-विपिन किशोर सिन्हा-
केजरीवाल ने जब अपनी ही पार्टी के संस्थापक सदस्यों, योगेन्द्र यादव और प्रशान्त भूषण को पार्टी से निष्कासित किया, तो लोगों ने उन्हें डिक्टेटर कहा। जब केजरीवाल ने अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाई, तो लोगों ने उन्हें रिवोल्युशनरी कहा। जब केजरीवाल ४९ दिनों तक सरकार चलाकर भाग खड़े हुए, तो लोगों ने उन्हें भगोड़ा कहा। जब उन्होंने वाराणसी संसदीय क्षेत्र से नरेन्द्र मोदी को ललकारा तो लोगों ने उन्हें फाइटर कहा। लेकिन वास्तव में उपरोक्त विशेषण में से कोई उनपर फिट नहीं बैठता है। सत्य यह है कि वे एक जन्मजात Anarchist हैं। उन्हें लड़ने के लिए हमेशा एक Target चाहिए। Good governance से उनका कोई लेना-देना नहीं।
दिल्ली में मुख्यमंत्री और उप राज्यपाल के बीच चल रही जंग के मूल में वर्तमान मुख्य सचिव शकुन्तला गैमलिन की अस्थाई नियुक्ति का मामला है। शकुन्तला दिल्ली की वरिष्ठतम आई.ए.एस. अधिकारी हैं और उनपर भ्रष्टाचार या अनियमितता की कोई जांच भी नहीं चल रही है; पूर्व में भी कोई जांच नहीं चली है। ऐसे में उनकी वरिष्ठता को नज़रअन्दाज़ करते हुए एक कनिष्ठ का नाम जिसपर राष्ट्रमंडल खेल घोटाले का आरोप है, मुख्य सचिव के लिए Recommend करना कही से भी उचित नहीं था। उप राज्यपाल ने शकुन्तला के साथ न्याय किया और उन्हें कार्यवाहक मुख्य सचिव नियुक्त कर दिया। सरकारी नियमों के अनुसार फ़ाईल पर अनुमोदन सक्षम अधिकारी देता है लेकिन औपचारिक आदेश प्रधान सचिव या नियुक्ति सचिव द्वारा जारी किया जाता है। उप राज्यपाल के अनुमोदन के पश्चात शकुन्तला की तदर्थ नियुक्ति का आदेश जारी करना Principal Secretary की वाध्यता थी। मज़ुमदार ने वह आदेश जारी कर दिया। नाराज़ केजरीवाल ने मज़ुमदार को Principal Secretary के पद से हटा दिया। उप राज्यपाल ने मुख्यमंत्री का आदेश निरस्त करते हुए मज़ुमदार को पुनः Principal Secretary नियुक्त कर दिया। केजरीवाल ने तमाम शिष्टाचार को तिलांजलि देते हुए मज़ुमदार के कमरे पर ताला जड़वा दिया।
लगभग एक साल पहले गुजरात के प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा नरेन्द्र मोदी को दी गई विदाई का दृश्य मेरी आंखों के सामने घूम जाता है। विदाई समारोह में शामिल अधिकांश अधिकारियों की आंखें गीली थीं। कुछ तो फफक-फफक कर रो रहे थे। मोदी ने उन्हीं आई.ए.एस. अधिकारियों के साथ काम किया और गुजरात को विकास के शिखर पर पहुंचाया। Good governance का यह एक अनुपम उदाहरण है। केजरीवाल ने दिल्ली के उप राज्यपाल और केन्द्र सरकार के खिलाफ़ जंग छेड़ने के बाद अब आई.ए.एस. अधिकारियों के खिलाफ़ मोर्चा खोला है। अधिकारियों को नियम के अनुसार सार्वजनिक रूप से कुछ भी कहने का अधिकार नहीं होता लेकिन व्यवस्था के सर्वोच्च पद पर बैठे हुए मुख्यमंत्री को जनसभा में कुछ भी बोलने का अधिकार होता है। केजरीवाल ने इस अधिकार का दुरुपयोग करते हुए एक जनसभा में मुख्य सचिव शकुन्तला गैमलिन को भ्रष्ट बताते हुए जनता से प्रश्न पूछा – “क्या आप इस भ्रष्ट महिला को स्वीकार करेंगे?”
