दादा उससे ज्यादा|
दादी कहती ‘मैं’ शहजादी,
और दादा शह्जादा|
दादी का यह गणित,
नातियों पोतों को न भाता|
बूढ़े लोगों को क्यों माने,
शहजादी ,शहजादा|
दादी बोली,अरे बुढ़ापा,
नहीं उमर से आता|
जिनका तन मन निर्मल होता,
वही युवा कहलाता|
दादा उससे ज्यादा|
दादी कहती ‘मैं’ शहजादी,
और दादा शह्जादा|
दादी का यह गणित,
नातियों पोतों को न भाता|
बूढ़े लोगों को क्यों माने,
शहजादी ,शहजादा|
दादी बोली,अरे बुढ़ापा,
नहीं उमर से आता|
जिनका तन मन निर्मल होता,
वही युवा कहलाता|
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रहा है। ऐसे में मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। प्रवक्ता डॉट कॉम इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।
ITS SHAME OUR HINDU WRITERS HAVE NO VISION THEY DON’T WRITE ABOUT THE FUTURE OF HINDUS . LOOK ALL AROUND HINDUS ARE GETTING KILLED AND CONVERTED . THEY DON’T SEE THE DARK FUTURE OF HINDUS AND BUSY WRTING POEMS TO ENTERTAIN THEM.