इस बात का भी श्रेय लेते दिख रहे हैं कि देखो मेरे देश में अभी भी कितने सारे गरीब हैं और वह उनके घर जा कर उन्हें (गरीबों को ) सम्मानित कर रहे हैं ! ब्रिटिश विदेशमंत्री डेविड मिलीबैंड को क्या लगा होगा ? राहुल गांधी मुझे क्या दिखाना चाहते है ? अपनी सफलता कि इस देश में अभी भी गरीबी है !

    राहुल गांधी से किसी का क्या झगड़ा – वह तो राजा हैं , वह लोगों के बीच जाकर मिट्टी उठाते हैं तो अगले दिन से वह मिट्टी गायब नहीं हो जाती – अगले दिन एक और मजदूर फिर मिट्टी उठाता है और राहुल गांधी का सत्ता की ओर एक और सफल दिन पूरा होता है ।

  7. पहली बात तो यह कि तनवीर के लेख के बाद यह साबित हो गया कि राहुल या उसके बयान लेखक का तीर निशाने पे लगा है. राष्ट्रवादी संगठनों को गाली बकने के बाद जिस तरह का टीआरपी राहुल के पुरोखों द्वारा अभी तक बटोरा गया है, राहुल अपनी उस पूंजी से अलग कैसे हो सकता था? लेकिन अयोध्या फैसले के बाद के सद्भाव ने और खास कर मुलायम को मुसलामानों द्वारा पडी दुत्कार ने यह उम्मीद तो जताई ही है कि शायद ‘तनवीर’ जैसे सत्ता सेवकों के अलावा आम मुसलमान तो अब इन तत्वों के झांसे में नहीं आयेंगे. सच्चर आयोग के निष्कर्ष के बाद तो अब मुसलामानों को यह ज़रूर समझ में आ गया होगा कि साठ वर्षों तक राज करने वाली कांग्रेस ने किस तरह की जलालत में उनको रखा है. खैर.
    समन्वय ने बिलकुल सही और सटीक जबाब दिया है. तनवीर साहब को यह भी समझाना चाहिए कि अगर एक बार कभी प्रतिबन्ध लगा देने पर ही कोई संगठन दागी हो जाता हो तो इंदिरा गांधी ने तो समूचे लोकतंत्र पर ही प्रतिबन्ध लगा दिया था. लेकिन आज हम अपने लोकतांत्रिक प्रणाली पर गर्व का अनुभव करते हैं. आपातकाल से लोकतंत्र नहीं तानाशाही ही कलंकित हुआ था न? इंडिया नहीं बल्कि इंदिरा कलंकित हुई थी न? संघ पर अल्प समय के लिए लगाए गए प्रतिबन्ध को भी उसी नज़रिए से देखा जाना चाहिए. खास कर जिन बहानों से वह प्रतिबन्ध लगाया गया था, न्यायलय ने उस पर दूध का दूध और पानी का पानी कर ही दिया था. आइये चाटुकारों की भर्त्सना करें.

  8. माननीय लेखक ने कहा है कि संघ को तीन बार प्रतिबंधित किया जा चुका है । लेखक शायद भूल गये हैं संघ पर सरकार ने ही प्रतिबंध हटाय़ा है । सरकार को प्रतिबंध हटाने पर क्यों मजबूर होना पडा इसके बारे में लेखक के पास कोई माकूल जवाब नहीं है। लेखक इस विषय पर भी लिखते तो शायद अच्छा होता और उनकी विश्वसनीयता बढती अन्यथा स्पष्ट हो रहा है कि वह राजनीतिक पूर्वाग्रह के कारण ऐसा लिख रहे हैं ।
    जब सत्ता का प्रयोग विपरीत विचारधाराओं को कुचलने के लिए किया जाता है तो वह निश्चित रुप से निंदनीय है । कांग्रेस अब तक यही करती आ रही है और यही कारण है कि राहुल गांधी भी इसी तरह का बकवास कर रहे हैं ।

    लेखक महोदय ने कहा है कि राहुल एक गंभीर राजनेता हैं । राहुल अगर वाकई में गंभीर राजनेता हैं तो कश्मीर में जो घट रहा है उस पर चुप्पी क्यों बरत रहे हैं । एक मुख्यमंत्री कह रहा है कि जम्मू कश्मीर का भारत में विलय नहीं हुआ है । अगर वह वाकई में गंभीर हैं तो उस सरकार को समर्थन क्यों प्रदान कर रहे हैं । वैसे कश्मीर की समस्या भी उन्हींके खानदान की ऊपज है । इसलिए शायद वह इसे इसी तरह रखना चाहते हैं ।

    राहुल गांधी के किसी दलित के घर भोजन कर लेने जैसी बातों को लेखक महोदय ने काफी जोरशोर से उछाला है । इसके बारे में में बंगाल की अग्निकन्या ममता बनर्जी ने सही टिप्पणी की थी । लेखक ने शायद इसे नहीं पढा है । अन्यथा इस तरह की टिप्पणी न करते ।
    उन्होंने राहुल का नाम लिये बिना कहा कि फोटो खिंचवा कर मीडिया में छपवाने के लिए वह हवाई चप्पल नहीं पहनती हैं । वह इसलिए हवाई चप्पल पहनती हैं क्योंकि उन्हें वह पसंद है और गत तीस सालों से वह वही पहन रही हैं । राहुल गांधी की तरह नहीं कि थोडी देर के लिए हवाई चप्पल पहन लिया और फोटो खिंचवा लिया । मीडिया में छप गया । इसके बाद कुछ लोग उसी को लेकर हल्ला मचाने लगे कि देखो राहुल ने हवाई चप्पल पहनी । फोटो खिंचवाने के बाद फिर हजारों रुपये की जुतें पहन लिये । य़ह पाखंड है । पांखड करने वाला व्यक्ति गंभीर नहीं हो सकता ।

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