यह एक महिला और ब्युरोक्रेसी का अपमान है। केजरीवाल अपने चुनावी वादों को कभी भी पूरा नहीं कर सकते। मुफ़्तखोरी का सपना एक या दो बार दिखाया जा सकता है। वे इसे भलीभांति जानते हैं। वे उप राज्यपाल, केन्द्र सरकार और दिल्ली के अधिकारियों से जंग छेड़कर Anarchism का ऐसा माहौल उत्पन्न करना चाहते हैं कि केन्द्र सरकार उनकी सरकार को बर्खास्त कर दे और वे शहीद का दर्ज़ा पा जायें। उनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है। सुशासन दे पाना उनके वश में नहीं है। आगे जो भी घटनाक्रम सामने आये, नुकसान तो दिल्ली की जनता का ही होना है।
अपनी नाकामियों का ठीकरा दूसरों के सर फोड़ना केजरीवाल को अच्छे तरीके से आता है उन्होंने जो वादे किये वे अब उनकी परेशानी का सबब बनने जा रहें हैं यदि कल इस समस्या का हल हो भी जायेगा तो यह शक्श फिर कोई नया विवाद खड़ा कर देगा जिसमें यह माहिर है केजरीवाल एक अच्छे धरने बाज आंदोलन करी हो सकते हैं लेकिन शासक नहीं अब इनके आंदोलन के सफरल होने पर भी संदेह है क्योंकि पहले यह अन्ना की पीठ पर चढ़ कर सफल हो पर अब वह सब नहीं है , इस बार की असफलता बाद में इनको इतिहास बना देगी और कुछ नहीं
मुझे याद है एक फिल्म समीक्षक थे. हर फिल्म की समीक्षा में फिल्म की बखिया उधेड़ देते थे. बाल की खाल निकालने की कला में प्रवीण. कमियाँ ढूँढने के उस्ताद. मैं उनका नाम नहीं लूँगा. एक बार उन्हें भी फिल्म बनाने का शौक चर्राया. फिल्म भी बनाई. ऐसी घटिया फिल्म कि सीधी औंधे मुंह गिरी. हम सोच रहे थे जो दूसरों की फिल्म में हमेशा कमियाँ निकालता है, उसकी फिल्म तो एक दम परफेक्ट होगी. यही हाल केजरीवाल का है. कमियाँ निकालने में इतने उस्ताद कि अपशब्दों की सीमा तक पहुँच जाए. लेकिन जब खुद कर दिखाने का मौका आया तो अब भी दूसरों पर इलज़ाम लगाने से बाज़ नहीं आ रहे. मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा, शीला दीक्षित ने इन्ही नियमों के अंतर्गत दिल्ली का काफी विकास किया. केजरीवाल को क्या पहले पता नहीं था कि दिल्ली, यू. पी. या बिहार की तरह पूर्ण राज्य नहीं है? फिर व्यर्थ की हाय-तौबा क्यों? सच ही कहा है – नाँच न जाने, आँगन टेढ़ा.
बिलकुल सही कहा आपने. दिल्ली को अर्द्ध राज्य का दर्ज़ा प्राप्त है. यह यू.पी, बिहार या बंगाल नहीं है. केजरीवाल इसे स्वतंत्र राष्ट्र मान रहे हैं, जबकि इसके पास नगरपालिका से कुछ ही ज्यादा अधिकार हैं. केजरीवाल की हरकतों से केंद्र कही यह सोचने पर मज़बूर न हो जाय की क्यों नहीं दिल्ली को फिर से केन्द्रशासित प्रदेश बना दिया जाय. मैं इस मत का हूँ की राष्ट्रीय राजधानी को केंद्र शासित होना ही चाहिए.