बजट 2016 – नमो जेटली की कृषि पुनर्व्याख्या

arun jaitelyसंदर्भ: मोदी की एग्रोनामिक्स

भारत में अब तक की सभी दिल्ली सरकारों व उनकें प्रधानमंत्रियों के अपनें एजेंडे रहें हैं. कभी मशीनीकरण, कभी औद्योगिक क्रांति, कभी गरीबी हटाओं, कभी मारुती कार, कभी कंप्यूटर, कभी समाजवाद, तो कभी वैश्वीकरण आदि विभिन्न सरकारों व प्रधानमंत्रियों के एजेंडे के प्रमुख व प्रिय विषय रहें हैं. मात्र दो प्रधानमन्त्री ऐसे हुए है जिनके एजेंडे में कृषि एक मुख्य विषय रहा – वे हैं, लाल बहादुर शास्त्री व अटल बिहारी वाजपेयी. इन दोनों प्रधानमंत्रियों ने कृषि को सरकार का मातृविषय मानकर नीतियां तय की थी. अब इस वर्ष केंद्र की नरेंद मोदी सरकार द्वारा 2016 का बजट पेश किये जानें के बाद लग रहा है कि सरकार के एजेंडे में कृषि एक मुख्य विषय हो गया है.

वैसे तो पिछले पखवाड़े में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि में तीव्र गति से अग्रणी हो गए राज्य मध्यप्रदेश के सीहोर और फिर बरेली में किसान सम्मेलन करके व नई फसल बीमा की घोषणा करके अपनी कृषि नीति का परिचय दे दिया था. प्रम नरेंद्र मोदी के भाषण में न केवल बीमा योजना का परिचय था अपितु एग्रोनामिक्स की बहुत सी बातें ऐसी भी थी जिससे स्पष्ट हो गया था कि नमो सरकार एक दशक पुरानी कृषि नीति का चोला शनैः शनैः उतारकर नई कृषि नीति की ओर बढ़ रही है. भारत जैसे कृषि प्रधान राज्य में केंद्र सरकार के बजट में जितना स्थान कृषि को मिलना चाहये था उतना स्थान तो संभवतः प्रथम बार ही इस बजट में मिला है. नमो सरकार कृषि की पुनर्व्याख्या करती प्रतीत रही है. भारतीय अर्थव्यवस्था में जिसमें कि केवल 15% कृषि उत्पादकता का योगदान है किन्तु  58% जनता प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है. कृषि उत्पादों की औद्योगिक इकाइयों में लगभग 10% लोग रोजगार प्राप्त करतें हैं. कृषि उत्पादन व इनसे निर्मित उत्पादनों हेतु देश की यातायात व्यवस्था का एक बड़ा प्रतिशत उपयोग होता है. किन्तु इन तथ्यों के मध्य एक अप्रिय तथ्य यह भी विकसित हो रहा है कि प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि कम होती जा रही है, दूसरी ओर भूमि का वितरण अत्यन्त असंतुलित है. देश में आज भी किसानो के पास समस्त कृषि भूमि का 62 प्रतिशत है तथा 90 प्रतिशत किसानों के पास कुल कृषि भूमि का केवल 38 प्रतिशत है. जिस देश में लोकोक्ति प्रचलित थी कि -“उत्तम खेती मध्यम बान करत चाकरी कुकर निदान” अर्थात कृषि कार्य सर्वोत्तम है, बान अर्थात व्यापार को द्वितीय श्रेणी का रोजगार माध्यम तथा नौकरी करनें को कुत्ते की प्रवृत्ति माना गया था; उस देश में आज कृषि को अपनी वृत्ति, व्यवसाय या रोजगार माननें के प्रति घोर उदासीनता आ गई है. देश में आज कृषि के प्रति आकर्षण सतत घटता जा रहा है. भारत की पूर्ववर्ती केंद्र सरकारों की विसंगति पूर्ण नीतियों के कारण कृषि का सकल घरेलु उत्पादन में योगदान 60% से घटकर 17% रह गया है. यह विसंगति इस तथ्य के आलोक में और अधिक गहरी हो जाती है कि कृषि पर देश 58% जनता की आजीविका निर्भर है.

