अम्माँ

बच्चे ज्यों ज्यों हुये सयाने,

चीर पुराने अम्माँ के ।

 

खेत हुये बेटों के बस

कुछ पानी दाने अम्माँ के ।

 

सबसे सुंदर कमरे में माँ

बहू बनी दर्पण तकतीँ

बङी बहू के आते छिन गये

ठौर ठिकाने अम्माँ के ।

 

पूछ पूछ कर अम्माँ से

बाबूजी ईँटें चिनवाते ।

आँगन में दीवार उठी तो

लुटे खज़ाने अम्माँ के

 

पोता पोती होने पर

नाची थी लड्डू बँटवाकर

बच्चों को क्यों फुसलाती

हक़ बेगाने अम्माँ के

 

हुलस सिखातीं थी पकवान

बनाना बेटी बहुओं को ।

दीवाली होली पर गिन गिन

चार मखाने अम्माँ के ।

 

तुलसी मंदिर द्वार लीपते

अम्माँ बच्चे पीठ रखेँ ।

काम बहुत है क्या क्या देखेँ

पुत्र बहाने अम्माँ के ।

 

नई फिल्में जब लगती अम्माँ

हाँक मुहल्ला ले जातीं

बुढ़ियाँ है रंगीन देखती

टी वी ताने अम्माँ के ।

 

बच्चों को सर्दी लगते माँ रात

को जागीँ व्रत रख्खे ।

था दवाई के बिल पर झगङा

नैन विराने अम्माँ के

 

सबके साथ ठसक कर

 

बैठीं खातीं थीं बतियातीं थी

सुधा हिलक कर रोयी थाल

कोठरिया खाने अम्माँ के ।

 

अम्माँ के मरते

ही कमरा पक्का होकर फर्श पङा

सजधज तेरहवीँ की गंगा

हाङ सिराने
के

सुधा राजे

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here