मानव जगत को प्रत्येक मौसम में अपने आप को ढ़ालना पड़ता है और जो मौसम के साथ ताल-मेल कर चलता है उसे कोई खास परेशानी नहीं होती। लेकिन कुछ वर्षों से मौसम अपने आप को इतना तेजी से बदल लेता है कि लोग समझ ही नहीं पाते कि आखिर ठंड मंे गर्मी का एहसास, गर्मी में ठंड का एहसास तो कभी बिन बादल बरसात आखिर क्यों हो रही है। इस वजह से कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ का मंजर देखने को मिलता है। ऐसे में मौसम के बदलते मिजाज ने लोगों को संकट में डाल दिया है और वह मौसम के बदलते मिजाज के साथ अपने आप को ढालने में असहज महसूस करने लगा है।
बादल की आंख-मिचैली पर किसानों की नजर इस उम्मीद से टिकी होती है कि काश बारिश हो जाये जिससे खेती की जा सके। लेकिन बादल उनकी उम्मीद को कभी पूरा भी करती है और कभी चकनाचूर भी। कभी बादल इतना बरस जाता है कि खेतों में लगे सारे फसल चैपट हो जाते हैं तो कभी आंख-मिचैली का खेल खेलकर बादल आसमान में गायब हो जाता है। कहीं इतनी बारिश हो जाती है कि बाढ़ ही बाढ़ तो कहीं यह न बरसकर सूखा ला देती है। प्रत्येक वर्ष यह देखा जाता रहा है कि बारिश अपने औसत स्तर से भी कम बरसने लगी है और वह भी अपने समय पर नहीं बल्कि बिन मौसम बरसात होती है जिससे खेती को खासा नुकसान पहंुचता है और देश को महंगाई जैसे भीषण समस्या से जूझना पड़ता है। मनीला स्थित एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) का अनुमान है कि नेपाल, भारत, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, श्रीलंका को 2050 तक सालाना जीडीपी के औसतन 1.8 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है।
किसानों के घाव पर मरहम लगाने के लिए सरकार की योजनाएं तो कई है लेकिन इतना कारगर नहीं कि खेती बिना परेशानी के कर सके और देश को खाद्य पदार्थाें से संपन्न कर सके। यही वजह है कि सभी देश एक-दूसरे के खाद्य पदार्थाें पर आश्रित होने लगे है। प्रत्येक देश हरेक साल दूसरे देशों से अनाज, दाल सहित अन्य खाद्य पदार्थों का आदान-प्रदान करते हैं। पानी की महत्ता को देखते हुए ही यह प्रायः सुझाव दिया जाता रहता है कि पानी की प्रत्येक बूंद का उपयोग किया जाना चाहिए। बारिश के पानी को जमाकर उपयोग में लाना चाहिए। नेपाल में कृषि की हालत और भी दयनीय है। यहां के किसानों के लिए न तो सरकार की ओर से कोई विशेष मरहम है और न ही कारगर उपाय। ऐसे में किसान खेती छोड़कर मजदूरी करने में लग जाते हैं। आवश्यकता पड़ने पर दूसरे शहरों और देशों की ओर पलायन करने से भी नहीं चूंकते। कमोबेश यही हालत अन्य देशों की भी है जहां गरीबी, भूखमरी ज्यादा है। जिससे परेशान होकर प्रत्येक वर्ष हजारों किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं। भारत में ही मानसूनी मौसम में करीब तीन करोड़ लोग अस्थायी तौर पर गरीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं। किसान के कंधों पर ही दुनिया टिका है जो सभी को खाद्य आपूर्ति कराता है लेकिन यदि किसान के आंखों में खून के आंसू दिखाई दे तो समझिए इस मानव जगत के लिए और क्या विडंबना हो सकती है।
मौसम के बदलते मिजाज का प्रमख कारण है ग्लोबल वार्मिंग। विषेशज्ञ यह आंषका व्यक्त कर रहे हैं कि ग्लोबल वार्मिंग ने मौसम को और भी मारक बना दिया है और आनेवाले वर्शों मंे मौसम में अहम बदलाव होने की पूरी संभावना है, चक्रवात, लू, अतिवृश्टि और सूखे जैसी आपदाएं आम हो जाएंगी। धरती पर विद्यमान ग्लेषियर से पृथ्वी का तापमान संतुलित रहता है लेकिन बदलते परिवेष ने इसे असंतुलित कर दिया है। तापमान में बढ़ोतरी का अंदाजा वर्श दर वर्श हम सहज ही महसूस करते हैं। कुछ दषक पहले अत्यधिक गर्मी पड़ने पर भी 38 से 40 डिग्री सेल्सियस तापमान हुआ करता था लेकिन अब यह 50 से 55 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचा है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले 60 सालों में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण ही 0.5-1.3 डिग्री तक की तापमान में बढ़ोतरी हो रही है।
बढ़ते तापमान से न केवल जलवायु परिवर्तन होने लगा है बल्कि पृथ्वी पर आॅक्सीजन की मात्रा भी कम होने लगी है जिससे कई बीमारियों का बोलबाला होता जा रहा है और इसका मुख्य कारण है ग्रीनहाउस गैस, बढ़ती मानवीय गतिविधियां और लगातार कट रहे जंगल। संयुक्त राश्ट्र की इंटरगवर्मेंटल पैनल आॅन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की रिपोर्ट इस बात की पुश्टि करती है कि धरती के बढ़ते तापमान और बदलती जलवायु के लिए कोई प्राकृतिक कारण नहीं बल्कि इंसान की गतिविधियां ही जिम्मेदार हंै। पर्यावरण का नुकसान हमारे पांव पर कुल्हाड़ी मारने के समान है। जिसके कारण जलवायु परिवर्तन ने मौसम को विकृत कर दिया है फिर भी हम जलवायु परिवर्तन को सुधारने के बजाय बिगाड़ने में लगे हैं। ऐसा नहीं है कि इसे पटरी पर वापस लाने के लिए प्रयासरत नहीं है लेकिन सुधारने वालों से कहीं ज्यादा बिगाड़ने वालों की संख्या अधिक है जिससे बात नहीं बन पा रही और लगातार पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। लगातार कम होते जंगल, घरों-कारखानों के लिए जंगलों का जमीन में तब्दील होना लगातार ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा रहा है। बेमौसम बरसात और कड़कती धूप ने मानव जगत के जीवन को अस्त-व्यस्त कर रखा है। ऐसे में हमें प्रकृति के प्रति सावधान और सजग रहकर इसका संरक्षण करने जैसे कार्यों पर विशेष ध्यान देना होगा, तभी जाकर मौसम संतुलित हो सकेगा और मानव जगत को सुकून की प्रप्ति भी।
–निर्भय कर्ण