सभी जानते हैं कि कृषि कार्य अति जोखिम भरा कार्य है जिसे जुआ भी कहा जाता है. मौसम पर कृषि की अति निर्भरता कृषकों को कृषि कार्य त्यागनें को मजबूर करती है. कृषि कार्य के अत्यधिक जोखिम भरे स्वभाव के कारण ही इस देश में पिछले वर्षों में कृषकों द्वारा आत्महत्या किये जानें की घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि देखनें में आई है. इस देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जानें वाले कृषि कार्य की व कृषकों की अवहेलना हम सतत देखते रहें हैं. देश की पिछली पूर्ववर्ती सरकारों का कृषि विमुख स्वभाव ही रहा कि कृषि संदर्भ में प्रभावी व फलदायी नीतियों का निर्माण नहीं हो पाया. कृषि कार्य को जोखिम से बचानें का जो सबसे आकर्षक व प्रभावी उपाय कृषि बीमा है उसे पिछले दशकों में उपेक्षित रखा गया. कृषि बीमे का ढांचा कुछ इस प्रकार का था कि किसानों से अधिक बीमा कम्पनियां लाभ कमाती थी. आश्चर्य है कि पिछले दशकों में कृषि बीमा की प्रीमियम दर 15 से लेकर 57 % तक के उच्चतम स्तर पर टिकी रही हैं. साथ ही बीमे की शर्तों व नियमों का जाल इस प्रकार बुना जाता था कि कोई बिरला कृषक ही कृषि बीमे से मुआवजा प्राप्त कर पाता था. नरेंद्र मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री कृषि बीमा योजना में प्रीमियम की राशि को आश्चर्यजनक ढंग से घटाकर डेढ़ से ढाई प्रतिशत के निम्नतम स्तर पर ले आया है. बीमे के नियमों का सरलीकरण कर दिया गया है. यह भी उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार की कृषि नीति प. दीनदयाल उपाध्याय के कृषि चिंतन से प्रेरित है. प. दीनदयाल जी ने अदैव मातृका कृषि का प्रचलन बढ़ानें की बात कही थी अर्थात ऐसी कृषि जो सिंचन हेतु प्रकृति अर्थात दैव निर्भर न हो, अर्थात सिचाई परियोजनाओं का विस्तार. फिर प. दीनदयाल ने देशज प्रकृति, देशज पर्यावरण व देशज खपत के अनुरूप कृषि शैली अर्थात परम्परागत अपनानें पर जोर दिया था. आज हमारी कृषि पारंपरिक कृषि को छोड़ने के गंभीर परिणामों को झेल रही है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसी देशज कृषि की अवधारणा को ध्यान में रखकर पारंपरिक कृषि हेतु 400 करोड़ का बजट आवंटन किया है. कृषि स्वास्थ्य कार्ड, मृदा परिक्षण, बीजोपचार आदि की योजनायें भारतीय कृषि के मूल चरित्र की ओर लौटनें का एक सुखद उपक्रम ही है!

