-पीयूष पंत
मना लो तुम आज़ादी, फ़हरा लो तिरंगा
कौन जाने कल, अब क्या होगा,
जिस तरह हमारी अभिव्यक्ति पर
पहरा लगाया जा रहा है,
देश की गरिमा और अस्मिता को
विश्व बैंक के हाथों
नीलाम किया जा रहा है,
‘विकास’ के नाम पर ग़रीबों, मज़दूरों
और किसानों का आशियाना
उजाड़ा जा रहा है,
और जाति-धर्म के नाम पर क़ौम को
आपस में लड़ाया जा रहा है,
उठो कि अब थाम लो हाथ में मशाल तुम!
बचा लो, बचा लो तिरंगे की ‘आन’ तुम!!
पियूष जी, में जनवादी हूँ पर कोमुनिस्ट नहीं, लाल सालम अच्छा लगता है – पर नमस्कार में अपनत्व पाता हूँ.
“विकास’ के नाम पर ग़रीबों, मज़दूरों
और किसानों का आशियाना
उजाड़ा जा रहा है,”
इन तीन पंक्तियों में अआपने हिन्दुस्तों का दर्द उकेर दिया.
दीपक जी आपने सही कहा नमस्कार में अपनत्व लगता है, सहोदर वाला भाव पैदा होता है लेकिन लाल सलाम में साथी, सामुदायिकता और सह निर्माण का भाव पैदा होता है सच कहैं तो वीर रस की अनुभूति होती है कुछ उसी तरह जैसे जैहिंद कहने में . कह कर तो देखिये.
नमस्कार.
पीयूष पन्त
क्रांतिकारी जनवादी कविता के लिए बधाई .आप लिखा करें .मेहनतकश जनता
को आपस में बांटने की कोशिशें नाकामयाब करें .प्रजातंत्र -समाजवाद -धर्मनिरपेक्षता की शिद्दत से रक्षा करें .ऐसी अपेक्षाओं के साथ क्रांतीकारी अभिनन्दन .
तिवारी जी,
शुक्रिया उत्साहवर्धन के लिए. हम आपकी अपेक्षाओं की पूर्ति करते रहेंगे. जनता के सरोकारों को मुखरित करते रहेंगे और जनता को जागरूक बनाने का प्रयास करते रहेंगे.
लाल सलाम.
पीयूष पन्त