जब भी गये बंद मिले द्वार तेरे शहर के ,
करते हम कैसे भला दीदार तेरे शहर के ।
अमुआ के बाग में उल्लुओं का बसेरा है ,
ठीक नहीं लगते हैं आसार तेरे शहर के।
दिलों पर खंजर के निशां लिये मिले लोग ,
तूं ही बता कैसे करें एतबार तेरे शहर के ?
फतेह है किसी की , तो हार भी हुर्इ होगी ,
जयकार में दब गये चीत्कार तेरे शहर के ।
कैसे मानें शहर तेरा अमन – चैन का संवाहक ,
अखबारों की ” लीड ” हैं बलात्कार तेरे शहर के ।
लोगों ने बताया मैं पागल हो गया हूं ,
दिल से निकलते नहीं विचार तेरे शहर के ।
तुम तो बेहिचक बेवफार्इ हरदम करते रहे,
हम तो फिर भी ”ठाकन ” वफादार तेरे शहर के ।।
जग मोहन ठाकन