प्रदीप चन्द्र पाण्डेय
पं. भीमसेन जोशी मां सरस्वती के ऐसे साधक थे जिनके गायन से मन और आत्मा दोनों पवित्र हो जाता था। गला फोड़ संगीत के दौर से उन्होंने कभी समझौता नहीं किया और वे संगीत के माध्यम से समूची दुनियां में भारत का प्रतिनिधित्व करते थे। उनका निधन भारतीय संगीत क्षेत्र के भीष्म पितामह के असमय चले जाने जैसा है। कहते हैं सगीत में ईश्वर का वास है। भगवान शिव, मां सरस्वती सहित अनेक देवी देवता संगीत के उपासक है। भीमसेन जोशी के गायन से समय जैसे थम सा जाता था। वे पूर्णतया अलौकिक कलाकार थे और सच्चे अर्थो में मां सरस्वती के वरद पुत्र। नियति के आगे सभी बेबश है। समूचा देश ही नही वरन पूरी दुनियां भीमसेन जोशी के निधन से स्तब्ध है। ऐसे महान लोग बार-बार जन्म नहीं लेते। विन्रमता और सादगी पंडित जी की पूंजी थी। दिखावे से वे कोसो दूर थे। यही सहजता उनके गायन में झलकती थी। ‘कैराना’ घराने से सम्बद्ध भीमसेन जोशी ने 89 वर्ष की अवस्था में देह त्यागा। चार फरवरी 1922 को कर्नाटक के धारवाड़ जिले के गडग में जन्मे जोशी को बचपन से ही संगीत से लगाव था। वह संगीत सीखने के उद्देश्य से 11 साल की उम्र में गुरू की तलाश के लिए घर से चले गए। जब वह घर पर थे तो खेलने की उम्र में वह अपने दादा का तानपुरा बजाने लगे थे। संगीत के प्रति उनकी दीवानगी का आलम यह था कि गली से गुजरती भजन मंडली या समीप की मस्जिद से आती ‘अजान’ की आवाज सुनकर ही वह घर से बाहर दौड़ पड़ते थे।
शरीर नश्वर है और इसे एक न एक दिन छोड़कर जाना ही होता है किन्तु भीमसेन जोशी जैसे लोगों का शरीर नष्ट होता है और उनके सतकर्म सदियों तक भारतीय संगीत की ज्ञान गंगा को पवित्र करते हुये मार्ग दर्शन करते रहेंगे। उनका आकस्मिक निधन समूचे शास्त्रीय जगत के लिये गहरा आघात है। सरकार ने उन्हें भारत रत्न से नवाजा था, सच्चे अर्थो में वे इसके हकदार थे।
पंडित भीमसेन जोशी शायद शास्त्रीय संगीत के लिये ही जन्मे थे। संगीत का यह चितेरा अब भले ही भौतिक रूप में सामने न आये किन्तु उनके संगीत का समुद्र युगों-युगों तक मार्गदर्शक बना रहेगा। वे संगीत के अनन्य साधक थे। व्यक्तित्व का समग्र मूल्याकन देह छोड़ देने के बाद ही संभव है। आज जिस प्रकार से प्रधानमंत्री से लेकर देश के विभिन्न क्षेत्रों के लोग पंडित जी के अवसान से विचलित हैं उससे समझा जा सकता है कि देश ने कितना महत्वपूर्ण रत्न खो दिया है। मां सरस्वती के अमर साधक भीमशेन जोशी को इस रूप में श्रद्धांजलि कि कठिन समय में भी उन्होने नयी पीढी का जो विरवा रोपा है वे पंडित जी के संगीत सागर का स्मरण कराते रहेंगे। संगीत के आकाश पर उनका नाम सदैव स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा। संगीत के साधक का स्वत: ब्रम्ह सम्बन्ध हो जाता है। ऐसे महान गायन परम्परा के अगुआ को विनम्र श्रद्धांजलि।
एक उम्दा कलाकार नहीं रहे जानकर दुःख हुआ भीमसेन जोशी जी का नाम संगीत की दुनिया में अमर रहेगा ””””
आदरणीय पंडित जी को शत शत नमन| उनकी कमी हमें हमेशा खलेगी…किन्तु उनके स्वर उनका स्मरण कराते रहेंगे…
मेरी किशोरावस्था के प्रारम्भिक दिनों में आकाशवाणी से प्रसारित पंडित भीमसेन जोशी जी का संगीत मानो एक यज्ञ सामग्री से उठते और वातावरण में चहुँ ओर सुगंध और पवित्रता का आभास फैलाते धूएँ जैसा लगता था| उन्हें सुने एक युग बीत गया है| इस पर भी मेरे जीवन बिंदुरेख में उतार और चड़ाव वक्र रेखा पर पंडित जी का संगीत सदा चड़ाव पर ही रहा है| अब जब वो अनमोल हीरा हमारे बीच नहीं रहा तो अकस्मात् स्वप्न से उठते मुझे ध्यान आता है कि शाश्त्रीय संगीत का क्या हुआ| भारतीय शाश्त्रीय संगीत हमारी संस्कृति का अटूट अंग है और इसका निरंतर प्रचलन ही पंडित जी को हम सब की श्रदांजलि है|
ॐ,एक युग का अंत हो गया ,भीमसेन जोशी संगीत के पुरोधा थे ,उनकी आवाज़ में साक्षात् सरस्वती विराजती थी ,हम परम पिता परमेश्वर से प्राथना करते है की दिवंगत आत्मा को चिरशांति प्रदान करे