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कृषि पर बजट का जो फोकस है वह व्यवस्थागत परिवर्तन के बिना अर्द्ध प्रभावी ही रहेगा. अभी फसल की लागत को फसल के मूल्य से सम्बद्ध करनें जैसा क्रांतिकारी कदम उठाया जाना बाकी है. उर्वरक, बीज, कृषि यंत्रों व कीटनाशक का मूल्य व गुणवत्ता नियंत्रण एक बड़ा विषय है जो छोटे छोटे हात बाजारों से भारतीय कृषि को आमूलचूल दुष्प्रभावित करता है. सभी सब्सिडी भी कृषक के बैंक खाते में सीधे जाए यह भी अभी किया जाना बाकी है. बहुत सी रियायतों व योजनाओं का लाभ केवल छोटी जोत के कृषकों को मिले यह भी उचित नहीं है. बड़ी जोत के कृषकों को भी प्रोत्साहित करना जाना चाहिए. उदाहरणार्थ तालाब बनानें हेतु प्रोत्साहन यदि दो एकड़ के कृषक को मिलता है तो यह छोटे कृषक हेतु निरर्थक या अनुत्पादक सिद्ध होगी किन्तु बीस-तीस एकड़ के भूस्वामी को यह तुरंत लाभप्रद स्थिति में ला खड़ा करेगी. वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा 2022 तक कृषकों की आय को दोगुना करनें का लक्ष्य लेना एक युगांतरकारी कार्य सिद्ध होगा, उन्होंने इस हेतु बजट में 36,000 करोड़ रु. का संकल्पित किया है. कृषि ऋण बढ़ाकर नौ लाख करोड़ रुपए करना भी सुफलित करेगा. कृषि ऋण ब्याज छूट हेतु 15,000 करोड़ रु., नई फसल बीमा योजना हेतु 5,500 करोड़, दलहन उत्पादन प्रोत्साहन हेतु 500 करोड़ रु. का आवंटन नमो सरकार की महत्वाकांक्षी कृषि नीति का स्पष्ट परिचय होता है. मार्च 2017 तक सभी 14 करोड़ किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड प्रदान करनें के लक्ष्य से दीर्घकालीन परिणामों का आव्हान होगा. अरुण जेटली ने अपनें बजट भाषण में बहुत ही भावनात्मक बात को तथ्य आधारित करते हुए यह कहा कि “भारतीय कृषक जो सम्पूर्ण राष्ट्र को खाद्य सुरक्षा प्रदान कर रहा है उसे हम आय सुरक्षा प्रदान करेंगे.” सिंचाई के लिए 20 हजार करोड़, मंरेगा के द्वारा 5 लाख तालाब व कूपों के निर्माण, पांच लाख एकड़ में जैविक कृषि का लक्ष्य, पशुधन संजीवनी योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में 28.5 लाख हेक्ट. का लक्ष्य., 89 सिंचाई योजनाओं 86500 करोड़ रु. से तीव्र कार्य, नाबार्ड में 20,000 करोड़ की राशि से सिंचाई कोष, 14 अप्रेल अम्बेडकर जयंती को डिजिटल बाजार प्रारम्भ होगा, ग्राम सड़क योजना हेतु 27,000 करोड़ रुपये का बजट आदि ऐसी घोषणाएं हैं जो भारतीय कृषि की उत्पादकता व उसके बाजार को एक सर्वथा नूतन रूप प्रदान करेगी. सभी ग्रामों में 1 मई 2018 तक बिजली पहुंचा देनें की घोषणा तो पारस पत्थर योजना सिद्ध होगी.

उर्वरकों के संदर्भ में भी मोदी व जेटली की युति का एक बड़ा ही संकल्पित लक्ष्य तो लगभग पूर्ण हो ही गया है. नरेंद्र मोदी ने अपनें सीहोर भाषण में देश की जनता को बताया कि पहले प्रत्येक राज्य का मुख्यमंत्री भारत सरकार को यूरिया या अन्य उर्वरकों की सप्लाई हेतु पत्र लिखकर आग्रह चिरौरी करता था किन्तु इस बार परिस्थितियां ऐसी बनाई गई कि किसी भी मुख्यमंत्री को केंद्र सरकार को उर्वरक प्रदाय हेतु पत्र नहीं लिखना पड़ा! नमो सरकार के डेढ़ वर्ष में ही देश में लाइन लगाकर उर्वरक लेनें के बड़े ही आम दृश्य अब दिखना बंद हो गए हैं. उर्वरकों की नीमकोटिंग कराकर कालाबाजारी को सौ प्रतिशत बंद करा देना एक बड़ी उपलब्धि है. नमो की एग्रोनामिक्स और अधिक सुफलित हो व अरुण जेटली अपनी अर्थव्यवस्था को कृषि से और तेज कर पायें यही शुभकामनाएं – भूमि पुत्रों कि ओर से!!

 

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